विप्रमतीसी : 3
जेहि सिरजा तेहि नहिं पहिचाने , कर्म धर्म मति बैठि बखाने : 3
शब्द अर्थ :
सिरजा : परमात्मा , चेतान तत्व राम , कबीर !
कर्म = कर्म कांड ! धर्म = तात्विक विचार !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर विदेशी यूरेशियान वैदिक धर्म के पंडे पूजारी ब्राह्मण आदी की पोल खोल करते हुवे मुलभारतिय हिन्दू धर्मी लोगोंको बताते है की विदेशी यूरेशियान ब्राह्मण निरे अग्यानी है वे विकृत होम हवन , गाय बैल घोडे की होम बली जैसे विकृती को धर्म कहते है , नशा लैंगिक आदी अश्लिल कर्म कांड को धर्म कहते है जब की ये अधर्म और विकृती है !
कबीर साहेब विदेशी यूरेशियान वैदिक ब्राह्मण धर्म को अधर्म मानते हुवे उसे मुलभारतिय हिन्दू धर्म से अलग बताते है ! विदेशी यूरेशियान वैदिक धर्म की मनुस्मृती को ढ़ोंग और मानव विरोधी बताते है , अस्पृष्यता ऊचनीच भेदाभेद वर्ण जाती को कबीर साहेब नकारते है ,पुरे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म को मानवता का विरोधी बताते है जैसा की विप्र का अर्थ होता है विदेश से हमारे देश में अवैध प्रवेश करने वाले शत्रू ! विपरिय प्रग्या रखने वाले लोग , प्रग्या को नही मानने वाले लोग या देश के दुष्मन !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
No comments:
Post a Comment