ज्ञान चौंतीसा : ल
लला तुतुरे बात जनाई, तुतुरे आय तुतुरे परिचाई /
आप तुतुरे और को कहई, एकै खेत दूनों नर्बहई //
शब्द अर्थ :
तुतुरे = तुतलाते वाले , हल्काने वाले ! परिचाई = जाहिर होना ! खेत = क्षेत्र , स्थान !
प्रज्ञा बोध :
धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के अक्षर ल के माध्यम से धर्म ज्ञान , प्रज्ञा बोध देते हुवे कहते है भाइयों संसार में ज्ञानी और अज्ञानी दोनों है और दोनों अपने आप का परिचय अपने ज्ञान और अज्ञान से देते है ! यहां तक की अबोध बालक जो बचपन में तुतलाता है उसे भी लगता है वो सही बोल रहा है और दूसरे वही बोल गलत ढंग से बोल रहे है !
कबीर साहेब धर्म के बारे में भी लोग ऐसे ही कर रहे है ऐसा कहते हुवे कहते है विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के हकलाने वाले पांडे पुजारी ब्राह्मण भी अग्यानी तुतलाते वाले बालक जैसे ही उनके अधार्मिक तुतले ज्ञान को धर्म बता रहे है ! पर ज्ञानी तो वहीं है जो इसका निर्णय करते है क्या बोल सही है !
कबीर साहेब विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और मूलभारतीय हिन्दूधर्म को अलग अलग मानते है और विदेशी यूरेशियन को धर्म को बचकाना !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मूलभारती
मूलभारतीय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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