पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : विप्रमतीसी : 4
विप्रमतीसी : 4
ग्रहण अमावस और दूईजा , शांति पांति प्रयोजन पूजा !
शब्द अर्थ :
ग्रहण = सूर्य चन्द्र ग्रहण ! अमावस = अमावश्या ! दूईजा = द्वितिया आदी तिथी ! शांति = शनी शांती , पांती = नवग्रह ! पूजा = पूजा अन्य धार्मिक अनुष्ठन !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म के पांडे पूजारी पंडित ब्राह्मण को विप्र कहते है जो मुलभारतिय हिन्दूधर्म और देश के दुष्मन है !
वे बाहर आये है और अपने साथ विपरित बुद्धी अर्थात विपरित प्रग्या या प्रग्या विरोधी , ग्यान विरोधी , परख विरोधी ऊनकी पूजा पाठ विकृती और अधर्म साथ लाये है ज़िसमे सूर्य चन्द्र ग्रहण पर दान दक्षिणा मांगना , द्वितिया चातुर्थी आदी सभी तिथियोंको किसी न किसी ग्रह , मन गढांत देवी देवता के साथ जोड कर उनकी पूजा पाठ शांती कराने के बहाने भोले भाले आम जनता को ठगना , असत्य नारायण आदी की पूजा भूत प्रेत , पुनरजन्म नरक स्वर्ग पितर शांती आदी सेकडो हथखंडे इन विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्मी लोगोने बनाये और जाती वर्ण होम हवन ऊचनीच भेदाभेद छुवाछुत अस्पृष्यता आदी अमानविय , अविवेकी रिती रीवाज बनाकर मुलभारतिय हिन्दूधर्मी समाज मे फूट ड़ालकर शोषण करते रहे !
धर्मात्मा कबीर विपरित बुद्धी वाले इन लोगोंको विप्र कहते है और इनके धर्म को अधर्म कहते है और इनकी संस्कृती को विकृती शोषण बताते है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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