विप्रमतीसी : 6
कुल उत्तम जग माहिं कहावैं , फिर फिर मध्यम कर्म करावैं !
शब्द अर्थ :
कुल = जन्म परिवार ! कहावैं = बताना ! उत्तम = नामी , विख्यात , श्रेष्ठ ! फिर फिर = द्वार द्वार जाकर ! मध्यम = सामान्य ! कर्म = धर्म कार्य , कर्मकांड ! करावैं = कराना !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर विप्रमतीसी के इस दोहे में विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म के कार्मकांड को बहुत ही मामुली और अर्थहिन बताते हुवे कहते है ये विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पूजारी ब्राह्मण खुद को बडे ऊँचे कुल कुटूम्ब समाज के बताते है और इनका धर्मविचार बहुत ही निच विचार से भरा पडा है ज़िसमे वर्ण जाती , छुवाछुत भेदभाव अस्पृष्यता विषमता भरी पडी है !
खुद को ब्रह्मा नामके उनके देवता के मुख से पैदा हुवे बताते है और इनका धर्मग्रंथ वेद और वैदिक ब्राह्मण धर्म खुद ब्रह्मा द्वारा रचित है बताते है उसी ब्रह्माने वर्ण उचनीच भेदाभेद गैर बराबरी विषमता शोषण की अनुमती दी है और उसके एक बेटे मनु ने मनुस्मृती का कानुन बनाकर जाती , भेदाभेद आदी का अमानविय कानुन बनाया है जो सही है ऐसा बताते है !
इनके कर्मकांड मे होमहवन , जनेऊ , प्राणीहत्या , सोमरस नामक दारू और वेभीचार को ये धर्म कहते है , अर्थहीन वेदमंत्र को शक्तीशाली बताते है जीसके कहने से साक्षात ब्रह्मा वरूण इन्द्र आदी चारित्रहीन देवाता सशरीर होम अग्नी से प्रगट होते है इच्छित वर धन संपत्ती देते है कहने वाले ये ब्राह्मण खुद मुलभारतिय हिन्दूधर्मी लोगोंके यहाँ घर घर जाकर दान दाक्षिणा भीक मांगते है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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