Monday, 24 March 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 1 : 10

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 1 : 10

कहरा : 1 : 10

नहि तो ठाकुर है अति दारूण , करहि चाल कुचाली हो ! 

शब्द अर्थ : 

नहि तो = न समझे तो ! ठाकुर = परमतत्व चेतन राम , कबीर अति = प्रचंड , बहुत ! दारूण = बलशाली ! करहि = कर देना ! चाल = गती , मार्गस्थ ! कुचाली = निचे ऊतारना , गिरा देना ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे परमतत्व चेतन राम की महीमा सुनाते हुवे कहते है भाईयों अधर्म पर मत चलो , यह सही रास्ता नही है अंधश्रद्धा और अधर्म की राह विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और विदेशी तुर्की मुस्लिम धर्म है ! 

मुलभारतिय हिन्दू धर्म शिल सदाचार भाईचारा , समता ममता अहिंसा शांती मानवता समाजवादी वैग्यानिक दृष्टी का संसार का आद्य आदिवाशी सनातन पुरातन सिंधु हिन्दू संस्कृती के पूर्व से चला आरहा धर्म है ! इस रास्ते पर चलोगे तो मुक्ती मिलेगी अन्यथा अंधविश्वास विषमाता शोषण के अधर्म मे फस कर जीवन बर्बाद कर दोगे तो वो चेतन राम परमात्मा तुम्हे दंड दिये बैगर नही रहेगा ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Sunday, 23 March 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara :1 : 9

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 1 : 9

कहरा : 1 : 9

जो यह भाँति करहु मतबलिया , ता मत को चित बाँधहु हो ! 

शब्द अर्थ : 

भाँति = चुक , गलती ! करहु = करना ! मतबलिया = मत , विचार , धर्म मान्यता ! ता = उस ! चित = मन ! बाँधहु = सही करना ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा इस कहरा के पद मे विभिन्न धर्म विचार मान्यता मे फैली गलत धारणाये , अंध विश्वास आदी पर कटाक्ष करते हुवे कहते है हम अंधविश्वास मे फसने वाले धर्म को नही मानते जैसे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म और विदेशी तुर्की मुस्लिम धर्म मे बहुतसारे अंध विश्वास , भ्रम , भाँतिया है !  

कबीर साहेब कहते है हमारा मुलभारतिय हिन्दूधर्म गलत धारणा को नही मानता ! चित्त शुद्धी , सात्विक विचार शिल सदाचार का मार्ग हम बताते है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Saturday, 22 March 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 1 : 8

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 1: 8

कहरा : 1 : 8

भोगउ भोग भुक्ति जनि भूलहु , योग युक्ति तन साधहु हो ! 

शब्द अर्थ : 

भोगउ = जीना ! भोग = कर्म और कर्म फल ! भुक्ति = झूठा प्रचार ! जनि = संसार , ईश्वर ! भूलहु = भूलना ! योग युक्ती = ज़िनेकी कला , विचार धर्म मान्यता ! तन = शरीर ! साधहु = ठिक करना , निर्दोष करना , स्वस्थ बनाना ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे योग क्या है इसकी चर्चा करते हुवे बताते है की योग का मतलाब शारीरिक उल्टी सिधी क्रिया नही है जैसा की योगी हट योगी आदी बताते है ! योग से कोई चमत्कार नही होता है ! वह एक वायाम का तरिका है ज़िससे शरीर स्वस्थ रखने मे मदत मिल सकती है ! पर कर्म यानी शिल सदाचार का आचरण जीवन मे जरूरी है ! अगर मानव धर्म अधर्म मे भेद नही करेगा और केवल योग हटयोग से शारीरिक वायाम करते पर अधर्म का आचरण की पीडा दुख दर्द तो सहन करना होगा ! इसलिये जीवन सहज जीना चाहिये , दिखावटी , झूठा , असत्य मार्ग को छोड कर शिल सदाचार का मुलभारतिय हिन्दूधर्म पालन यही सहज योग है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Wednesday, 19 March 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 1 : 5

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 1 : 5

कहरा : 1 : 5

मुक्ति की डोरि गाढ़ि जनि खेंचहु , तब बाझिहै बड़ रोहु हो ! 

शब्द अर्थ : 

मुक्ती = निर्वाण , गुलामी से मुक्ती ! डोरि = बन्धन 
! गाढ़ि = भारी ! जानि = मालुम पडना ! खेचहु = खिचना , खोलना ! तब = उस वक्त ! बाझिहै = खेल ! बड़ = बडा ! रोहु हो = रहना ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे गुलामी से मुक्ती की बात करते है निर्वांण की बात करते है और कहते है भाईयों आप के गुलामी से मुक्ती का मार्ग मुझे मिल गया है ! विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के वेद और मनुस्मृती के जातीवर्ण वाद ऊचनीच भेदाभेद अस्पृष्यता छुवाछुत विषमता शोषण से मुक्ती का मार्ग शिल सदाचार ,भाईचारा ,समता , विश्वबंधुत्व अहिंसा शांती ,वैग्यानिक दृष्टी का मुलभारतिय हिन्दूधर्म ही है ! वही आपके वैदिक गुलामी की डोर काटकर आपको मुक्त करेगा पर इसके लिये तुम्हे कठौर परिश्रम , अनुशासन और दृढ निच्छय की जरूरत है ! तुम अब बाजिगर हो समजो और यह बाझी तुम्हे लगाना ही पडेगा तभी गुलामी से मुक्ती मिलेगी , निर्वाण का सुख मिलेगा ! 

धर्मविक्रमादित्य कबिरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 1 : 4

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 1 : 4

कहरा : 1 : 4

जो खुटकार बेगि नहिं लागे , व्हृदय निवारहु कोहु हो ! 

शब्द अर्थ : 

जो = वो ,व्यक्ती ! खुटकार : खुद्दार ! बेगि = अच्छी ! व्हृदय = आत्म संतोष ! निवारहु = समझाएं ! कोहु = कौन , कैसे ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे आत्म सन्मान की बात करते हुवे बताते है ज़िसको आत्म सन्मान ठिक नही लगाता वो आपना व्हृदय हार जाता है और गुलामी स्विकार कर लेता है ! आत्म सन्मान खो चुके मुलभारतिय हिन्दू धर्मी समाज को धर्मात्मा कबीर उस समय के दो विदेशी ताकते , धर्म विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और विदेशी तुर्की मुस्लिम धर्म के राजकिय , धार्मिक , सांकृतिक गुलामी से बाहर आने की प्रेरणा देते है ! 

कबीर साहेब ने मुलभारतिय हिन्दूधर्मी समाज को जागृत कर उनका अपना मुलभारतिय हिन्दूधर्म जो सिंधु हिन्दू संस्कृती के पूर्व से सनातन पुरातन काल से चला आरहा आद्य आदिवाशी , मुलभारतिय हिन्दूधर्म को अपनी वाणी से फिर एकबार पुनरस्थापित किया और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राम्हणधर्म और मुलभारतिय हिन्दूधर्म को अलग अलग बताया ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्डहिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Monday, 17 March 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 1 : 3

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : कहरा  : 1 : 3

कहरा  : 1 : 3

जस  दुख  देखि रह्हु  यह  औसर , अस  सुख  होइहै पाये  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

जस = जैसे  ! दुख  = दर्द  ! देखि  = देखना  ! रहहु = अभी  ! यह   औसर  = इस  समाय  ! अस  = एसी  ! सुख  = आनन्द  ! होइहै  = होता  है ! पाये  हो  = मिलता  है  ! 

प्रग्या  बोध  :

परमात्मा  कबीर  कहरा  के  इस  पद  मे  सुख  दुख  की  चर्चा करते  हुवे  बताते  है  भाईयों  सुख  दुख  जीवन  की  वास्तविकता  है  इस  नकारना  बेकार  है  पर  सुख  दुख  के  कारण  धर्म  और  अधर्म  है  ! हर कोई  सुख  चाहता है  दुख  कोई  नही  चाहता  पर  काम  करते  समाय  हम  सावधान  नही  रहते , प्रग्या बोध  को  भूल  जाते  है  , समय की  नजाकत  जरूरत  नही  समझते  है और  उल्टे  सिधे  काम  करते है तो  गलत  नतीजे  आते  है यही  दुख  का कारण  है  ! 

कबिर  साहेब  तटस्थ  रहकर  सुख  दुख  के  कारण  को  देखने  की  बात  करते  है  , धर्म  से  चलोगे  तो  सुख  मिलेगा , अधर्म  से  चलोगे  तो  दुख  आयेगा  ! हर  समय  सावधान  रहो  ! धर्म  का  पालन  करो  यही  सिख  इस  कहरा  मे  कबीर  साहेब  देते  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्डहिन्दुस्तान ,  शिवशृष्टी

Saturday, 15 March 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 1 : 1

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 1 : 1

कहरा : 1 : 1

सहज ध्यान रहु सहज ध्यान रहु , गुरू के बचन समाई हो !

शब्द अर्थ : 

सहज ध्यान = सरल जीवन मार्ग ! रहु = रहना , जीवन जीना ! गुरू = ग्यान देने वाला व्यक्ती , जीवा मार्गदर्षक ! बचन = अच्छी शिक्षा , धार्मिक विचार ! समाई = सम्मिलित ! हो = होना ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर अपनी वाणी पवित्र बीजक के प्रकरण कहरा 1 मे कहते है भाई मेरा जीवन का दृष्टीकोन बहुत ही सरल है ! नैसर्गिक है कोई दिखावा या मिलावट नही ! जो है वही है क्यू की सत्य छूपाने से छूपता नही ! 

कबीर साहेब सहज मार्ग बताते है , बीजक यही सहज मार्ग है , कबीर साहेब सांसारिक जीवन मार्ग को सहज ध्यान अर्थात निषकपट ज़िने का तरिका बताने वाले गुरू को ही उत्तम मानते है और वैदिक गुरू घंटाल , हाथ चालाकी करने वाले गोरख धन्धी और लफडे बाज फंदी आश्रम के धोकेबाज शंकराचार्य आचर्य नागा अघोरी आदी नकली गुरू के भूलभूल्यये से बचाने वाले गुरू को ही योग्य गुरू मनाते है ! 

तात्पर्य वही मार्ग सहज ध्यान का मार्ग है ज़िसमे प्रग्या बोध हो और वही गुरू श्रेष्ठ है जो कबीरवाणी पवित्र बीजक के प्रग्या बोध का ग्यान दे ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्डहिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Friday, 14 March 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Vipramatisi : Shabd : 1

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : विप्रमतीसी : साखी : 1

साखी : 1

बहा है बहि जात है , कर गहै चहुँ और ! 
जो कहा नहिं माने , तो दे धक्का दुइ और !!

शब्द अर्थ : 

बही है बहि जात है = प्रवाह पतित है ! कर गहै चहुँ और = जागृत करो ! दे धक्का = बाहर करो ! 

प्रग्या बोध : 

धर्मात्मा कबीर विप्रमतीसी के समोरोप मे इस साखी के माध्यम से विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के वर्णजाती के चक्रव्यूह मे फसे ऊचनिच ,भेदाभेद अस्पृष्यता , छुवाछुत आदी की गुलामी मे फसे मुलभारतिय हिन्दूधर्मी लोगोंको लोग जागृती के माध्याम से जगाने की बात करते है और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्मी लोगोंको धक्के देकर देश के बाहर करने की बात करते है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्डहिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Thursday, 13 March 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Vipramatisi : 30

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : विप्रमतीसी : 30

विप्रमतीसी : 30

कहिये काहि कहा नहिं माना , दास कबीर सोई पै जाना ! 

शब्द अर्थ : 

कहिये = बतावो , समझावो ! काहि = क्यू ! कहा = बताया विचार , मुलभारतिय हिन्दूधर्म ! नहिं = ना ! माना = पालन करना ! दास = विनम्र नम्र , विनित ! कबीर = परमात्मा चेतन राम स्वरूप कबीर ! सोई = मुलभारतिय हिन्दूधर्म ! पै = वही ! जाना = समझो ! 

प्रग्या बोध :

परमात्मा कबीर विप्रमतीसी यानी विदेशी यूरेशियन वैदिकधर्मी ब्राह्मण की विपरित बुद्धी समज , धर्म विचार उनकी मान्यता पर 30 दोहे मे वर्णन करते हुवे अंतिम दोहे मे बताते है की विदेशी युरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म अलग है और मुलभारतिय हिन्दूधर्म अलग अलग है ! 

कबीर साहेब कहते है वो बारम बार बताते है की विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का ग्रंथ है वेद ज़िसमे है भेदाभेद , वर्णवाद और उनका कानुन है मनुस्मृती ज़िसमे है छुवाछुत अस्पृष्यता विषमाता जातीवर्ण ऊचनीच अन्याय ज़िसे संक्षिप्त मे अधर्म और विकृती ही कहा जा सकता है ! दुसरी तरफ कबीर साहेब मुलभारतिय हिन्दूधर्म बताते है ज़िसमे है समता , भाईचारा ,शिल सदाचार , विश्वबंधुत्व , न्याय का मुलभारतिय हिन्दूधर्म जो सिंधु हिन्दू काल पूर्व से भारत मे आदिवाशी मुलभारतिय नेटीव हिन्दू समाज सनातन पुरातन काल से चला आ रहा सत्य धर्म है ज़िसे कबीर साहेब ने आपनी वाणी पवित्र बीजक मे बताया और बाबासाहेब आम्बेडकर ने हिन्दू कोड बिल मे कानुन स्वरूप मुलभारतिय हिन्दूधर्म को दिया है ! 

कबीर साहेब विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म यह धर्म नही अधर्म विकृती है बताते है उसका त्याग कर आपना आद्य सनातन पुरातन आदिवाशी मुलभारतिय हिन्दूधर्म का पालन करो यही बात अंतिमता यहाँ बताते है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्डहिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Vidarbh Politics !

विदर्भ का राजकिय गणित !

11 ज़िल्हे 
119 तहसिल 
2 विभाग 
5 शहार 
10 लोक सभा खासदार 
1 राज्य सभा खासदार 
110 आमदार 
ज़िल्हा पंचायत 
पंचायत समिती 
ग्राम पंचायत 

देश की 20 टक्का आबादी 
30 टक्का जामिन  

3 से 5 टक्का ब्राह्मण 
95 टक्का मुलभारतिय हिन्दू ( जैन , बौध , सिख, मुस्लिम ,खिस्ती सभी पूर्वा श्रमी मुलभरतिय हिन्दू ) 

देश का बादमे सोचो , पहले विदर्भ की सत्ता का बोलो !

नेटीविस्ट डी डी राऊत  
अध्यक्ष 
नेटीव रूल मुव्हमेंट

Wednesday, 12 March 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Vipramatisi : 29

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : विप्रमतीसी : 29

विप्रमतीसी : 29

हिन्दू तुरक कि बूढो बारा , नारि पुरूष का करहु विचारा ! 

शब्द अर्थ : 

हिन्दू = मुलभारतिय गैरब्राह्मण हिन्दूधर्मी , गैर वैदिक ब्राह्मणधर्मी , नेटीव , आदिवाशी , मुलभारतिय ! तुरक = तुर्की धर्म यानी मुस्लिम धर्मी या हिन्दू से धर्मांतरित मुस्लिम ! कि = उनकी ! बूढो = नुक्सान ! बारा = बहुत ! नारि पुरूष = मुलभारतिय समाज ! का = क्यू ! करहु = करना ! विचारा = समझना ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर इस विप्रमतीसी मे मुलभारतिय , आदिवाशी , नेटीव लोग स्त्री पुरूष , गैरब्राह्मण समाज जो आद्य हिन्दूधर्मी है या धार्मांतरित मुस्लिमधर्मी हुवा है पर मुलता नेटीव है हिन्दू है जो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म द्वारा शोषित है वर्णजात ऊचनीच छुवाछुत अस्पृष्यता का पिडीत है उन सब को चाहे वो हिन्दू हो या धर्मांतरित मुस्लिम है उन सबको एक होकर विचार करने की बात कबीर साहेब करते है ताकी इस देश से विषमता , शोषण करने वाले विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्मी भगाकर इस देश को नेटीव हिन्दू समाज को विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्मकी गुलामी से मुक्त कर सके ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Tuesday, 11 March 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Vipramatisi : 28

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : विप्रमतीसी : 28

विप्रमतीसी : 28

स्याह सफेद कि राता पियारा , अबरण बरण कि ताता सियरा ! 

शब्द अर्थ : 

स्याह = काली ! सफेद = बेदाग ! कि = क्यू ! पियरा = पसंद ! अबरण = अयोग्य ! बरण = योग्य ! कि = क्यू ! ताता = उसको सियरा = मान्य करना ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर इस विप्रमतीसी के माध्यम से बताते है की विदेशी यूरेशियन वैदिक धर्म के लोग न दिन देखते है न रात उनको सभी समाय शोषण के लिये ठिक लगाता है यहाँ तक की वो दिन रात यही सोचते रहाते है की वो कैसे लोगोंको मूर्ख बनाये और मोटी दान दाक्षिणा येठे ! 

कबीर साहेब कहते विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म कोई धर्म नही पुरी विकृती है वहा कोई नितिमत्ता नही सब कुछ बिल्ली की तरह आँख मुंदकर गलत किया जाता है ! जैसे वो समझते है वैसा नही है मुलभारतिय हिन्दू धर्मी लोग विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म के पांडे पूजारी का झूठ अच्छी तरह जानते है जानते है ये विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्मी लोग सियार की तरह है ,दुसारोंकी मेहनत पर पलने वाले अधमी और विकृत संस्कृती के लोग है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती  
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्डहिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Saturday, 8 March 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Vipramatisi : 25

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : विप्रमतीसी : 25

विप्रमतीसी : 26

व्यापक एक सकल की ज्योती , नाम धरे का कहिये भौती ! 

शब्द अर्थ : 

व्यापक = अनंत शृष्टी ! एक सकल की ज्योती = सब का एक पिता , निर्माता ! नाम = ईश्वर ,अल्ला के मानव ने दिये अनेक नाम ! का = क्यू ! भौती = धरती , पृथ्वी ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर इस विप्रमतीसी मे मुलभारतिय हिन्दू धर्म का विचार शृष्टी निर्माता एक है बताते है ! अनंत शृष्टी एक तत्व चेतन राम से बनी है ज़िसका कोई क्षय या नाश मृत्यू नही होती ! चेतन तत्व राम निराकार निर्गुण अमर सर्वव्यापी सार्वभौम सत्य शिव सुन्दर है ! पृथ्वी पर मानव ने अग्यान के कारण उस चेतन राम को कभी अवतारी ईश्वर ,अनेक ईश्वर बना दिया जब की ये गलत धारणा है ! 

चेतन राम जुड़ना , टूटना की प्रवृत्ती से सदा कार्यरत होती है और मानव इच्छा तृष्णा मनो विकार अहंकार आदी के कारण अवांच्छित कार्य के कारण दुख भोगता है ! चेतन तत्व राम केवल एक है वह है शुद्ध प्रग्या या प्रग्या का बोध ! 

कबीर शृष्टी को वास्तविक और सत्य मानते है , चेतन राम को सत्य मानते है ! इसलिये सत्य जानो कहते है प्रग्या बोध होगा तो अग्यान दुर होगा , मोह माया से उत्पन्न दुख दुर होंगे ! 

परमात्मा कबीर चेतन राम की अवस्था मे स्थित है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्डहिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Wednesday, 5 March 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Vipramatisi : 22

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : विप्रमतीसी : 22

विप्रमतीसी : 22

ऊँच नीच है मध्य की बानी , एकै पवन एक है पानी ! 

शब्द अर्थ : 

ऊँच नीच = वर्णवाद , भेदाभेद , अस्पृष्यता , विषमाता ! मध्य की बानी = ओछी बात , सामान्य विचार ! एकै पवन = सबके लिये एक समान हवा ! एक पानी = शृष्टी ने सब के लिये एकसमान पानी बनाया है ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पंडे पूजारी अर्थात ब्राह्मण य़ानी विप्र जो विपरित बुद्धी समज और समाज के लोग है इनकी वर्णवादी जातिवादी ऊचनीच वादी भेदाभेद विषमाता वादी धार्मिक सोच की आलोचना करते हुवे बताते है की ये सोच कोई महान य़ा उत्तम सोच नही बल्की ओछी सोच है बहुत ही सामान्य विचार है जो वास्तव मे अधर्म और विकृती है ! 

धर्मात्मा काबिर मुलभारतिय हिन्दूधर्म की समता भाईचारा समाजवाद वैग्यानिक दृष्टी वाला विचार ही उत्तम धर्म विचार संस्कृती मानते हुवे निसर्ग नियम और वेवस्था की मिसाल देते हुवे बातते है निसर्ग ने मानव मानव मे कोई भेदभाव ऊचनीच अस्पृष्यता वेवस्था नही बनाई है जैस पानी हवा सब के लिये समान है वैसे ही मानव मानव एक समान है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्डहिन्दुस्तान , शिवशृष्टी