कहरा : 1 : 5
मुक्ति की डोरि गाढ़ि जनि खेंचहु , तब बाझिहै बड़ रोहु हो !
शब्द अर्थ :
मुक्ती = निर्वाण , गुलामी से मुक्ती ! डोरि = बन्धन
! गाढ़ि = भारी ! जानि = मालुम पडना ! खेचहु = खिचना , खोलना ! तब = उस वक्त ! बाझिहै = खेल ! बड़ = बडा ! रोहु हो = रहना !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे गुलामी से मुक्ती की बात करते है निर्वांण की बात करते है और कहते है भाईयों आप के गुलामी से मुक्ती का मार्ग मुझे मिल गया है ! विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के वेद और मनुस्मृती के जातीवर्ण वाद ऊचनीच भेदाभेद अस्पृष्यता छुवाछुत विषमता शोषण से मुक्ती का मार्ग शिल सदाचार ,भाईचारा ,समता , विश्वबंधुत्व अहिंसा शांती ,वैग्यानिक दृष्टी का मुलभारतिय हिन्दूधर्म ही है ! वही आपके वैदिक गुलामी की डोर काटकर आपको मुक्त करेगा पर इसके लिये तुम्हे कठौर परिश्रम , अनुशासन और दृढ निच्छय की जरूरत है ! तुम अब बाजिगर हो समजो और यह बाझी तुम्हे लगाना ही पडेगा तभी गुलामी से मुक्ती मिलेगी , निर्वाण का सुख मिलेगा !
धर्मविक्रमादित्य कबिरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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