Sunday, 31 August 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 7 : 6

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : बसंत  : 7 : 6

बसंत  :  7 : 6

विवेक  विचार  न  करे  कोय , सब  खलक तमाशा देखें  लोय  ! 

शब्द  अर्थ  : 

विवेक  विचार  = ग्यान  ध्यान  , प्रग्या  बोध  !   न  = नही  ! करे  कोय  = कोई  नही  करता  , कौन  करे  ! सब  = सभी  ! खलक  = खाली  , बस , केवल  ! तमाशा   = नाटक  , खेल , मनोरंजन  का  प्रकार  ! देखें  लोय  = देखाना  ,दर्षक  बनना  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  संसार  के  लोग  एक  दुसारे  के  दुख  दर्द  देखते  है  पर  कोई  सिख  नही  लेते  उनके  लिये  दुसरे  की परेशानी  दुखद अवस्था  एक  प्रकार का  तमाशा  है   जो  देखा  और  निकल  पडे कोई  नही  सोचता  ऐसी  अवस्था  उनकी  भी  होगी  ! रोज  लोग  मरते  है  और  खाली  हाथ  जाते  है  पर  लोग  तब  भी  माया  मोह  अहंकार  नही  छोडते  है  ,अन्य  को  दुख  देना  चौरी  झूठ  आदी  अधर्म  नही  छोडते क्यू  की  वो  विवेक  नही  करते  क्या  बुरा  क्या  अच्छा  क्या  धर्म  क्या अधर्म  का  गहराई  से  विचार  नही  करते ! दुख  का  कारण  अग्यान  ही है   और  दुख  मुक्ती  का  मार्ग  प्रग्या  बोध  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Saturday, 30 August 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 7 : 5

पवित्र  बीजक  : प्रग्या बोध  :  बसंत  : 7 : 5

बसंत  : 7 : 5

आपन  आपन  चाहैं  भोग , कहु  कैसे  कुशल  परिहैं योग ! 

शब्द  अर्थ  : 

आपन  आपन  = स्वयम  ,खुद !   चाहैं  = इच्छा , तृष्णा  , लालच , माया , मोह  ! भोग  = सांसारिक  वस्तुये  , खाना  पिना  आदी उपभोग  वस्तु  ! कहु  = कहते  है  ! कैसे  = किसप्रकार  ! कुशल  = होशियारी  ! परिहैं  योग  = योगायोग , नसीब  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  मानव  स्वभाव  को  बताते  हुवे  कहते  है  मानव  सांसारिक  हर  इच्छा  चाहत चाहे   वो  जयाज  नाजयाज  हो  उसे  पुरा  करना  चाहता  है  ! भोग  उपभोग  की  हर  वस्तु  उसे  चाहिये  , मालकी  चाहिये  खुद  के  लिये  चाहिये  ये  तृष्णा लालाच  माया  मोह  उसे  गलत  काम  करती  है  जीससे  वो  कुछ  लोगोंको  तुच्छ  , शुद्र , गुलाम  मानने  लगता  है  उनका  शोषण  करता  है  जैसे  पुंजीवादी  वर्णजाती वादी   वसाहतवादी करते  है  और  उसे  योगायोग  नसीब  आदी  नाम  देकर  ठगते  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 7 : 4

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : बसंत  : 7 : 4

बसंत  : 7 : 4

अन्तर   मध्ये  अन्त  लेइ ,  झकझोरि  झोरा  जीवहिं  देइ  ! 

शब्द  अर्थ  : 

अन्तर  मध्ये  अन्त  = किसी  भी  समय  ! लेइ  = लेना  , काम  पे  लगाना  !   झकझोरि = हिलाना  , अस्थिर   करना !  जीवहिं  देइ  = आत्महत्या , दुखी  होना  , करना  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  बताते  है  माया  तृष्णा  किसी  भी  समय  जीव  को  काम  पर  लगाती  है  और  काम  पुरा  न  होने  पर  मन  मुताबिक  न  होने  पर  उद्धेग  से  दुख  से  भर  कर  कभी  कभी  पागल  मानसिक  असंतुलीत  ही  नही  तो  आत्मघात  आत्महत्या  के  लिये  भी  उसकाती  है  ! इस  माया  मोह  अहंकार  लालच  के  कारण  रामायण  महाभारत  हुवे  युद्ध  हुवे  बर्बादीया  हुवी  ! 

इस  से  बचनेका  उपय  परमात्मा  कबीर अपनी  पवित्र  वाणी  बीजक  ही  बताते  है  वही  सत्य  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Thursday, 28 August 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 7 : 3

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : बसंत  : 7 : 3

बसंत  : 7 : 3

पचीस  बतावैं  और  और , और  बतावैं  कइ  एक  ठौर  ! 

शब्द  अर्थ  : 

पचीस  बतावैं  = अनेक  लोग  बताते  है  ! 
और  और  = अनेक  प्रकार  की  बाते  ! और  बातावैं  = और  भी  बताते ! एक  ठौर  = एक  ठिकाना  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  बताते  है  एक  तत्व निराकार  निर्गुण  चेतन  राम   से  इस  शृष्टी  का  निर्मांण  हुवा  अनेक  लोग  अनेक  भाषा  संस्कृती  धर्म  संकल्पना  की  निर्मिती  हुवी  किसी  ने  कुछ  बताया  तो  किसी  ने  कुछ ! किसी  ने  अनेक  देवी  देवता  ईश्वर  परमात्मा  अवतार , मूर्ती  पूजा  बली  होम  हवन  पाणी  की  पूजा  अग्नी  की  पूजा  पत्थर  की  पूजा  एसे  विविध  मार्ग  बताये   कोई  एक  ठौर  ठिकाना  नही  बताते   है  सब  भूल  जाते  है  शृष्टी  का निर्माता  सब  का  निर्माता  केवल एक  है  निराकार   निर्गुण  तत्व  चेतन  राम  और  उसके  दर्शन  का  एक  मात्र  मार्ग  है  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  का  शिल  सदाचार  आचरण  का  मार्ग  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिव शृष्टी

Wednesday, 27 August 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 7 : 2

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : बसंत : 7 : 2

बसंत : 7 : 2

एक बडो जाके पाँच हाथ , पाँचो के पचीस साथ ! 

शब्द अर्थ : 

एक = चेतन राम तत्व ! बडो = हुवे ! जाके पाँचो हाथ = पाँच तत्व ! पाँच के पचीस = अनेक जीव ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर बसंत के इस पद मे बताते है शृष्टी का निर्माता परमात्मा केवल एक है चेतन तत्व राम उस एक से पाँच तत्व हवा पाणी तेज पृथ्वी आकाश की निर्मिती हुवी और फिर अनेक जीव जन्तु पेड पौंधे ! सारी चराचर शृष्टी केवल एक तत्व परमपिता पर्मेश्वर चेतन राम है हम सब उसी में है और वो सब हम में पर विभिन्न होने के कारण मै पण से ग्रस्त हुवे और जीव जन्तु अहंकार अहंभाव मेरा तेरा करने लगे इस के कारण भी जीव माया मोह तृष्णा इच्छा अहंकार के चलते धर्म छोड अधर्म के कारण भव चक्र मे बार बार जन्म लेता है अकुशल कर्म करता है पाप करता है शिल सदाचार का धर्म छोड कर विकृत अधर्म अपनाता है यही उसके दुख का कारण भी बन जाता है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Tuesday, 26 August 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 7 : 1

पवित्र  बीजक : प्रग्या  बोध  : बसंत  : 7 : 1

बसंत  : 7 : 1

घरहि  में  बाबुल  बाढ़लि  रारि , उठि  उठि  लागलि  चपल नारि ! 

शब्द  अर्थ  : 

घरहि  में  = इस  शरीर  में , मनमें  , जीव  में  ! बाबुल = पिता  , निर्माता  , चेतन  तत्व  राम  ! बाढ़लि  रारि  = झगडा  , विवाद  ! उठि  उठि  = उठ  उठ  कर  , बार  बार  ! लागलि = लगी  हुवी  है  ! चपल नारि  = हुशार  माया  मोह  इच्छा  तृष्णा  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  सात  के  इस  प्रथम  पद  में  ही  तृष्णा  माया  मोह  को  बहुत  ही  चपल  चंचल  होशियार  बताते  है  जो  बार  बार  उठ  उठ  कर  उसका  खुद  का  पिता  मन  , जीव  शरीर  से  बार  बार  झगडा करती  रहाती  है  मेरी  ही  मानो  मै जैसे बताती  हूँ  वैसा  ही  करो  ! तृष्णा  माया  मोह  पुरी  तरह  मन  और  शरीर  पर  हावी  होना  चाहती  ह्य  जीव  को  चेतन  तत्व  परमपिता  राम  को  मन शरीर  को  दुर  रख  अपना  गुलाम  बनाये रखना चाहती  है  ताकी  वो  भव  चक्र  मे फसा  रहे  जन्म  मृत्यू  के  फेरे  मे  फसा  रहा  माया  की  इच्छा  पूर्ती  के  लिये  अधर्म  करता रहे  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Thanks Everyone

Native Rule Movement celebrated Native Fortnight from 9 th August to 24 th August, 2025 ! Thanks Everyone for making it a grand success ! 

Nativist Deepa Raut
President 
Native Rule Movement