विप्रमतीसी : 2
ब्राह्मण होय के ब्रह्म न जाने , धरमा य़ग्या प्रतिग्रह आने !
शब्द अर्थ :
ब्राह्मण = विदेशी यूरेशियन वैदिकधर्मी पांडे , पूजारी , ब्राह्मण ! ब्रम्ह = ब्राह्मनो का देवता ब्रह्मा ! य़ग्य = होमहवन ज़िसमे गाय , बैल ,घोडे आदी की बली दी जाती है , धार्मिक अनुष्ठन ! प्रतिग्रह = नवग्रह पूजा, पंचांग आदी !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर विप्रमतीसी के दुसारे दोहे मे विदेशी यूरेशियन ब्राह्मण लोगोंका धर्म क्या है बताते हुवे कहते भाईयों इन विदेशी यूरेशियान लोगोंके धर्म का नाम विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म है !
इस धर्म के लोग आपने आप को पंडे , पंडित ब्राह्मण बताते है ऊनके धर्म ग्रंथ चार वेद है एसा बताते है , वर्ण जाती ऊचनीच भेदाभेद असप्रिश्यता आदी का समर्थन करने वाले वेद और मनुस्मृती के कायदे और उनका निर्माता देवता ब्रह्मा है और वरूण इन्द्र सोंम रुद्र आदी ऊनके देवता होम अग्नी से साक्षात स शरीर प्रगट होते है गाय बैल घोडे आदी की होम बली सोमरस आदी दारू मादक पेय और अपसरा रंभा ऊर्वशी मेंनका आदी और अन्य इच्छित वर देते है एसी ऊनकी वैदिक धर्म मान्यता है !
होम हवन से नव ग्रह शांती , प्रसन्न होते है नव ग्रह ये इनके देवता है और पंचांग , शुभ महूर्त , ग्रह शांती , चन्द्र सूर्य ग्रहण आदी के मार्ग से ये ब्राह्मण अन्य लोगोको , ऊनके अपने विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण समाज मे अनेक भ्रम जैसे ब्रह्म रक्षास , राहु काल , वर्ण वर्ग गण गोत्र 36 गुण आदी भ्राह्मक कल्पना स्वर्ग नरक आदी से डराकर लोगो से दान दक्षिणा मांगते है ! इसी को ये वैदिक ब्राह्मण धर्म कहते है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
No comments:
Post a Comment