Thursday, 20 February 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Vipramatisi : 9

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : विप्रमतीसी : 9

विप्रमतीसी : 9

नहाय खोरि उत्तम होय आये , विष्णु भक्त देखत दुख पावे ! 

शब्द अर्थ : 

नहाय = स्नान ! खोरि = शृगार , तिलक चन्दन ! उत्तम = महंगे पेहराव , कपडे , सोवला वस्त्र ! विष्णु = एक मुलभारतिय हिन्दू देवता बुद्ध ज़िसका ब्राह्मणीकरण किया गया , विषय वासना का अंत करने वाला बुद्ध ग्यानी ! भक्त : विचार मानने वाला ! देखत = मिलते ही ! दुख = कष्ट , नाखुश ! पावे = होना ! 

प्रग्या बोध :

परमात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्मी पांडे पूजारी अर्थात विप्र यानी प्रग्या विरोधी ब्राह्मण की सोचविचार की समिक्षा करते हुवे कहते है ये विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पूजारी सबेरे उठाते ही नहा धोकर चन्दन माला तिलाक चोटी आदी खुबसुरत बनाकर अच्छे वस्त्र पहन घर से रोज सबेरे से ही मुलभारतिय हिन्दूधर्मी लोगोंसे दान दाक्षिणा मांगने निकल पडते है ! 

अच्छी दाक्षिणा देने वाले लोगोंको मिश्र रंग का धागा यानी कलेवा बांध कर बकरा फस गया सोच कर खुश होते है पर अगर कोई मुलभारतिय हिन्दूधर्मी जो सच्चा प्रग्या बोध का ग्यानी हो , या बुद्ध यानी विष्णु ज़िसने विषय वासना का दमन किया हो के अनुयाई सामने आते ही इन विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्मी पांडे पूजारी का मुख उतर जाता है ये लोग बडे दुखी कष्टी होते है क्यू की विष्णु की यानी बुद्ध की भक्ती करने वाले लोग एक फूटी कौडी भी इन विदेशी यूरेशियन पांडे पूजारी को नही देते उलटे इनको इनके ढ़ोगं धतुरे अधर्म विकृती के लिये इन वैदिकधर्मी ब्राह्मनोको खरी खोटी सुनाते है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्डहिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Monday, 17 February 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Vipramatisi : 6

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : विप्रमतीसी : 6

विप्रमतीसी : 6

कुल उत्तम जग माहिं कहावैं , फिर फिर मध्यम कर्म करावैं !

शब्द अर्थ : 

कुल = जन्म परिवार ! कहावैं = बताना ! उत्तम = नामी , विख्यात , श्रेष्ठ ! फिर फिर = द्वार द्वार जाकर ! मध्यम = सामान्य ! कर्म = धर्म कार्य , कर्मकांड ! करावैं = कराना ! 

प्रग्या बोध :

परमात्मा कबीर विप्रमतीसी के इस दोहे में विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म के कार्मकांड को बहुत ही मामुली और अर्थहिन बताते हुवे कहते है ये विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पूजारी ब्राह्मण खुद को बडे ऊँचे कुल कुटूम्ब समाज के बताते है और इनका धर्मविचार बहुत ही निच विचार से भरा पडा है ज़िसमे वर्ण जाती , छुवाछुत भेदभाव अस्पृष्यता विषमता भरी पडी है ! 

खुद को ब्रह्मा नामके उनके देवता के मुख से पैदा हुवे बताते है और इनका धर्मग्रंथ वेद और वैदिक ब्राह्मण धर्म खुद ब्रह्मा द्वारा रचित है बताते है उसी ब्रह्माने वर्ण उचनीच भेदाभेद गैर बराबरी विषमता शोषण की अनुमती दी है और उसके एक बेटे मनु ने मनुस्मृती का कानुन बनाकर जाती , भेदाभेद आदी का अमानविय कानुन बनाया है जो सही है ऐसा बताते है ! 

इनके कर्मकांड मे होमहवन , जनेऊ , प्राणीहत्या , सोमरस नामक दारू और वेभीचार को ये धर्म कहते है , अर्थहीन वेदमंत्र को शक्तीशाली बताते है जीसके कहने से साक्षात ब्रह्मा वरूण इन्द्र आदी चारित्रहीन देवाता सशरीर होम अग्नी से प्रगट होते है इच्छित वर धन संपत्ती देते है कहने वाले ये ब्राह्मण खुद मुलभारतिय हिन्दूधर्मी लोगोंके यहाँ घर घर जाकर दान दाक्षिणा भीक मांगते है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्यान , अखण्डहिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Sunday, 16 February 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Vipramatisi : 5

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : विप्रमतीसी : 5

विप्रमतीसी : 5

प्रेत कनक मुख अन्तर बासा , आहुति सत्य होम की आसा ! 

शब्द अर्थ : 

प्रेत = मृत शरीर ! कनक = स्वर्ण , सोना चान्दी !
आहुति = होम हवन की सामुग्री ! सत्य होम = सत्य नारायण पूजा ! आसा = इच्छा , लालच ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म की पोलखोल करते हुवे इस विप्रमतीसी के दोहे मे बताते है की ये विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म के पांडे पूजारी ज़िते जी इंसान को ऊचनीच , अछुत , शुद्र अस्पृष्य बताते है छुवाछुत करते है वर्ण जाती मे बाटते है , शोषण करते है पर मरने के बाद भी ठगने से नही रहते है ! 

मृत व्यक्ती को स्वर्ग नरक , उसका मार्ग क्रमन आसान होगा बताकार मृत व्यक्ती के मुख मे सोना चान्दी के जेवरात , बन्दा चान्दी का रूपया आदी रखवाते है ! पूजा वैदिक मंत्र का ढ़ोंग करते है और उसके बाद अग्नी देने से पहले सोना चान्दी जेवरात आदी निकालकार खुद अपने घर ले जाते है उसी प्रकार सत्यनारायण पूजा पाठ मे होम हवन आदी सामुग्री मंगाते है और पूजा के बाद मेवा मिठाई खारिक बादाम फल सभी समेटे अपने घर ले जाते है और चाहे मौत हो , कोई भी पूजा हो आपनी दक्षिना मांगने से कभी बाज नही आते है ! लोगोंके सुख दुख से इने कोई मतलब नही दान दक्षिणा लेना , लोगोंको ठगना यही इनका नित्यकर्म और धर्म है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्यान , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Saturday, 15 February 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Vipramatisi : 4

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : विप्रमतीसी  : 4

विप्रमतीसी  : 4

ग्रहण  अमावस  और दूईजा ,  शांति पांति  प्रयोजन  पूजा  !

शब्द  अर्थ  : 

ग्रहण  = सूर्य  चन्द्र  ग्रहण  !  अमावस = अमावश्या  ! दूईजा  = द्वितिया  आदी  तिथी  !    शांति  = शनी  शांती  , पांती   = नवग्रह  !  पूजा  = पूजा  अन्य  धार्मिक  अनुष्ठन  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण  धर्म  के  पांडे  पूजारी पंडित  ब्राह्मण को  विप्र   कहते  है  जो  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  और  देश  के  दुष्मन  है  ! 

वे  बाहर  आये  है  और  अपने  साथ  विपरित  बुद्धी  अर्थात विपरित  प्रग्या  या  प्रग्या  विरोधी  , ग्यान  विरोधी  , परख  विरोधी  ऊनकी  पूजा  पाठ  विकृती  और  अधर्म  साथ  लाये  है  ज़िसमे  सूर्य  चन्द्र ग्रहण पर  दान  दक्षिणा  मांगना  , द्वितिया चातुर्थी आदी  सभी  तिथियोंको  किसी  न  किसी  ग्रह  , मन  गढांत  देवी  देवता  के साथ  जोड  कर  उनकी  पूजा  पाठ  शांती  कराने के बहाने  भोले  भाले  आम  जनता को ठगना , असत्य   नारायण  आदी  की  पूजा  भूत  प्रेत  , पुनरजन्म  नरक  स्वर्ग पितर   शांती  आदी  सेकडो  हथखंडे  इन  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण  धर्मी लोगोने  बनाये  और  जाती  वर्ण  होम हवन  ऊचनीच  भेदाभेद   छुवाछुत  अस्पृष्यता  आदी  अमानविय  , अविवेकी   रिती रीवाज  बनाकर मुलभारतिय  हिन्दूधर्मी  समाज  मे  फूट  ड़ालकर  शोषण  करते  रहे  !

धर्मात्मा  कबीर  विपरित  बुद्धी  वाले  इन  लोगोंको  विप्र कहते  है  और  इनके  धर्म को  अधर्म कहते है  और  इनकी  संस्कृती  को  विकृती  शोषण  बताते  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व   परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ
कल्यान , अखण्डहिन्दुस्तन  , शिवशृष्टी

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Vipramatisi : 3

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : विप्रमतिसी : 3

विप्रमतीसी : 3

जेहि सिरजा तेहि नहिं पहिचाने , कर्म धर्म मति बैठि बखाने : 3

शब्द अर्थ : 

सिरजा : परमात्मा , चेतान तत्व राम , कबीर ! 
कर्म = कर्म कांड ! धर्म = तात्विक विचार ! 

प्रग्या बोध :

परमात्मा कबीर विदेशी यूरेशियान वैदिक धर्म के पंडे पूजारी ब्राह्मण आदी की पोल खोल करते हुवे मुलभारतिय हिन्दू धर्मी लोगोंको बताते है की विदेशी यूरेशियान ब्राह्मण निरे अग्यानी है वे विकृत होम हवन , गाय बैल घोडे की होम बली जैसे विकृती को धर्म कहते है , नशा लैंगिक आदी अश्लिल कर्म कांड को धर्म कहते है जब की ये अधर्म और विकृती है ! 

कबीर साहेब विदेशी यूरेशियान वैदिक ब्राह्मण धर्म को अधर्म मानते हुवे उसे मुलभारतिय हिन्दू धर्म से अलग बताते है ! विदेशी यूरेशियान वैदिक धर्म की मनुस्मृती को ढ़ोंग और मानव विरोधी बताते है , अस्पृष्यता ऊचनीच भेदाभेद वर्ण जाती को कबीर साहेब नकारते है ,पुरे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म को मानवता का विरोधी बताते है जैसा की विप्र का अर्थ होता है विदेश से हमारे देश में अवैध प्रवेश करने वाले शत्रू ! विपरिय प्रग्या रखने वाले लोग , प्रग्या को नही मानने वाले लोग या देश के दुष्मन ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्यान , अखण्डहिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Friday, 14 February 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Vipramatisi : 1

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : विप्रमतीसी  

विप्रमतीसी : 1

सुनहु सबन मिलि विप्रमतीसी , हरि बिनु बुडी नाव भरीसी : 1

शब्द अर्थ :

विप्र = विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण ! मतीसी = धर्म , विचार ! हरि = अग्यान हरने वाला सदगुरू !  

प्रग्या बोध : 

चेतन राम तत्व परमात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म का विचार और आचरण मुलभारतिय हिन्दूधार्मी समाज को समझाते हुवे कहते है भाईयों सुनो इन विदेशी यूरेशियान वैदिक धर्मी लोगोंको सच्चे धर्म का कोई ग्यान नही है ना इनके पास उनका अग्यान हरने वाला कोई सदगुरू है , ये बस हिंसक होम हवन और उसमे गाय बैल घोडे आदी की बली देकार ऊँची आवाज मे व्यर्थ की बडबड और सोम रस की दारू मदिरा पिना और मृत जानवर की अतडी जानेऊ मानकर गले मे पहनना , होम हवन की अग्नी जलाये रखने उसमे जानवर की चार्बी ड़ालते रहना कुछ अन्य वस्तु ये अनाज को भी जालते रखाने के असभ्य रिती रिवाज , विकृत हरकते और शिल रहित आचरण को बडा भारी और उत्कृष्ट धर्म समजते है ! ये बाप बेटी , बहन भाई , माँ बेटा आदी कोई सामाजिक रिस्ते का पालन नही करते शिल सदाचार , अहिंसा आदी उच्च मानविय विचार और धर्म , सत्यधर्म , सदधर्म ,संसार का आद्य धर्म मुलभारतिय हिन्दूधर्म के शिल सदाचार शांती अहिंसा भाईचारा समता वैग्यानिक सोच , विश्व बंधुत्व आदी उत्तम धर्म को ये लोग नही मानते ! ये हिन्दुस्तान , हिन्दूसमाज , मुलभारतिय हिन्दूधर्म के विरोधी है , मानवता के दुष्मन है ! 

धर्मविक्रामादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्यान , अखण्डहिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Vipramatisi : 2

पवित्र बीजक :: प्रग्या बोध : विप्रमतीसी : 2

विप्रमतीसी : 2

ब्राह्मण होय के ब्रह्म न जाने , धरमा य़ग्या प्रतिग्रह आने !

शब्द अर्थ : 

ब्राह्मण = विदेशी यूरेशियन वैदिकधर्मी पांडे , पूजारी , ब्राह्मण ! ब्रम्ह = ब्राह्मनो का देवता ब्रह्मा ! य़ग्य = होमहवन ज़िसमे गाय , बैल ,घोडे आदी की बली दी जाती है , धार्मिक अनुष्ठन ! प्रतिग्रह = नवग्रह पूजा, पंचांग आदी ! 

प्रग्या बोध :

परमात्मा कबीर विप्रमतीसी के दुसारे दोहे मे विदेशी यूरेशियन ब्राह्मण लोगोंका धर्म क्या है बताते हुवे कहते भाईयों इन विदेशी यूरेशियान लोगोंके धर्म का नाम विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म है ! 

इस धर्म के लोग आपने आप को पंडे , पंडित ब्राह्मण बताते है ऊनके धर्म ग्रंथ चार वेद है एसा बताते है , वर्ण जाती ऊचनीच भेदाभेद असप्रिश्यता आदी का समर्थन करने वाले वेद और मनुस्मृती के कायदे और उनका निर्माता देवता ब्रह्मा है और वरूण इन्द्र सोंम रुद्र आदी ऊनके देवता होम अग्नी से साक्षात स शरीर प्रगट होते है गाय बैल घोडे आदी की होम बली सोमरस आदी दारू मादक पेय और अपसरा रंभा ऊर्वशी मेंनका आदी और अन्य इच्छित वर देते है एसी ऊनकी वैदिक धर्म मान्यता है ! 

होम हवन से नव ग्रह शांती , प्रसन्न होते है नव ग्रह ये इनके देवता है और पंचांग , शुभ महूर्त , ग्रह शांती , चन्द्र सूर्य ग्रहण आदी के मार्ग से ये ब्राह्मण अन्य लोगोको , ऊनके अपने विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण समाज मे अनेक भ्रम जैसे ब्रह्म रक्षास , राहु काल , वर्ण वर्ग गण गोत्र 36 गुण आदी भ्राह्मक कल्पना स्वर्ग नरक आदी से डराकर लोगो से दान दक्षिणा मांगते है ! इसी को ये वैदिक ब्राह्मण धर्म कहते है !

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्यान , अखण्डहिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Tuesday, 11 February 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : Ksh

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : ग्यान चौंतिसा : क्ष

ग्यान चौंतिसा : क्ष 

क्षक्षा क्षिनमें परलय सब मिटी जाई , छेवपरे तब को समुझाई /
छेवपरे काहु अंत न पाया , कहहिं कबीर अगमन गोहराई //

शब्द अर्थ :

छेव = चोट , घाव ,वार ! अगमन = आना जाना , जन्म मृत्यू का फेरा ! गोहराई = पुकार , बुलाना , बिनंती ! 

प्रग्या बोध : 

धर्मात्मा कबीर ग्यान चौंतिसा के अक्षर क्ष के माध्यम से उपदेश देते हुवे कहते है भाईयों इस संसार मे पल पल बदल होता है ! जैसे अभी है थोडे समय के बाद संसार वैसा ही नही होगा ! जीवन तो पानी के बुलबुले की तरह होता , कब वार हो और फूट जाय कोई भरोसा नही यहाँ तक की आदमी की ज़िन्दागी माँ के पेट मे भी खत्म हो जाती है न माँ का ड़ींब फलता है न पुरूष का विर्य ! एसे क्षणभंगुर जीवन में तुम इस पल ज़िन्दा हो तो उसका सद उपयोग करो ! इस समय ज़िते जी तुम अवागमन के फेरे से , दुख से बचने से उपाय की कोशिश नही करोगे तो क्या मरने के बाद तुम्हे मौका मिलेगा ? 

चेतन तत्व राम स्वरूप परमात्मा कबीर स्वयम तुम्हे यहाँ दुख से बचने की सिख देते है और बताते है की ज़िते जी ही तुम धर्म का पालन कर सकते हो मौत के बाद नही ! इस लिये कबिर साहेब कहते कल करे सो आज कर , आज करे सो अभी ! क्षण का ये माहात्म है , परमपिता परमात्मा कबीर से बढकर कौन हमे समझा सकता है ! 

धर्मविक्रामादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम  
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्यान , अखण्डहिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Saturday, 8 February 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : Sha

पवित्र बीजक: प्रज्ञा बोध : ज्ञान चौंतीसा : ष

ज्ञान चौंतीसा : ष 

ष ष खरा करे सब कोई, खर खर करे काज नहिं होई /
ष ष कहैं सुनहु रे भाई, राम नाम ले जाहु पराई //

शब्द अर्थ : 

खरा = सत्य ! खर खर = मेरा ही खरा ! पराई = दूसरे की ! राम = अंतर चेतन मन ! 

प्रज्ञा बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के इस अक्षर ष के माध्यम से उपदेश देते हुवे कहते है भाईयो सत्य बड़ा अदभुत है ! इस संसार में सत्य ही धर्म है , वही संसार का चक्र सुव्यवस्थित रखता है ! सत्य बोलना उत्तम है पर मेरी ही बात सुनो वही सत्य है कहना भी गलत है ! 

कबीर साहेब कहते हैं हमे अपनी बात शांति और धर्य से कहना चाहिए पर उत्तेजित, घुस्सा कर नहीं कहना चाहिए ! दूसरे की बात शांति से सुनना चाहिए ! सत्य क्या है यह उस चेतन तत्व राम से छुपा नहीं है जो आप के दिल में रहता है अंतर्मन में रहता है , उससे झूठ बोलने का कोई फायदा नहीं ना झूठ को बार बार जोर देकर कहने से बदलेगा न बदला जा सकता है ! 

धर्मात्मा कबीर खुद को सत्य वक्ता बताते है, सत्य ही उनका धर्म था सत्य ही उनका आचरण ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मूलभारती 
मूलभारतीय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण, अखंडहिंदुस्थान, शिवसृष्टि

Friday, 7 February 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : Sh

पवित्र बीजक : प्रज्ञा बोध : ज्ञान चौंतीसा :: श 

ज्ञान चौंतीसा : श 

शशा सर नहिं देखे कोई, सर शीतलता एकै होई /
शशा कहै सुनहु रे भाई, शून्य समान चला जग जाई //

शब्द अर्थ : 

सर = शर , जल

प्रज्ञा बोध :

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा का अक्षर श के माध्यम से उपदेश देते हुवे कहते है भाईयो सुनो शर अर्थात जल का स्वभाव ठंडक है वैसे ही मानव का स्वभाव शीतलता भरा होना चहिए ! 

कबीर साहेब कहते हैं उग्र ना बनो, अहंकार और क्रोधित ना हो जैसे पाणी अंतःकरण से शीतलता लिऐ होता है और गर्म होने पर भी अग्नि को बुझाने का काम करता है वैसे ही अपने मन में लोक कल्याण की भावना कायम रहने दे , क्रोध कर धर्म ना भूल जाए ! मानव स्वभाव समाजवादी कल्याणकारी परोपकारी बना रहे यही सिख धर्मात्मा कबीर साहेब यहां हमे देते है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मूलभारती 
मूलभारतीय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण, अखंडहिंदुस्थान, शिवसृष्टि

Wednesday, 5 February 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : L

पवित्र बीजक : प्रज्ञा बोध : ज्ञान चौंतीसा : ल 

ज्ञान चौंतीसा : ल 

लला तुतुरे बात जनाई, तुतुरे आय तुतुरे परिचाई /
आप तुतुरे और को कहई, एकै खेत दूनों नर्बहई //

शब्द अर्थ : 

तुतुरे = तुतलाते वाले , हल्काने वाले ! परिचाई = जाहिर होना ! खेत = क्षेत्र , स्थान ! 

प्रज्ञा बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के अक्षर ल के माध्यम से धर्म ज्ञान , प्रज्ञा बोध देते हुवे कहते है भाइयों संसार में ज्ञानी और अज्ञानी दोनों है और दोनों अपने आप का परिचय अपने ज्ञान और अज्ञान से देते है ! यहां तक की अबोध बालक जो बचपन में तुतलाता है उसे भी लगता है वो सही बोल रहा है और दूसरे वही बोल गलत ढंग से बोल रहे है ! 

कबीर साहेब धर्म के बारे में भी लोग ऐसे ही कर रहे है ऐसा कहते हुवे कहते है विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के हकलाने वाले पांडे पुजारी ब्राह्मण भी अग्यानी तुतलाते वाले बालक जैसे ही उनके अधार्मिक तुतले ज्ञान को धर्म बता रहे है ! पर ज्ञानी तो वहीं है जो इसका निर्णय करते है क्या बोल सही है ! 

कबीर साहेब विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और मूलभारतीय हिन्दूधर्म को अलग अलग मानते है और विदेशी यूरेशियन को धर्म को बचकाना ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मूलभारती 
मूलभारतीय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण, अखंडहिंदुस्थान, शिवश्रृष्टि

Tuesday, 4 February 2025

Pavitra Bijak: Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : R

पवित्र बीजक : प्रज्ञा बोध : ज्ञान चौंतीसा : र 

ज्ञान चौंतीसा : र 

ररा रारि रहा अरुझाई, राम के कहै दुख दारिद्र जाई /
ररा कहै सुनहु रे भाई, सतगुरु पूँछि के सेवहु आई //

शब्द अर्थ : 

रारि = झगड़ा ! राम = चेतन तत्व राम ! 

प्रज्ञा बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के अक्षर र के माध्यम से उपदेश देते हुवे कहते है भाईयो सुनो मैं एक झगड़ा बताता हूँ जो लोग नही जानते वो है राम क्या है ? 

कबीर साहेब कहते राम दशरथ नंदन नाम का मौर्य वंशी सम्राट हुवा है जो सम्राट अशोक का नाती और अंधे कुणाल का बेटा था जिसे सम्राट अशोक अपने बड़े बेटे कुणाल जन्म से अंध होने के कारण अपना उत्तराधिकारी और मौर्य सम्राट बनाना चाहते थे पर वो छोटा था इसलिए सम्राट अशोक ने उसका दूसरा बेटा दशरथ को राजगद्दी दी और संप्रति राम बड़ा होने पर उसे सौंपने की बात कही ! 

राम छोटा था इसलिए एक बौद्ध भिक्कु विश्वामित्र के पास पढ़ाई के लिये और भारत भ्रमण विहार आदि के दर्शन के लिए भेजा गया , १२ वर्ष बाद जब वो बड़ा हुवा तो दशरथ ने उसे वापस लौट ने के लिये कहा ताकि वो उसे उसका राजपाट सौंप सके ! संप्रति पूरे भारत और सीलोंन के बुद्ध विहार के दर्शन कर और वहां अपने दूसरे चाचा महेंद कौर बुवा संघ मित्रा से भेट और आशीर्वाद लेकर हिंदुस्थान आया तब परशुराम नामक विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का एक ब्राह्मण जो मूलभारतीय स्त्री रेणुका का बेटा था और वैदिक ब्राह्मणधर्म के मुताबिक संकरित ब्राह्मण भूमिहार था उसने आज के अयोध्या यानी साकेत के पास अपना राज्य बनाने की कोशिश की जिसे संप्रति राम मौर्य ने मार डाला और बाद में पूरे मौर्य साम्राज्य का सम्राट बना , अच्छे विचार और कार्य के कारण लोग उसे भगवान बुद्ध का अवतार मानने लगे लोग उसकी मिसाल दे कर उसको पूजने लगे बुद्ध के साथ साथ उसके भी मंदिर बनाने लगे ! 

कबीर साहेब इसी राजा राम और चेतन तत्व राम के दार्शनिक झगड़े की बात करते हुवे कहते है भाई मैं चेतन तत्व राम की पूजा अर्थात स्वानुभूति की बात करता हूं और लोग राजा राम की मंदिर में पत्थर की मूर्ति पूजा में अटके पड़े है !:

मूलभारतीय हिन्दूधर्म के लोगोंको कबीर साहेब यही भेद बार बार समझाते है भाई मेरा राम अजर अमर निर्गुण निराकार अविनाशी परमतत्व परमात्मा चेतन राम है जो हम सब में है संसार के कण कण में है उसे जानो, पत्थर की राम की मू छोड़े

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मूलभारती 
मूलभारतीय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण, अखंड हिंदुस्थान, शिवश्रृष्टि

Hindu Jaati Varn Me Batenge To Videshi Vaidik Brahman Lutenge !

#सावधान हो जावो, मुलभारतिय हिन्दू जाती वर्ण मे बटेंगे तो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्मी पांडे पंडित ब्राह्मण लूटेंगे !

#दौलतराम

Monday, 3 February 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : Y

पवित्र बीजक : प्रज्ञा बोध : ज्ञान चौंतीसा : य 

ज्ञान चौंतीसा : य 

यया जगत रहा भरपूरी, जगतहु ते है जाना दूरी /
यया कहै सुनहु रे भाई, हमहिं ते इन जै जै पाई /

शब्द अर्थ : 

हमहिं ते = अहंकार से ! जै जै = कल्याण, बड़प्पन ! 

प्रज्ञा बोध :

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा का अक्षर य का तात्पर्य समझाते हुवे कहते है भाईयो मन में संसार की आसक्ति बहुत ज्यादा होती है, मन के कारण तन को छोड़ना बहुत दुखदाई होता है  पर ये समझ लो सब को एक दिन ये शरीर ये संसार एक दिन छोड़ कर जाना ही है ! 

कबीर साहेब कहते है भाई संसार को जब त्याग कर एक दिन जाना है तो मोह माया इच्छा तृष्णा को भी त्याग दो तो खुशी खुशी संसार से बिदा हो सको ! जितना संसार के मोह माया में फंसे रहोगे सुख कम दुख ही जादा पावोगे !  और भाई इसमें तुम्हारा कल्याण नहीं है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
जगतगुरू नरसिंह मूलभारती 
मूलभारतीय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण, अखंडहिंदुस्थान, शिवश्रृष्टि