Tuesday, 29 April 2025

Ye Desh ! Kavita by : Daulatram

#ये_देश  ! 

ये  देश  ज़िन्दा  लाशोंका   
ढूंड  रहा  एक  हलचल 
मन्द  दबी एक  कहराहट  
अधखुली  कोई  आँखे  !

लाशो  की  तरह  सोये 
या  सोने  का  नाटक 
उठो  जागो  सोने  वालो   
मेरी  आवाज  है  कर्कश  !

अभी  पहलगाम  हुवा 
कल   हुवा  था  पुलवामा 
तब  भी  सोये  थे  तुम 
आज  निचे  गई   है  दुम  ! 

एसे  आते  जाते  है 
जैसे  आतंकवादी  मेहमान 
लाल  कालिन  पर  चले 
जैसे  हमारे  प्रिय  प्राण  !

माँ  बहन  का उजडा  सुहाग 
बच्चे  आज  अनाथ  हुवे 
बूढो  का  सहारा   छुटा  
उम्मिद  का  मंजर  टूटा  ! 

इसे  क्या  भाई  दोस्तो 
क्या  यही  विकास  है 
देश  बन  गया  खामोश 
क्या  यही  रामराज्य  है  ?

#दौलतराम

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