पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : बसंत : 7 : 5
बसंत : 7 : 5
आपन आपन चाहैं भोग , कहु कैसे कुशल परिहैं योग !
शब्द अर्थ :
आपन आपन = स्वयम ,खुद ! चाहैं = इच्छा , तृष्णा , लालच , माया , मोह ! भोग = सांसारिक वस्तुये , खाना पिना आदी उपभोग वस्तु ! कहु = कहते है ! कैसे = किसप्रकार ! कुशल = होशियारी ! परिहैं योग = योगायोग , नसीब !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर बसंत के इस पद में मानव स्वभाव को बताते हुवे कहते है मानव सांसारिक हर इच्छा चाहत चाहे वो जयाज नाजयाज हो उसे पुरा करना चाहता है ! भोग उपभोग की हर वस्तु उसे चाहिये , मालकी चाहिये खुद के लिये चाहिये ये तृष्णा लालाच माया मोह उसे गलत काम करती है जीससे वो कुछ लोगोंको तुच्छ , शुद्र , गुलाम मानने लगता है उनका शोषण करता है जैसे पुंजीवादी वर्णजाती वादी वसाहतवादी करते है और उसे योगायोग नसीब आदी नाम देकर ठगते है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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