ज्ञान चौंतीसा : ष
ष ष खरा करे सब कोई, खर खर करे काज नहिं होई /
ष ष कहैं सुनहु रे भाई, राम नाम ले जाहु पराई //
शब्द अर्थ :
खरा = सत्य ! खर खर = मेरा ही खरा ! पराई = दूसरे की ! राम = अंतर चेतन मन !
प्रज्ञा बोध :
धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के इस अक्षर ष के माध्यम से उपदेश देते हुवे कहते है भाईयो सत्य बड़ा अदभुत है ! इस संसार में सत्य ही धर्म है , वही संसार का चक्र सुव्यवस्थित रखता है ! सत्य बोलना उत्तम है पर मेरी ही बात सुनो वही सत्य है कहना भी गलत है !
कबीर साहेब कहते हैं हमे अपनी बात शांति और धर्य से कहना चाहिए पर उत्तेजित, घुस्सा कर नहीं कहना चाहिए ! दूसरे की बात शांति से सुनना चाहिए ! सत्य क्या है यह उस चेतन तत्व राम से छुपा नहीं है जो आप के दिल में रहता है अंतर्मन में रहता है , उससे झूठ बोलने का कोई फायदा नहीं ना झूठ को बार बार जोर देकर कहने से बदलेगा न बदला जा सकता है !
धर्मात्मा कबीर खुद को सत्य वक्ता बताते है, सत्य ही उनका धर्म था सत्य ही उनका आचरण !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मूलभारती
मूलभारतीय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
No comments:
Post a Comment