Saturday, 15 February 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Vipramatisi : 4

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : विप्रमतीसी  : 4

विप्रमतीसी  : 4

ग्रहण  अमावस  और दूईजा ,  शांति पांति  प्रयोजन  पूजा  !

शब्द  अर्थ  : 

ग्रहण  = सूर्य  चन्द्र  ग्रहण  !  अमावस = अमावश्या  ! दूईजा  = द्वितिया  आदी  तिथी  !    शांति  = शनी  शांती  , पांती   = नवग्रह  !  पूजा  = पूजा  अन्य  धार्मिक  अनुष्ठन  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण  धर्म  के  पांडे  पूजारी पंडित  ब्राह्मण को  विप्र   कहते  है  जो  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  और  देश  के  दुष्मन  है  ! 

वे  बाहर  आये  है  और  अपने  साथ  विपरित  बुद्धी  अर्थात विपरित  प्रग्या  या  प्रग्या  विरोधी  , ग्यान  विरोधी  , परख  विरोधी  ऊनकी  पूजा  पाठ  विकृती  और  अधर्म  साथ  लाये  है  ज़िसमे  सूर्य  चन्द्र ग्रहण पर  दान  दक्षिणा  मांगना  , द्वितिया चातुर्थी आदी  सभी  तिथियोंको  किसी  न  किसी  ग्रह  , मन  गढांत  देवी  देवता  के साथ  जोड  कर  उनकी  पूजा  पाठ  शांती  कराने के बहाने  भोले  भाले  आम  जनता को ठगना , असत्य   नारायण  आदी  की  पूजा  भूत  प्रेत  , पुनरजन्म  नरक  स्वर्ग पितर   शांती  आदी  सेकडो  हथखंडे  इन  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण  धर्मी लोगोने  बनाये  और  जाती  वर्ण  होम हवन  ऊचनीच  भेदाभेद   छुवाछुत  अस्पृष्यता  आदी  अमानविय  , अविवेकी   रिती रीवाज  बनाकर मुलभारतिय  हिन्दूधर्मी  समाज  मे  फूट  ड़ालकर  शोषण  करते  रहे  !

धर्मात्मा  कबीर  विपरित  बुद्धी  वाले  इन  लोगोंको  विप्र कहते  है  और  इनके  धर्म को  अधर्म कहते है  और  इनकी  संस्कृती  को  विकृती  शोषण  बताते  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व   परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ
कल्यान , अखण्डहिन्दुस्तन  , शिवशृष्टी

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