कहरा : 1 : 4
जो खुटकार बेगि नहिं लागे , व्हृदय निवारहु कोहु हो !
शब्द अर्थ :
जो = वो ,व्यक्ती ! खुटकार : खुद्दार ! बेगि = अच्छी ! व्हृदय = आत्म संतोष ! निवारहु = समझाएं ! कोहु = कौन , कैसे !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे आत्म सन्मान की बात करते हुवे बताते है ज़िसको आत्म सन्मान ठिक नही लगाता वो आपना व्हृदय हार जाता है और गुलामी स्विकार कर लेता है ! आत्म सन्मान खो चुके मुलभारतिय हिन्दू धर्मी समाज को धर्मात्मा कबीर उस समय के दो विदेशी ताकते , धर्म विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और विदेशी तुर्की मुस्लिम धर्म के राजकिय , धार्मिक , सांकृतिक गुलामी से बाहर आने की प्रेरणा देते है !
कबीर साहेब ने मुलभारतिय हिन्दूधर्मी समाज को जागृत कर उनका अपना मुलभारतिय हिन्दूधर्म जो सिंधु हिन्दू संस्कृती के पूर्व से सनातन पुरातन काल से चला आरहा आद्य आदिवाशी , मुलभारतिय हिन्दूधर्म को अपनी वाणी से फिर एकबार पुनरस्थापित किया और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राम्हणधर्म और मुलभारतिय हिन्दूधर्म को अलग अलग बताया !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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