Thursday, 27 November 2025

Jaati ! A poem by Daulatram

#जाती  !

साधु  संतात  जाती 
गुरू  महंतात  जाती 
सैन्यात सेवकात  जाती 
नेत्यात  जनतेत  जाती 
शहिदात  सोयरिकात  जाती 
कायद्यात  संविधानात  जाती 
गुन्हेगारात   न्यायमुर्तित  जाती 
नौकरात  मालकात  जाती 
व्यापारयात  धन्द्यात  जाती 
सांगतात  ते  मानतात  जाती 
धर्म  त्याचा  जाती  भेदा  साठी 
तरी  अनेकतेत  एकता  सांगतात  जाती  ! 

जाती  विहीन  नेटीव  हिन्दुत्व ला 
मूर्खात  काढतात  धर्म  जाती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  नाकारतात  जाती 
समता  बंधुत्व  नाकारतात  जाती 
कबीर  बीजक  नको  म्हणतात  जाती 
ब्राह्मण हिन्दू वेगवेगडे  हा  विचार  नाकारतात  जाती
जाती  ध्योतक   जानवे  घालतात  जाती 
अस्पृष्यता  छुवाछुत  पालतात  जाती 
तरी  जाती  जाती  आरक्षाण  मागतात   जाती 
जाती  नसलेल्या  धर्माता  शिरवतात  जाती 
तरी  जाती  विरुद्ध  आम्हीच लढतो  म्हणतात जाती !

नेटीव  रूल  मुव्हमेंट  ला  नाकारतात  जाती 
कास्टलेस  सोसाय़टी  नको  म्हणतात  जाती
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  नकारतात  जाती 
कबीर  दौलतराम  कडे   दूर्लक्ष  करतात  जाती 
जाती  विहीन  नको  जातिवंत  म्हणतात  जाती  !

#दौलतराम

Wednesday, 26 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 22

पवित्र बीजक  : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 22

चाचर  : 2 : 22

ज्यों  आवै  त्यों  जाय , समुझि  मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

ज्यों  = जो  ज़हाँ  मर्जी  चाहे  ! आवै  = मन  मे  आवे  , मनमाना  ! त्यों  = वह  ! जाय  = गलत  जगह  जाय  ! मन  बौरा  हो  = मन  बे  काबू  है ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  बताते  है  भाईयों  कुछ  लोग  गलत  रास्ते  पर  चलते  है  जैसे  दारू  पिना  , जुवा  खेलना  , वेश्या के  पास  जाना  आदी  आदी  ! उनका  उनके  मन  पर  कोई  काबू नही  होता  है  वे  अच्छा  बुरा  में  भेद  नही  कर  पाते  जब  की  वे  भी  जानते   है  ये  अधर्म  है  गलत  है  पाप  है  ! एसा  इस  लिये  होता  है  क्यू  की  वो  गलत  संगत  मे  पड  जाते  है  ! विदेशी यूरेशियन  वैदिक ब्राह्मणधर्म यह गलत  संगत  है  उसे  छोडो  और  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  के  सुसंगत में  आवो  तो  मन  इधर  उधर  ना  भटके  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ संस्थान 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Tuesday, 25 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 21

पवित्र बीजक :  प्रग्या बोध : चाचर :  2 : 21

चाचर  : 2 : 21 

सूने  घर  का  पाहुना , मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

सूने   = शुन्य  , सुना , खाली  ! घर  = मानव  , शरीर ! पाहुना  = मेहमान  ! मन  बौरा  = अस्थिर  मन , चंचल  मन , पागल  मन  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा कबीर  चाचर  के  इस  पद  में बताते  है  अगर  कोई  इंसान  किसी  खाली  मकान  में  मेहमान  बन  कर  घुस  जाये  तो  उसका  कोन  स्वागत  करेगा  , कोन  देख  भाल  करेगा   कोन  उसकी  जारूरते   इच्छा  वासना कामना लालच तृष्णा  माया  मोह  पुरा  करेगा  कोई  नही  तब  तो  उसे  उस  व्यक्ती  को  पागल  ही  लोग  कहेंगे  !  जहाँ  कुछ  मिलता  नही  वहाँ  मन  लगाना  , समाय  बिताना  व्यर्थ  है  मूर्खता  है  ! एसे  धर्म  संस्कृती  विचार  आचार  को  अपनावो  जहाँ  तुम्हे   मन  की  शांती  मिले  !  विदेशी  यूरेशियान  वैदिक ब्राह्मणधर्म भूतो  का  ड़ेरा  है  उसे  छोडो   मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  का  पालन  करो  तो  पगलाया  मन  शांती  मिले  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ संस्थान 
कल्याण  , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Monday, 24 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 20

पवित्र बीजक : प्रग्या  बोध  : चाचर  : 2 : 20

चाचर  : 2 : 20

अन्त  बिलैया  खाय , समझु  मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

अन्त  = अन्त्तता  , आखिर  में  , मृत्यू  पर  ! बिलैया = बिल्ली  ! खाय  = मार  देना ,  खाना   !  

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  बताते  यह  जीवन  लालच  माया  मोह  इच्छा  तृष्णा  वासना भरा  है  जैसे  ये  सभ  चुहे   बिल्ली  का  खेल  हो ! ज़िस  प्रकार  बिल्ली  चुहे  को  पकडने   के  बाद आसनी  से  एक  दम  मारती  नही  बिच  बिच  में  उसे  छोड  देती  है  ताकी  वो  थोडा  भागे , फिर  उसे  बिल्ल  पकडती  है  , यह  चुहे  बिल्ली  का  खेल  बहुत  देर  तक  चलते  रहता  है और  खेल  खेल  कर  अंत  में  बिल्ली  चुहे  को  मार  कर  खा  जाती  है  वैसे  ही  माया  जीवन के  साथ  खेल  करती  है  और  अंत  में  जीवान  कोही  खा  जाती  है  यहाँ  तात्पर्य  है  अनंता  अधर्म  आप  पर  हावी  हो  जाये  तो  जीवन  व्यर्थ  ही  गया  समाजो  ! इस  लिये  हमेशा  सतर्क  रहो  , जागृत  रहो  शिल  सदाचार  के  मार्ग  से  ना  भटको  माया  मोह  की  बिल्ली  को  नजदिक  ना  आने  दो  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दुधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Sunday, 23 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 19

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध :  चाचर :  2 : 19

चाचर  : 2 : 19

पढे  गुने  क्या  कीजिये , मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

पढे  = शिक्षा  लिये  ! गुने  = गुनवान ! क्या  कीजिये  = क्या  फायदा   ! मन  बौरा  हो  = मन  काबू  मे  न  होना  ! 

प्रग्या बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद में  कहते है  लोग  कही  जाकर  स्कुल  , विद्दयापीठ  , गुरू , गुरूकुल  आदी  से  ऊची  ऊची  पढाई  करते   है  कई  विषय  , अभ्यासक्रम   पुरा  करते  है  डिग्रीया और  गूण  हासिल  करते  है  ! उन्हे  पंडित  ग्यानी  ब्राह्मण  आदी  न  जाने   कितने  उपाधी  अलंकरण से  सन्मानित  किया  जाता  है  पर  इन  लोगोंका  अगर   मन  पर  कोई  बस  नही  चलता  मन  इनके  काबू  मे  नही  रहता  माया  मोह  तृष्णा  लालच  अहंकार  आदी  के  कारण  भटकता  रहता  है  और  धर्म  के  बाजय  अधर्म  करते  रहते  है  तो  इनके  पढे  लिखे  ग्यानी  पंडित  होने  से  क्या  फायदा  ? पुछते  है  धर्मात्मा  कबीर  ! कबीर  साहेब  उस  ग्यान  को  ही  सच्चा  ग्यान  मानते  है  जो  मन  मे  काबू  मे  रख  कर  सद्धर्म  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म का  आचरण  करे  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण  , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Saturday, 22 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 18

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर  : 2 : 18

चाचर  : 2 : 18 

एसो  भरम  विचार , समुझि  मन  बौरा  हो ! 

शब्द  अर्थ  : 

एसो  = इस  प्रकार के ! भरम  =  झूठ  ! विचार  = धर्म ,  संकृति  ! मन  बौरा  = अस्थिर  मन  ! 

प्रग्या  बोध : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  कहते  है भाईयों  झूठा  धर्म  संस्कृती  का  पलान  ना  करो  जैसे  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  यह  पुरा  का  पुरा  झूठ  और फरेब  ,भ्रमित  करने  वाला  विचार  आचार  है  वह  धर्म  नही  अधर्म  है  संस्कृती  नही  विकृती  है  एसे  अधर्म  और  विकृती का  पालन  करना  ही  दर्षाता  है  की  आप  का  मन  पगला  गया  है  आप  भ्रमित  हो  गये  हो ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण ,अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Friday, 21 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 17

पवित्र  बीजक : प्रग्या बोध : चाचर :  2 : 17

चाचर  : 2 : 17

ज्यों  सुवना  ललनी  गह्यो , मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

ज्यों  = ज़िसके  !  सुवना =  वासना , अच्छा  लगना , भाना  , तारीफ  , गीत  !   ललनी  = स्त्री !  गह्यो  = गया  ! मन  बौरा  = मन  पगला  गया , बेकाबू  हो  गया  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  कहते  है  भाईयों  सैय्यम  बहुत  अच्छी  और  बडी  बात  है  ! पर  स्त्री  पर  लालच  भरी  वासना  न  रखो  , जो  एसा  करता  है  पर  स्त्री  पर  बुरी  नजर  रखता  है , उसकी  तारीफ  कर  उसके  गीत  गाता  है  समजो  वह  वासना  मे  अंध  हुवा  है !   विवेकहीन हुवा  है  और  खुद  का  ही  नुक्सान  करने  वाला  है  !  एसा  अधर्म  कर  भला  किसी  का  क्या  भला  हो  सकता  है  ! यह  वृत्ती  ज़हाँ  नही  वहाँ  चोच  मारने  वाले  सुवे  जैसी  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  , हिन्दुधर्म , विश्वपीठ 
कल्याण  , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी