Thursday, 29 August 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 69 : Makali Vikrit Adharma Vaidik Brahman Dharm !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ६९ : नकली विकृत अधर्म वैदिक ब्राह्मणधर्म !

#रमैनी : ६९

ऐसा योग न देखा भाई * भूला फिरै लिये गफिलाई 
महादेव को पंथ चलावै * एसो बड़ो महन्त कहावै 
हाट बजारे लावै तारी * कच्चा सिद्ध माया प्यारी 
कब दत्ते मावासी तोरी * कब शुकदेव तोपची जोरी 
नारद कब बंदूक चलाया * ब्यासदेव कब बम्ब बजाया 
कहहि कराई मति के मन्दा * ई अतीत की तरकसबन्दा 
भये विरक्त लोभ मन ठाना * सोना पहिरि लजावै बाना 
घोरा घोरी कीन्ह बटोरा * गांव पाय जस चले करोरा 

#साखी : 

सुन्दरी न सोहै , सनकादिक के साथ /
कबहुंक दाग लगावै, कारी हांडी हाथ // ६९ //

#शब्द_अर्थ :

गफिलाई = असावधानी ! महादेव को पंथ = शैवी ! हाट = बाजार ! तारी = समाधि , एकतारी ! दत्ते = दत्त ! मावासी = किला ! तोपची = तोप रखने वाला राजा ! बंब = बाम गोला , लड़ाई का बाजा ! अतीत = त्यागी , बीता ! तरकस = बाण रखने ! घोरा घोरी = घोड़ा , घोड़ा गाड़ी ! करौरा = करोड़पति, धनी , मालदार ! सुन्दरी = स्त्री ! सनकादिक = सनक , सनंदन, सनतकुमार वैदिक बाल संत! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर विदेशी वैदिक यूरेशियन ब्राह्मणधर्म के तथाकथित योगी , महंत , साधु , सन्यासी , शंकराचार्य , मठाधीश के राजसी ठाठ , घोड़ा गाड़ी पालकी हाथी की सवारी से कुंभ मेले में सवारी , सोने चांदी से अलंकृत शरीर और उन्मादी गर्जना गाजे बाजे के साथ भाले बरछे त्रिशूल तलवार , धनुष्य बाण और यहां तक सुतली बांब के फटाके आदि का प्रदर्शन करते इन वैदिक ब्राह्मणधर्म के शंकराचार्य आदि धर्मगुरु के रहन सहन पर कटाक्ष करते हुवे कहते है ये सब ढोंगी लोग है लोभी लोग है माया में आसक्त लोग है , ये अधर्मी है ! 

कबीर साहेब कहते है ये कामी लोग अपने साथ स्त्रियोंको जमघट भी रखते है कुछ ने तो नागा स्त्री और योगमाया जैसे शब्द इस्तेमाल कर महिला का दिन रात शोषण करते है , ये नकली विरक्त है ! पूरे भोगी है राजसी थाट से रहते है बड़े बड़े महल में इनके मठ बनाए है और गांव के गांव इनके नाम से जागीर की गई है , ये कहा सन्यासी है ? ये नकली सन्यासी कोई महादेव का पंथ भोलेनाथ का पंथ शैव पंथ का नाम रखते है कोई दत्त , नाथ पंथ बनाया , किसीने नारद, सनक , व्यास और व्यासपीठ नाम रखे तो किसान शुकदेव का नाम इस्तेमाल किया , सब का काम एकही काम है आम लोगोंको बेवकूफ बनावो , कुछ मायावी जादुगिरी चमत्कार बतावो जैसे नींबू काटो तो लाल पानी बनावो और उसे रक्त बतावो , मुर्दोंकि खोपड़ी , हड्डी काला कपड़ा आदि से लोगोंको डरावो !

डर , अंधश्रद्धा से इन्होंने धर्म का धंधा बना दिया ! ये वैदिकधर्म नही पूरा अधर्म और विकृति है !

काबिर साहेब इस विकृत वैदिक अधर्म से बचो कहते है और अपना सच्चा सत्य मूलभारतीय हिन्दूधर्म में लौट आवो ऐसा लोगोको आवाहन करते है !

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्तान

Wednesday, 28 August 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 68 : Swadharm Mulbhartiya Hindhudharm hi Sukh Sindhu !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ६८ : स्वधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म ही सुख सिंधू !

#रमैनी : ६८

तेहि वियोगते भयउ अनाथ * परेउ कुंज बन पावै न पंथा 
वेदो नकल कहै जो जाने * जो समजै सो भलो न माने 
नटवट विद्या खेलै सब घट माहीं * तेहि गुण को ठाकुर भल मानै 
उहै जो खेलै सब घट माहीं * दुसर कै कुछ लेखा नाही 
भलो पोच जो अवसर आबै * कैसहु कै जन पूरा पावै 

#साखी : 

जेकर शर तेहि लागे, सोई जानेगा पीर /
लागे तो भागे नहीं, सुख सिन्धु निहार कबीर // ६८ //

#शब्द_अर्थ : 

तेहि = चेतन राम , स्वरूप ! वियोग = विस्मरण! कुंजवन = घना जंगल ! खानी = वाणी जाल ! नकल = बनवटी ! नटवट = नाटक का सुत्रधार ! विद्या = कला ! लेखा = गिनती , महत्व ! भलो = अच्छा ! पोच = बुरा , दुखद ! कैसहु कै = एनकेन , किसी प्रकार ! जन = साधक , सामान्य ज्ञान ! पूरा पावै = संतोष ! शर = बाण , विवेक !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाइयों अपने सुखदाई स्वधर्म ,सत्य हिंदूधर्म, मूलभारतीय हिन्दूधर्म को छोड़ कर तुम गहरे अंधकार के विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के घने और डरावने जंगल में फस गए हो ! उससे बाहर निकलने का रास्ता भले भले को नही सूझ रहा है ! वेद और मनुस्मृति वो डरावना दुखदाई जंगल है मकड़ी का जाला है वाणी का शब्द छल है जिसमे विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग तुम्हे उलझा कर तुम्हारा शोषण कर रहे है , वेद को वो देववाणी और मनुस्मृति को ब्रह्मा का अर्थात ब्राह्मण देव का आदेश कानून कह कर वो स्थानीय आदिवासी मूलभारतीय लोगौको वर्ण जाति , उचनीच , भेदभेद में बांटकर गैर बराबरी का धार्मिक साम्राज्य स्थापित किया है ! ये सब इसलिए हूवा क्यू की तुमने अपना स्वदेशी मानवतावादी , समतावादी, शील सदाचार भाईचारा का मूलभारतीय हिन्दूधर्म को विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म से कलुषित होने दिया ! वैदिक ब्राह्मणधर्म की गंदगी को बर्दास्त किया , एक अधरवेल की तरह तुमने अपने धर्मवृक्ष का रस उसे पीने दिया ! विष की डार को विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के ब्रह्मिनोको मूलभारतीय हिन्दूधर्म पर प्रत्यारोपीत करने दिया ! 

भाई अपने आप को पहचानो आपके अंदर के चेतन राम को पहचानो उसको विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म का गुलाम ना होने दो ! ब्रह्मिनोके खेल को समझो और जरा सयाना होकर जीवन का खेल खेलो ! न समझो तो हार जावोगे , दुख पावोगे ! मैं जानता हुं तुम्हारे दुख दर्द क्यू की वही दर्द क्या होता है जानता है जिसे तीर लगता है , चुभता है ! 

भाई मैं तुम्हारे हित की बात करता हूं , स्वधर्म की बात करता हूं , तुम्हारे गुलामी से मुक्ति की बात करता हूं , हम किसी की नकल नहीं करते अपना असली शुद्ध मूलभारतीय हिन्दूधर्म की बात करते है क्यू वही सुख सागर है , सुख सिंधु है !

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखंडहिंदुस्थान