विप्रमतीसी : 5
प्रेत कनक मुख अन्तर बासा , आहुति सत्य होम की आसा !
शब्द अर्थ :
प्रेत = मृत शरीर ! कनक = स्वर्ण , सोना चान्दी !
आहुति = होम हवन की सामुग्री ! सत्य होम = सत्य नारायण पूजा ! आसा = इच्छा , लालच !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म की पोलखोल करते हुवे इस विप्रमतीसी के दोहे मे बताते है की ये विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म के पांडे पूजारी ज़िते जी इंसान को ऊचनीच , अछुत , शुद्र अस्पृष्य बताते है छुवाछुत करते है वर्ण जाती मे बाटते है , शोषण करते है पर मरने के बाद भी ठगने से नही रहते है !
मृत व्यक्ती को स्वर्ग नरक , उसका मार्ग क्रमन आसान होगा बताकार मृत व्यक्ती के मुख मे सोना चान्दी के जेवरात , बन्दा चान्दी का रूपया आदी रखवाते है ! पूजा वैदिक मंत्र का ढ़ोंग करते है और उसके बाद अग्नी देने से पहले सोना चान्दी जेवरात आदी निकालकार खुद अपने घर ले जाते है उसी प्रकार सत्यनारायण पूजा पाठ मे होम हवन आदी सामुग्री मंगाते है और पूजा के बाद मेवा मिठाई खारिक बादाम फल सभी समेटे अपने घर ले जाते है और चाहे मौत हो , कोई भी पूजा हो आपनी दक्षिना मांगने से कभी बाज नही आते है ! लोगोंके सुख दुख से इने कोई मतलब नही दान दक्षिणा लेना , लोगोंको ठगना यही इनका नित्यकर्म और धर्म है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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