विप्रमतीसी : 28
स्याह सफेद कि राता पियारा , अबरण बरण कि ताता सियरा !
शब्द अर्थ :
स्याह = काली ! सफेद = बेदाग ! कि = क्यू ! पियरा = पसंद ! अबरण = अयोग्य ! बरण = योग्य ! कि = क्यू ! ताता = उसको सियरा = मान्य करना !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर इस विप्रमतीसी के माध्यम से बताते है की विदेशी यूरेशियन वैदिक धर्म के लोग न दिन देखते है न रात उनको सभी समाय शोषण के लिये ठिक लगाता है यहाँ तक की वो दिन रात यही सोचते रहाते है की वो कैसे लोगोंको मूर्ख बनाये और मोटी दान दाक्षिणा येठे !
कबीर साहेब कहते विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म कोई धर्म नही पुरी विकृती है वहा कोई नितिमत्ता नही सब कुछ बिल्ली की तरह आँख मुंदकर गलत किया जाता है ! जैसे वो समझते है वैसा नही है मुलभारतिय हिन्दू धर्मी लोग विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म के पांडे पूजारी का झूठ अच्छी तरह जानते है जानते है ये विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्मी लोग सियार की तरह है ,दुसारोंकी मेहनत पर पलने वाले अधमी और विकृत संस्कृती के लोग है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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