Saturday, 30 August 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 7 : 5

पवित्र  बीजक  : प्रग्या बोध  :  बसंत  : 7 : 5

बसंत  : 7 : 5

आपन  आपन  चाहैं  भोग , कहु  कैसे  कुशल  परिहैं योग ! 

शब्द  अर्थ  : 

आपन  आपन  = स्वयम  ,खुद !   चाहैं  = इच्छा , तृष्णा  , लालच , माया , मोह  ! भोग  = सांसारिक  वस्तुये  , खाना  पिना  आदी उपभोग  वस्तु  ! कहु  = कहते  है  ! कैसे  = किसप्रकार  ! कुशल  = होशियारी  ! परिहैं  योग  = योगायोग , नसीब  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  मानव  स्वभाव  को  बताते  हुवे  कहते  है  मानव  सांसारिक  हर  इच्छा  चाहत चाहे   वो  जयाज  नाजयाज  हो  उसे  पुरा  करना  चाहता  है  ! भोग  उपभोग  की  हर  वस्तु  उसे  चाहिये  , मालकी  चाहिये  खुद  के  लिये  चाहिये  ये  तृष्णा लालाच  माया  मोह  उसे  गलत  काम  करती  है  जीससे  वो  कुछ  लोगोंको  तुच्छ  , शुद्र , गुलाम  मानने  लगता  है  उनका  शोषण  करता  है  जैसे  पुंजीवादी  वर्णजाती वादी   वसाहतवादी करते  है  और  उसे  योगायोग  नसीब  आदी  नाम  देकर  ठगते  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

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