लोकशाही और समाज में एक से अधिक धर्म अस्तित्व में होना इस स्थितिमे धर्म निरपेक्षता अनिवार्य हो जाती है।
जब तक संसारमे राजशाही थी तब तक जो धर्म राजा का वही धर्म प्रजा का माना जाता रहा है। विदेशी वैदिक धर्मी ब्राह्मण जब तक हिन्दुतान में नहीं घुसे थे तब तक यहाँके लोगो का एक मात्र धर्म था हिन्दू धर्म और सभी राजा हिन्दू ही थे। विदेशी ब्राह्मण उनके वैदिक ब्राह्मण धर्म के साथ आने के बाद धर्म की संख्या एक से बढ़ कर दो हो गयी पर तब भी राजा हिन्दू ही थे और जनता भी हिन्दू ही। केवल विदेशी ब्राह्मण वैदिक ब्राह्मण धर्मी थे और उन्हों ने अपने शुध्द रक्त बचावो आंदोलन के अंतर्गत अपने ब्राह्मण समाज जो बहुत ही काम था शयद एक आधा टक्का नेटिव समाज नेटिव हिन्दू धर्म से दूर रखा। विदेशी ब्राह्मण होम हवन करतेथे , जनेऊ धारण करते थे पर भोजन हिन्दू जैसा ही रहा होगा और परिधान भी हिन्दू जैसेhi धारण किये होंगे। पर वो हमें छुवो नहीं कहते थे जिस से विदेशी ब्राह्मण और हिन्दू धर्म और संस्कृति से अलग अलग बने रहे। पर विदेशी ब्राह्मण ज्यादा दिन हिन्दू से दूर नहीं रह सके। हिन्दू राजा प्रबल , ताकतवर , ऐश्वर्यवान थे इनसे ब्राह्मण कन्या को दूर नहीं रखा जा सकता था जिस कारण ब्राह्मण कन्याये हिन्दू राजा की रनिया बनाने लगी और ब्राह्मण ससुरे। फिर ब्रह्मिनो का राज घरानो में उठना बैठना ज्यादा हुवा और हिन्दू राजा पर विदेशी ब्राह्मण रानी एक प्रकारसे राज करने लगी और उनका विदेशी ब्राह्मण धर्म धीरे धीरे राज घरानो में घुसना शुरू हुवा , राजा के यहाँ यग्न्य होने लगे , होम हवन के साथ साथ हिन्दू राजा के ब्राह्मण रानी से हुवे पुत्रो के जनेऊ धारण पूजापाठ होने लगे . ये राजस थे स्थानीय इसलिए इन्हे क्षत्रिय अर्थात क्षत्रवाले , क्षेत्र , क्षेत्रीय कहे जाने लगे। फिर इनके देखादेखी रईस वेपारी भी गोरी चिट्ठी विदेशी ब्राह्मण वैदिक धर्मिया कन्या से ब्याह रचाने लगे। इनके पुत्र वेपारी अर्थात वैश कहलाने लगे। दो ताकतवर लोग अर्थात राजा और वेपारी का साथ मिलाने के कारण वैदिक ब्राह्मण धर्म को सौरक्षण प्राप्त हुवा और राज मान्यता मिलाने लगी। रामायण , महाभारत काल तक वीदेशी वैदिक ब्राह्मण धर्म एक नगण्य धर्म रहा है और सभी राजा हिन्दू धर्मी। होम हवन को जनता ने कभी पसंद नहीं किया। जस कारण रामायण काल में होम हवन को तहस नहस किया किया जाता रहा है , खुद पुरातन काल में भगवन शिव ने होम हवन तहस नहस किये है।
पच्छिम देशो में एक से अनेक धर्म बनाने के बाद और राज सत्ता या पोप सत्ता नाकारें के बाद लोकशाही में सर्कार का क्या धर्म होना चाहिए इस पर बहुत बहस हुवी और वही से सेकुलरिज्म अर्थात धर्म निरपेक्षता या निधर्मीयात्व का उदय हुवा।
भारत में जब लोकशाही बनी तब ये प्रश्न निर्माण हुवा देश की सर्कार कैसी हो ? सरकर सेक्युलर हो कहा गया पर सेक्युलर की व्याख्या कुछ लोग जान बुज कर गुमराह करने के लये सर्वधर्म समभाव इस अर्थ से करने लगे और इनमे ज्यादातर विदेशी वैदिक ब्रह्मिन धर्मी रहे है।
सवाल उठता है क्या वैदिक ब्राह्मण धर्म धर्म है ? हमारा मानना है वैदिक ब्राह्मण धर्म धर्म नहीं बल्कि अधर्म है , उनकी संस्कृति नहीं विकृति है। फिर इस विकृति को , अधर्म को हम सर्व धर्म सम भाव की नजर से कैसे देख सकते। हम अधर्म को फैलाने की छूट कैसे दे सकते ? कदापि नहीं।
नेटिविस्ट डी डी राउत ,
विचारक
मूल भारतीय विचार मंच
जब तक संसारमे राजशाही थी तब तक जो धर्म राजा का वही धर्म प्रजा का माना जाता रहा है। विदेशी वैदिक धर्मी ब्राह्मण जब तक हिन्दुतान में नहीं घुसे थे तब तक यहाँके लोगो का एक मात्र धर्म था हिन्दू धर्म और सभी राजा हिन्दू ही थे। विदेशी ब्राह्मण उनके वैदिक ब्राह्मण धर्म के साथ आने के बाद धर्म की संख्या एक से बढ़ कर दो हो गयी पर तब भी राजा हिन्दू ही थे और जनता भी हिन्दू ही। केवल विदेशी ब्राह्मण वैदिक ब्राह्मण धर्मी थे और उन्हों ने अपने शुध्द रक्त बचावो आंदोलन के अंतर्गत अपने ब्राह्मण समाज जो बहुत ही काम था शयद एक आधा टक्का नेटिव समाज नेटिव हिन्दू धर्म से दूर रखा। विदेशी ब्राह्मण होम हवन करतेथे , जनेऊ धारण करते थे पर भोजन हिन्दू जैसा ही रहा होगा और परिधान भी हिन्दू जैसेhi धारण किये होंगे। पर वो हमें छुवो नहीं कहते थे जिस से विदेशी ब्राह्मण और हिन्दू धर्म और संस्कृति से अलग अलग बने रहे। पर विदेशी ब्राह्मण ज्यादा दिन हिन्दू से दूर नहीं रह सके। हिन्दू राजा प्रबल , ताकतवर , ऐश्वर्यवान थे इनसे ब्राह्मण कन्या को दूर नहीं रखा जा सकता था जिस कारण ब्राह्मण कन्याये हिन्दू राजा की रनिया बनाने लगी और ब्राह्मण ससुरे। फिर ब्रह्मिनो का राज घरानो में उठना बैठना ज्यादा हुवा और हिन्दू राजा पर विदेशी ब्राह्मण रानी एक प्रकारसे राज करने लगी और उनका विदेशी ब्राह्मण धर्म धीरे धीरे राज घरानो में घुसना शुरू हुवा , राजा के यहाँ यग्न्य होने लगे , होम हवन के साथ साथ हिन्दू राजा के ब्राह्मण रानी से हुवे पुत्रो के जनेऊ धारण पूजापाठ होने लगे . ये राजस थे स्थानीय इसलिए इन्हे क्षत्रिय अर्थात क्षत्रवाले , क्षेत्र , क्षेत्रीय कहे जाने लगे। फिर इनके देखादेखी रईस वेपारी भी गोरी चिट्ठी विदेशी ब्राह्मण वैदिक धर्मिया कन्या से ब्याह रचाने लगे। इनके पुत्र वेपारी अर्थात वैश कहलाने लगे। दो ताकतवर लोग अर्थात राजा और वेपारी का साथ मिलाने के कारण वैदिक ब्राह्मण धर्म को सौरक्षण प्राप्त हुवा और राज मान्यता मिलाने लगी। रामायण , महाभारत काल तक वीदेशी वैदिक ब्राह्मण धर्म एक नगण्य धर्म रहा है और सभी राजा हिन्दू धर्मी। होम हवन को जनता ने कभी पसंद नहीं किया। जस कारण रामायण काल में होम हवन को तहस नहस किया किया जाता रहा है , खुद पुरातन काल में भगवन शिव ने होम हवन तहस नहस किये है।
पच्छिम देशो में एक से अनेक धर्म बनाने के बाद और राज सत्ता या पोप सत्ता नाकारें के बाद लोकशाही में सर्कार का क्या धर्म होना चाहिए इस पर बहुत बहस हुवी और वही से सेकुलरिज्म अर्थात धर्म निरपेक्षता या निधर्मीयात्व का उदय हुवा।
भारत में जब लोकशाही बनी तब ये प्रश्न निर्माण हुवा देश की सर्कार कैसी हो ? सरकर सेक्युलर हो कहा गया पर सेक्युलर की व्याख्या कुछ लोग जान बुज कर गुमराह करने के लये सर्वधर्म समभाव इस अर्थ से करने लगे और इनमे ज्यादातर विदेशी वैदिक ब्रह्मिन धर्मी रहे है।
सवाल उठता है क्या वैदिक ब्राह्मण धर्म धर्म है ? हमारा मानना है वैदिक ब्राह्मण धर्म धर्म नहीं बल्कि अधर्म है , उनकी संस्कृति नहीं विकृति है। फिर इस विकृति को , अधर्म को हम सर्व धर्म सम भाव की नजर से कैसे देख सकते। हम अधर्म को फैलाने की छूट कैसे दे सकते ? कदापि नहीं।
नेटिविस्ट डी डी राउत ,
विचारक
मूल भारतीय विचार मंच
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