ग्यान चौंतिसा : क्ष
क्षक्षा क्षिनमें परलय सब मिटी जाई , छेवपरे तब को समुझाई /
छेवपरे काहु अंत न पाया , कहहिं कबीर अगमन गोहराई //
शब्द अर्थ :
छेव = चोट , घाव ,वार ! अगमन = आना जाना , जन्म मृत्यू का फेरा ! गोहराई = पुकार , बुलाना , बिनंती !
प्रग्या बोध :
धर्मात्मा कबीर ग्यान चौंतिसा के अक्षर क्ष के माध्यम से उपदेश देते हुवे कहते है भाईयों इस संसार मे पल पल बदल होता है ! जैसे अभी है थोडे समय के बाद संसार वैसा ही नही होगा ! जीवन तो पानी के बुलबुले की तरह होता , कब वार हो और फूट जाय कोई भरोसा नही यहाँ तक की आदमी की ज़िन्दागी माँ के पेट मे भी खत्म हो जाती है न माँ का ड़ींब फलता है न पुरूष का विर्य ! एसे क्षणभंगुर जीवन में तुम इस पल ज़िन्दा हो तो उसका सद उपयोग करो ! इस समय ज़िते जी तुम अवागमन के फेरे से , दुख से बचने से उपाय की कोशिश नही करोगे तो क्या मरने के बाद तुम्हे मौका मिलेगा ?
चेतन तत्व राम स्वरूप परमात्मा कबीर स्वयम तुम्हे यहाँ दुख से बचने की सिख देते है और बताते है की ज़िते जी ही तुम धर्म का पालन कर सकते हो मौत के बाद नही ! इस लिये कबिर साहेब कहते कल करे सो आज कर , आज करे सो अभी ! क्षण का ये माहात्म है , परमपिता परमात्मा कबीर से बढकर कौन हमे समझा सकता है !
धर्मविक्रामादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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