पवित्र बीजक : प्रज्ञा बोध : ज्ञान चौंतीसा : य
ज्ञान चौंतीसा : य
यया जगत रहा भरपूरी, जगतहु ते है जाना दूरी /
यया कहै सुनहु रे भाई, हमहिं ते इन जै जै पाई /
शब्द अर्थ :
हमहिं ते = अहंकार से ! जै जै = कल्याण, बड़प्पन !
प्रज्ञा बोध :
धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा का अक्षर य का तात्पर्य समझाते हुवे कहते है भाईयो मन में संसार की आसक्ति बहुत ज्यादा होती है, मन के कारण तन को छोड़ना बहुत दुखदाई होता है पर ये समझ लो सब को एक दिन ये शरीर ये संसार एक दिन छोड़ कर जाना ही है !
कबीर साहेब कहते है भाई संसार को जब त्याग कर एक दिन जाना है तो मोह माया इच्छा तृष्णा को भी त्याग दो तो खुशी खुशी संसार से बिदा हो सको ! जितना संसार के मोह माया में फंसे रहोगे सुख कम दुख ही जादा पावोगे ! और भाई इसमें तुम्हारा कल्याण नहीं है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
जगतगुरू नरसिंह मूलभारती
मूलभारतीय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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