कहरा : 1 : 8
भोगउ भोग भुक्ति जनि भूलहु , योग युक्ति तन साधहु हो !
शब्द अर्थ :
भोगउ = जीना ! भोग = कर्म और कर्म फल ! भुक्ति = झूठा प्रचार ! जनि = संसार , ईश्वर ! भूलहु = भूलना ! योग युक्ती = ज़िनेकी कला , विचार धर्म मान्यता ! तन = शरीर ! साधहु = ठिक करना , निर्दोष करना , स्वस्थ बनाना !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे योग क्या है इसकी चर्चा करते हुवे बताते है की योग का मतलाब शारीरिक उल्टी सिधी क्रिया नही है जैसा की योगी हट योगी आदी बताते है ! योग से कोई चमत्कार नही होता है ! वह एक वायाम का तरिका है ज़िससे शरीर स्वस्थ रखने मे मदत मिल सकती है ! पर कर्म यानी शिल सदाचार का आचरण जीवन मे जरूरी है ! अगर मानव धर्म अधर्म मे भेद नही करेगा और केवल योग हटयोग से शारीरिक वायाम करते पर अधर्म का आचरण की पीडा दुख दर्द तो सहन करना होगा ! इसलिये जीवन सहज जीना चाहिये , दिखावटी , झूठा , असत्य मार्ग को छोड कर शिल सदाचार का मुलभारतिय हिन्दूधर्म पालन यही सहज योग है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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