विप्रमतीसी : 9
नहाय खोरि उत्तम होय आये , विष्णु भक्त देखत दुख पावे !
शब्द अर्थ :
नहाय = स्नान ! खोरि = शृगार , तिलक चन्दन ! उत्तम = महंगे पेहराव , कपडे , सोवला वस्त्र ! विष्णु = एक मुलभारतिय हिन्दू देवता बुद्ध ज़िसका ब्राह्मणीकरण किया गया , विषय वासना का अंत करने वाला बुद्ध ग्यानी ! भक्त : विचार मानने वाला ! देखत = मिलते ही ! दुख = कष्ट , नाखुश ! पावे = होना !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्मी पांडे पूजारी अर्थात विप्र यानी प्रग्या विरोधी ब्राह्मण की सोचविचार की समिक्षा करते हुवे कहते है ये विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पूजारी सबेरे उठाते ही नहा धोकर चन्दन माला तिलाक चोटी आदी खुबसुरत बनाकर अच्छे वस्त्र पहन घर से रोज सबेरे से ही मुलभारतिय हिन्दूधर्मी लोगोंसे दान दाक्षिणा मांगने निकल पडते है !
अच्छी दाक्षिणा देने वाले लोगोंको मिश्र रंग का धागा यानी कलेवा बांध कर बकरा फस गया सोच कर खुश होते है पर अगर कोई मुलभारतिय हिन्दूधर्मी जो सच्चा प्रग्या बोध का ग्यानी हो , या बुद्ध यानी विष्णु ज़िसने विषय वासना का दमन किया हो के अनुयाई सामने आते ही इन विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्मी पांडे पूजारी का मुख उतर जाता है ये लोग बडे दुखी कष्टी होते है क्यू की विष्णु की यानी बुद्ध की भक्ती करने वाले लोग एक फूटी कौडी भी इन विदेशी यूरेशियन पांडे पूजारी को नही देते उलटे इनको इनके ढ़ोगं धतुरे अधर्म विकृती के लिये इन वैदिकधर्मी ब्राह्मनोको खरी खोटी सुनाते है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ