साखी : 1
बहा है बहि जात है , कर गहै चहुँ और !
जो कहा नहिं माने , तो दे धक्का दुइ और !!
शब्द अर्थ :
बही है बहि जात है = प्रवाह पतित है ! कर गहै चहुँ और = जागृत करो ! दे धक्का = बाहर करो !
प्रग्या बोध :
धर्मात्मा कबीर विप्रमतीसी के समोरोप मे इस साखी के माध्यम से विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के वर्णजाती के चक्रव्यूह मे फसे ऊचनिच ,भेदाभेद अस्पृष्यता , छुवाछुत आदी की गुलामी मे फसे मुलभारतिय हिन्दूधर्मी लोगोंको लोग जागृती के माध्याम से जगाने की बात करते है और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्मी लोगोंको धक्के देकर देश के बाहर करने की बात करते है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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