पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : बसंत : 7 : 1
बसंत : 7 : 1
घरहि में बाबुल बाढ़लि रारि , उठि उठि लागलि चपल नारि !
शब्द अर्थ :
घरहि में = इस शरीर में , मनमें , जीव में ! बाबुल = पिता , निर्माता , चेतन तत्व राम ! बाढ़लि रारि = झगडा , विवाद ! उठि उठि = उठ उठ कर , बार बार ! लागलि = लगी हुवी है ! चपल नारि = हुशार माया मोह इच्छा तृष्णा !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर बसंत सात के इस प्रथम पद में ही तृष्णा माया मोह को बहुत ही चपल चंचल होशियार बताते है जो बार बार उठ उठ कर उसका खुद का पिता मन , जीव शरीर से बार बार झगडा करती रहाती है मेरी ही मानो मै जैसे बताती हूँ वैसा ही करो ! तृष्णा माया मोह पुरी तरह मन और शरीर पर हावी होना चाहती ह्य जीव को चेतन तत्व परमपिता राम को मन शरीर को दुर रख अपना गुलाम बनाये रखना चाहती है ताकी वो भव चक्र मे फसा रहे जन्म मृत्यू के फेरे मे फसा रहा माया की इच्छा पूर्ती के लिये अधर्म करता रहे !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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