ज्ञान चौंतीसा : श
शशा सर नहिं देखे कोई, सर शीतलता एकै होई /
शशा कहै सुनहु रे भाई, शून्य समान चला जग जाई //
शब्द अर्थ :
सर = शर , जल
प्रज्ञा बोध :
धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा का अक्षर श के माध्यम से उपदेश देते हुवे कहते है भाईयो सुनो शर अर्थात जल का स्वभाव ठंडक है वैसे ही मानव का स्वभाव शीतलता भरा होना चहिए !
कबीर साहेब कहते हैं उग्र ना बनो, अहंकार और क्रोधित ना हो जैसे पाणी अंतःकरण से शीतलता लिऐ होता है और गर्म होने पर भी अग्नि को बुझाने का काम करता है वैसे ही अपने मन में लोक कल्याण की भावना कायम रहने दे , क्रोध कर धर्म ना भूल जाए ! मानव स्वभाव समाजवादी कल्याणकारी परोपकारी बना रहे यही सिख धर्मात्मा कबीर साहेब यहां हमे देते है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मूलभारती
मूलभारतीय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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