Sunday, 29 June 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 10 : 9

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : कहरा  : 10 : 9

कहरा  : 10 : 9

जोलहा  तान  बान  नहिं  जाने , फाटि  बिने  दश  ठाँई  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

जोलहा  : कबीर  साहेब , परमात्मा  कबीर  ! तान बान  = शान  , अहंकार  ! फाटि  = छोटा  पन  ! बिने  = बनाये !  दश  ठाँई  = सर्वत्र , सभी   काम !

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  अर्थात  चेतन  राम  कबीर  स्वयं  कहते  है  मै  वो  चेतन  राम  हूँ  जो  निराकार  निर्गुण  है  अहंकार  शान  बडडपन , बडबोले  पन  से  दुर  है   और  मै  जुलाह  हूँ  कपडे  शाल  धोती  बुनता  हूँ ये  मेरा  व्यवसाय   है  और  मै   उसे   लगन से  मन लगा कर  काम  करता   हूँ  , न  इसमे  छोटा  पन  है  बडापन   ! मै  किसी  बात  का अहंकार  नही  करता न  ड़ींग  हाँकता  हूँ  ! मै  सभी  काम  निराकार  निर्गुण  भाव  से  ही  करता   हूँ  !  कुछ  लेना  न  देना  आपने  काम  मे  मगन  रहना  दुसरे  के  फटे  में  टांग  न  ड़ालना  ही   अच्छा  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Thursday, 19 June 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 9 : 7

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : कहरा  : 9 : 7

कहरा  : 9 : 7

कहहिं  कबीर  सुनो  हो  सन्तो , ग्यान  हीन  मति हीना  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

कहहिं  = कहता  है  ! कबीर  = स्वयं  परमात्मा  कबीर  ! सुनो  हो  सन्तो  = सुनो  गुणीजन  ! ग्यान  हीन  = बुद्धी ,  माति  हीन  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  इस  कहरा  मे  ग्यान  को  सर्व  श्रेष्ठ  बताते हुवे  कहते  है  वस्तु स्थिती  , इस  संसार  , धर्म  अधर्म  का  ग्यान  होना  जरूरी  है  ! कबीर  साहेब  कहते है  अंध  विश्वासी  ना  बनो   , पांच  इन्दिय  और  छटी  बुद्धी  से  उसे  परखो  केवल   कुछ  लोग  कहते  परम्परा  है  इस  लिये  मत  मानो  देखो  क्या  वो  वास्तविक  सुखदाई  है  ? 

मोह  माया  लालाच  अहंकार  को  प्रग्या  को  दूषित  ना  करने  दो  , सच्चा  ग्यान  कसौटी पर   परखो  जैसे  सोना  हीरा  आदी  परखे  जाते  है  !  और  इन्हे  परखनेके  की  कसौटीय़ा   है  शिल  सदाचार  समता ममता   भाईचारा  अहिंसा  शांती  बंधुत्व  ! 

मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  की  इन  कसौटीया  लगाकर 
 ही  ग्यान  अग्यान  , धर्म  अधर्म,   सुख  दुख, भला   बुरा  की  पहचान  होगी  ! यही  सच्चा  ग्यान  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Wednesday, 18 June 2025

Vidarbhwadi Buddhist Party

#विदर्भ_राज्य_सेनानी 
विदर्भवादी बुद्धिस्ट पार्टी 

नेटीव रूल मुव्हमेंट ने हमेशा छोटे राज्य की माँग का समर्थन किया है और विदर्भ राज्य निर्मिती का आंदोलन चलाने और सत्ता हासिल करने के लिये विदर्भवादी बुद्धिस्ट पार्टी के निर्मांण के लिये काम शुरू किया है ! 

सीमित क्षेत्र मे काम करना आसान होता है और शक्ती का पुरा उपयोग ध्येय हासिल करने मे लगाया जा सकता है इस दृष्टी से अगर सोचे तो विदर्भ के बुद्धिस्ट विदर्भ राज्य निर्मिती और सत्ता मे संघटित हो सकते है ! 

जो भी विदर्भवादी बुद्धिस्ट पार्टी का कार्यकर्ता इस आंदोलन मे जुडकर काम करता है उसको पुलिस राजकिय कैदी बनाता है उसे विदर्भ राज्य सेनानी का दर्जा दिया जायेगा और उसे स्वातंत्र सेनानी की तरह 25 हजार महीना मिलेगा साथ साथ विदर्भ राज्य कर्मचारी नियुक्ती आदी मे आरक्षण और अग्रक्रम होगा ! 

राज्य बनने पर अन्य कितने ही अधिकार और सुविधा मिलेगी जैसे मुफत 10 एकड जमिन आदी इत्यादी ! 

ये विदर्भ के बौद्धो के लिये संघटित होने की सुवर्ण संधी साबित होगी ! 

ये अवसर बार बार नही आयेगा ! 

विदर्भ के सभी ज़िले और तालूका अध्यक्ष नियुक्त करना है ! ईच्छुक बुद्धिस्ट आपना नाम मोब , ज़िला तालूका और पद निचे लिखे ! 

नागपुर का कोई भाई पार्टी मुख्यालय के लिये अपना अतिरिक्त रुम कुछ समाय बीना भाडे से दे सकते है तो लिखे ! 

#नेटीविस्ट_दीपा_राऊत 
संयोजक 
#विदर्भवादी_बुद्धिस्ट_पार्टी

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 9 : 6

पवित्र  बीजक  : प्रग्या बोध  : कहरा  : 9 : 6

कहरा  : 9 : 6

चौसठ  गीध  मुये  तन  लूटै , ज़म्बुकन वोद्र  बिदारा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

चौसठ गीध  = गिद्ध  का  झूंड  , अनेक  गिद्ध  ! मुये  तन  = मृत  शरीर  ! लूटै  = खाने  टूट  पडना  !  ज़म्बुकन  = ज़म्बुक   आदी  हिस्त्र  प्राणी  ! वोद्र  = उदर  , पेट  ! बिदारा  = फाडना  ,छिन्न  विछिन्न  करना  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  इस  कहरा  के  पद  मे  मृत  शरीर  का क्या  हाल  होता  है  यह  समजाते हुवे  कहते है  अगर  मानव  शरीर  लावारिस  मिल  जाये  तो  गली के  लावारिस  कुत्ते  ,और  दुसरे   जानवर  उस  पर  टूट  पडते  है  पेट  फड देते  है  उसे  छिन्न  विछिन्न  कर  देते  है  ! गिद्ध के  झूंड  उसे  सफाचट  कर  जाते  है  जैसे  पारसी  ऊंके  मृत  शरीर  को  गिद्धो  को  खाने  के  लिये  मौत  के  कुए  मे  छोड  देते  है ! 

कबीर साहेब  इस  तन  की  यही  गती  है  पर  अच्छे  और  बुरे  कर्म  का  फल  मिलता  है  इस  लिये  शरीर  मृत  होने  के  पहले  शिल  सदाचार  भाईचारा समाता  और  ममता का  मुलभारतिय  हिन्दू  धर्म  का  आचरण  कर  ये  जीवन  सुधारो  और  अच्छे  कर्म  का  अच्छा  फल  पावो  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Tuesday, 17 June 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 9 : 5

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : कहरा  : 9 : 5

कहरा  : 9 : 5

चन्दन  चीर  चतुर  सब  लेपै , गरे  गजमुक्ता  के  हारा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

चन्दन  = सुगंधित  चन्दन  वृक्ष   लेप  ! चीर  = पहने कपडे   , ओढना  !  चतुर   = खुद  को  ग्यानी  पंडित  ब्राह्मण  कहने  वाले  दंभी  लोग  ! सब  लेपै  = तिलक  आदी  लगाना  !  गरे  = गले  मे  ! गजमुक्ता =  हाथी  दंत   ! हारा  = माला  , हार  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  कहरा  के  इस  पद  मे  कहते  है  कुछ  लोग  खुद  को  बडे  ग्यानी  ,चतुर  , होशियार  पंडित  और  ब्राह्मण  कहते   है  और  अपनेको  बाहरी  आभूषण  वेशभूषा   जैसे  चन्दन  का  शरीर को  लेप  , चन्दन  का  तिलक  , भगवे  कपडे  धोती  अंग  वस्त्र  और  गले  मे  विविध  प्रकार  की  मालाये  जैसे  महनगी  हस्ती  दंत  की  माला  आदी  से  खुद को  सजाते  है  ताकी  भ्रम  पैदा  कर  सके  की  वो  बहुत  पवित्र  साफ  सूतरे  बिना  गंदगी  वाले  लोग  है  और  इस  कारण  ग्यानी  पंडित  ब्राह्मण  है  ! 

कबीर   साहेब  कहते  है  इन  ढ़ोंगी  के  दिखावे  पर  मत  जावो  , ये  कागज  के  फुल  है  असली  नही  ! इनमे  इनके  वैदिक  ब्राह्मण  धर्म मे  कोई ग्यान  नही  ना  मानव  हित  का  धर्म  है  ! ये  सब  ढ़ोंगी  बगुले है  , इनके  मुह  मे  राम  नाम  होता  है  पर  बगल मे छुरी  ! कबीर   साहेब  बाहरी  दिखावे  पर  मत  भूलो  यह  सिख  यहाँ  देते  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Monday, 16 June 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 9 : 4

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : कहरा  : 9 : 4

कहरा  : 9 : 4

जो  कोई  आवै  बेगि  चलावै , पल  एक  रहन न  पाई  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

जो कोई  = हर  एक  इंसान , व्यक्ती  , मानव  ! आवै  = जन्म  लेता  है  , पैदा  होता  है  ! बेगि  = घाई , गडबड  , जल्दी ! चलावै  = कराना  , शोर  मचाना ! पल  एक  = एक  क्षण  ! रहन न  पाई  = टिकता  नही  ! मारता  नही ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  कहरा  के  इस  पद  मे  आदमी  बडा  लालची  मोह  माया  भरा  है  हर  काम  जल्दी  जल्दी  करना  चाहता  है  , बच्चे  से  जवान  जल्दी  होना  चाहता  है  जल्दी  जल्दी  बहुत  सारा  पैसा  धन  सम्पत्ती  जल्दी  जल्दी  एकट्ठा  करना  चाहता  है , बडे  पद  खूर्ची  पर  जल्दी  जल्दी  आना  चाहता है  , बस  जल्दी  ही  जल्दी  है  , जल्दी  लावो  , जल्दी  देवो  !   मानव  इस  जल्दबाजी  की  होड  मे  धर्म  शिल  सदाचार  भूल  जाता  है  , हा  कुछ  धन सम्पत्ती  , पद  प्रतिष्ठा  तो  हासिल  कर  लेता  है  पर  जीवन   का  आनन्द , युवा  का  आनन्द  भूल  जाता  है  इस  भाग दौड  , जल्दबाजी  मे  बूढा  बीमार  और  थकता    भी  जल्दी  ही  है  और  जब  मृत्यू  पास  आता  है  तब  उसे  लगता है  नाहक   ही  उसने  जल्दबाजी  मे  अद्भूत  मानव  जीवन   बेकार  की  चिजो  को  हासिल  करने  मे  खो  दी  और  जल्दबाजी  मे  न  जाने  कितने  पाप  किये  ! 

कबीर  साहेब  कहते  है  जल्दबाजी  वही  करो  जो  जीवन  मार्ग तुम्हे  मुक्ती  की  तरफ  ले  चले  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम  
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ
कल्याण  , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Naag Raja Nag Mandaar !

#पवनी_के_महाराजा_नाग_मन्दार ( #मुछिलिन्द_नाग ) ! 

विदर्भ का पवनी नगर बहुतही पुरातन और इतिहासिक है ! पंचनाग पुरे भारत पर राज्य करते थे जैसे वासुकी आदी ! नागरिक संघ और नगररचना की देन नाग मुलभारतियोंकी ही है इस लिये इन्हे नागरी संकृती सभ्यता के जनक माना जाता है ! जग विख्यात सिंधु हिन्दू संकृती और समतावादी मुलभारतिय हिन्दूधर्म की निर्मिती इन्ही लोगोने की ज़िस काराण मुलभारतिय हिन्दूधर्म को लोकधर्म और धर्म संस्थापक को लोकनाथ भी कहा जाता है ! 

नाग लोगोकी राज्य पद्धती गणराज्य पद्धती थी ! राजा को नागलोक गणराज कहा जाता है जैसे शिव और शिव के पुत्र गणेश भी नाग गणराज ही थे !

बुद्ध और महाविर भी इसी नाग गणराज्य वेवस्था से थे ! 

पवनी के नागराज नागमन्दार ( मुछिलिन्द नाग ) ने बुद्ध को उसके बुद्धत्व प्राप्ती बाद शांत बैठे गौतम बुद्ध को कुछ विदेशी यूरेशियन ब्राह्मणोने मारने की कोशिश की थी सौभाग्य भाग्य से नागमन्दार राजा पर्यटण पर अपने कुछ सैनिको के साथ हिमालय के तरफ गये थे कुछ ब्राह्मण बुद्ध को मारने के लिये बुद्ध को घेरे थे तभी महाराज नागमन्दार वहा पुहचे और उन विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राहमिनोको मार कर भगा दिया ! बुद्ध ने तब नागमन्दार को अपने कुछ केश और एक टूटा हुवा दात का अंश नाग मन्दार को दिया , धम्म का उपदेश दिया वही नागरिक को दिया पहला उपदेश था ! 

नागमन्दार पवनी वापिस आने पर बुद्ध के दंत अवशेश पर विहार बनवाया जीसे पवनी का बुद्ध समय का बुद्ध विहार माना जाता है जीसे पवनी का जगन्नाथ मन्दिर भी कहा जाता है ज़िस का उत्खनन हमारे रिस्तेदार मंसाराम राऊत और गणपत खापर्डे को मिट्टी मे मिले अवशेश को बैठे बैठे मिट्टी कुरेदते हुवे मिले और फिर वहा नागपुर विश्वविद्दयालय और पुरातत्व विभाग भारत सरकार ने उत्खनन विश्व के सामने लाया ! 

हमारे घर मे पुस्तनी नागथाना है जीसे बंगला कहा जाता है ! यह माना जाता है की नाग मन्दार कुल देवता है और उसकी पूजा की जाती है ! 

राऊत कुल पर नाग मन्दार , बाबा फरीद , कबीर का विषेश अनुग्रह रहा है ! 

#दौलतराम

Sunday, 15 June 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 9 : 3

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : कहरा  : 9 : 3

कहरा  : 9 :  3

उर्ध  निश्वासा उपजी  तरासा  , हँकराइनि  परीवारा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

उर्ध  निश्वासा  = सुस्कार  , हताशा  , अशंती  , सांस  लेने  मे  तकलीफ , सिने  मे  दर्द , दिल  की  बिमारी  !  उपजी  = उत्पन्न  होना  ! तरासा  = दुख  , उदासिनता  ! हँकराइनि   = गर्व ! परीवारा  = एक  गुण  के , परिवार  के  ! 

प्रग्या  बोध  :

परमात्मा  कहरा  के  इस  पद  मे  कहते  है  की  अहंकार  गर्व  ना  करो  यह  अधर्म  है  वो  माया  मोह  आदी  विकार  को  जन्म  देता  है  ये  सब  एक  ही  परिवार  के अवगुणी  लोग  है  या  अधर्म  है  जो  कुछ  क्षण  समय  के  लिये  आपको  गर्व  से  भर  देते  है  पर  आप  समज  लो  गर्व  का  घर  एक  ना  एक  दिन  खाली  होता  ही  है  ! इसलिये  गर्व  अहंकार  ना करो  ! 

कबीर  साहेब  कहते  है  जब  अहंकार  टूटता  है  तो  बडा  कस्ट  होता  है  ,दिल  टूट  जाता  है  दिल की   बीमारी  हो  जाती  है  थका  हारा  महसुस  करता  है  और  आहे  भरता  रहता  है  सांस  लेने  छोडने  मे  बडी  तकलीफ  होती  है  इस  लिये  मोह  माया  लालच  अधिक  धन  सम्पत्ती  के  होड  मे  और  उसके  गर्व  मे  मानवता  ना  भूलो  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Domaji Lahuji Raut

#डोमाजी_लहुजी_राऊत मेरे पिताजी ! नेटीवीस्ट डी डी राऊत 

मेरे पिताजी डोमाजी लहुजी राऊत का जन्म 1890 मे हुवा था पक्की तारिख मालुम नही 1 जुन 1890 स्कुल दाखले के लिये शायद लिखी गई थी ! 

पिताजी कुछ ही दिन स्कुल गये और स्कुल से भाग कर घर आते थे इसलिये पहली फेल थे !उनके बचपन मे ही मेरे दादाजी का निधन हुवा था ! पिताजी एकमात्र संतान होने के कारण मेरी दादी पार्वताबाई ने उन्हे बडे लाड प्यार से पाला ! मेरे दादाजी भी अकेले लडके थे और गाँव की गणविर खांदान की सुन्दर गोरी चिठ्ठी लडकी पर्वताबाई से बचपन मे ही शादी कर दी गई थी ! 

हमारा पुस्तनी धन्धा धान ले कर उसे चावल बनाने वाले बडी हलकी चक्की पर धान से चावल बनाने और गाँव के गुजरी हाट बाजार मे बेचना था जादा तर वार्ड के लोग और रिस्तेदार यही काम करते थे कुछ लोग खेती मजदुरी य़ा सिलाई का काम भी करते थे !

मेरे पिताजी का जन्म हुवा और जल्दी ही मेरे दादाजी चल बसे , दादी कहती थी वो बडे हँडसम और बहुत गोरे थे बाल घूँगरालू और घने थे ! पहलवानी का शौक था !

दादी ने अपनी पुरी ज़िन्दागी मेरे पिताजी डोमाजी राऊत को बडा करने और उसका धन्धा परिवार बसाने मे लगा दिया !

जब पिताजी यही कोई 15 - 16 साल के हुवे उनकी शादी सिन्दपुरी के मोटघरे परिवार के कोतवाल की लडकी किशनाबाई से कर दी गई जो खुद एक नासमझ 9 साल की बच्ची थी ! दोनो बच्चे जैसे रहकर दादी को हाथ बटाते हुवे बडे हुवे ! पिताजी को दादाजी जैसे पहलवानी का शौक चढा मेरे पिताजी के दोस्त अक्सर दुसरे पहलवान ज़िसमे खाटीक बारई मुस्लिम आदी थे ज़िन्हे आखाडा और पहलवानी के कारण गाँव और पडोस के गाँव मे सभी वस्ताद के नाम से जानते थे ! कुछ लोगोंसे बडी अच्छी दोस्ती थी और तिज त्योहार पर वो पिताजी को भोजन पर बुलाते थे मै बचपन मे अक्सर उनके साथ जाया करता था ! 

मेरे पिताजी के शादी के 5 - 6 साल बाद मेरी दादी को चिंता हो रही थी की किसनाबाई की गोद नही भरी माँ बच्ची थी पर दादी को जल्दी थी वो पोता पोती का मुख जल्दी देखना चाहती थी इस लिये उसने पिताजी की शादी गोसे मार्ग पर बसे खेडे की लडकी दारोंबाबाई जो बालीग 18- 19 की कास्तकार परिवार की अकेली लडकी से करादी जो दुरसे ममेरी रिस्तेदार ही थी ! 

इस तरह मुझे दो माँ ये हुवी ! दोनो स्वभास से शांत थी और फिर एक के बाद एक बच्चे पैदा होना शुरू हुवा ! 

पार्वताआई को सब से बडा बेटा गणपत फिर पांड़ूरंग 
किशनाआई को श्रिकांत फिर देवाजी फिर बाबाजी फिर मै दौलत फिर दो छोटी बहने शशिकला , सरिता !!

बिच मे एक दो संताने मरे भी ! 

दो माँ के हम छ भाई दो बहने ! मै भाईयोमे सब से छोटा ! 

पुस्तानी धन्धा चावल का व्यापार ! फिर राईस मिल गाँव मे खुली , धान की चक्की बन्द हुवी ! बडा परिवार ! दोनो माँ खेतोमे कोई छोटा बडा काम करती जंगल से जलावन लकडी लाती परिवार मे हाथ बटाती ! दादी बहुत बुढी हुवी देखा है जब उसका देहांत हुवा तब मै बहुत छोटा था गोरी पतली सफेद बाल वाली बुढी याद आती है !

मेरे बचपन मे पिताजी चावल के बोरे बेचने कभी नागपुर रायपुर माल ले जाते ! मेरे बचपन मे ही पिताजी के चावल का ट्रक ज़िल्हा बन्दी या राज्य बन्दी के कारण माल के साथ ज़प्त हुवा था उसके बाद हमारी माली हालत बिघडती गई ! 

बडा परिवार , बडे होते बच्चे पिताजी ने मेरे सब से बडे भाई गणपत की पढाई बन्द कराकर कपदे की शिलाई मशिंन सिखने के लिये नागपुर को एक चाचा संभाजी राऊत के पास भेजा ! काम सिखाने के बाद नागपुर मे शिलाई का दुकान लष्करीबाग मे शुरू करा दी ! 

अच्छे व्यवहार के कारण किसान उनके धान उधारी पर देते थे ! फिर माल बाजार और नागपुर मंडी मे ले जाते रहे ! आते वक्त वे जो फल यहा नही मिलते वो लेकर आते थे ! 

पांड़ूरंग दादा , श्रिकांत दादा गाँव के नगरपालिका के स्कुल मे पढ़ाई कर दोनो मेट्रिक हुवे और कोलेज के पढाई के लिये नागपुर भेजे गये ! 

पांड़ूरंग दादा को बचपन से ही समाज कार्य मे रूची थी इस लिये वो समाज के सिद्धार्थ होस्टेल के सचिव बने जो उस समय समाज के दान पर चलता था , एक परिवार के पिताजी के सम वयस्क चाचा मंसाराम राऊ जो टेलर थे गांधीजी से प्रभावित होकर कोंग्रेस के आजादी के आंदोलन मे जुडे थे वो आगे स्वातंत्र सेनानी बन जेल भी गये वो भारत सेवक समाज से जुडे और उनको बताया गया की समाज ने अगर होस्टेल भारत सेवक समाज इस संस्था के माध्यम से चलाया तो जल्दी मान्यता सरकारी अनुदान भी मिलेगा ! 

उसी समाय पवनी के नगरपालिका के स्कुल मे माध्यमिक शिक्षक की जरूरत है ! मंसाराम राऊत कोंग्रेश के कार्यकर्ता होने के कारण नगरसेवक और नगरपालिका अध्यक्ष भी चुने गये थे और फिर ऊहोने प्रस्ताव रखा की पांडूरंग दादा शिक्षक बने पढे लिखे होने के कारण संस्था का सचिव बन कार्य करे और सिद्धार्थ होस्टेल का अधिक्षक मंसाराम राऊत बने ताकी सरकार से आधा पगार और संस्था से आधा पगार उनको मिले और परिवार चले , उस समाय स्वातंत्र सेनानी को कोई पेंशन आदी कुछ नही मिलता था ! 

पांड़ूरंग राऊत राऊत गुरूजी के नाम से आगे बहुत प्रतिष्ठित हुवे और आजू बाजू के सभी गाँव खेडे के लोग उनको जानने मानने लगे ! शुरू के अनेक वर्ष सिद्धार्थ होस्टेल के अधिक्षक , सचिव रह कर होस्टेल सभी रिकार्ड रख कर पांड़ूरंग राऊत गुरूजी मंसाराम राऊत को होस्टेल पुरी तरह दे कर बाहर हुवे फिर नगरपालिका स्कुल के कुछ शिक्षक घोडीचौरे ( मयूर ) गुरूजी , खापर्डे गुरूजी , अमृत मेश्राम , गणपत राऊत ,पुष्पा राऊत आदी को सदश्य बनाकर खुद एक नई संस्था नालंदा के सचिव का पद लेकर सारे रिकार्ड रखने से लेकर विद्दयार्थी जूटाना फिर एक बार राऊत गुरूजी ने शुरू किया मेरी माँ किशनाबाई खाना पकाने का काम करती मेरा एक बडा भाई देवाजी राऊत जो मेट्रिक फेल और छपाई का काम जानता था उसे नये होस्टेल नालंदा होस्टेल का अधिक्षक बनाया गया तिनो दिनरात नालंदा होस्टेल के बींन पगारी सेवक ! नालन्दा होस्टेल को मान्यता मिलाई , अनुदान मिलाना शुरू हुवा होस्टेल सिद्धार्थ होस्टेल के बाद एक बडा होस्टेल बना ! पांडूरंग गुरूजी ने उसे भी छोड दिया ! 

दादा साहेब चव्हान ने ने गुरूदेव मंडल मोजरी के माध्यम से कस्तुर्बा गर्ल होस्टेल निकाला ऊँहोने पांड़ूरंग राऊत से मदत मांगी ,गुरूजी ने ऊँहे पुरी मदत की ! समाज़ सेवा इसे कहते है ! 

श्रिकांत राऊत मेरे एक भाई नागपुर मे तहसिलदार बने एक भाई बाबाजी एंमएसईबी मे सेवा देकर रिटायर्ड हुवे ! 

मेरे सभी भाई बहन आज नही है ! जब मै बी कॉम की पढाई 1970 कर रहा था तब मै मेरे गाँव के बौद्धिक मंडल का अध्यक्ष बना अपना विचार नेटीवीज्म और नेटीव हिन्दुत्व के कार्य के लिये नेटीव रूल मुव्हमेंट बनाई ! अनेक सामाजिक संस्था , शिक्षा संस्था बनाया , राजकिय पक्ष नेटीव पिपल्स पार्टी बनाई !  

पर मेरा सपना मेरे पिताजी को मै अपने कमाई से मलमल का कुर्ता भेट करू ! 

मेरे पिताजी बचपन से पहलवानी के कारण मोटे तगदडे थे , सफेद शर्ट धोती और पूठठे वाली लाल टोपी ऊनका रोज़ का पेहराव था वे बीडी चिलिंम पिते थे पर दारू कभी नही पिते थे हम सब मांस मछाली के शौकींन थे ! घर मे नाग थाना और नागो की पूजा रोज सबेरे नहाने के बाद करते थे ! बाबा फरीद के मुरीद थे दुसारे के दुख मिटाने दुवा मांगते रक्षा पानी मंत्र पढकर देते थे राऊत कुल के कुल देवता नाग मन्दार के पूजारी थे तुलासी और वाघीन माँ के पूजारी इस स्थल बंगला कहा जाता है वो हमारा ही घर था शायद हम राज पारिवार के लोग रहे हो ! 

पिताजी मरते तक कभी खाली नही बैठे , चावल के धन्धे के बाद गुड का धन्धा शुरू किया डॉ महेन्द्र गोसावी के देशी दवा बनाने वाले आयूर्वेद फेक्तारी मे स्टोअर कीपर रहे ! 

पर मै उनको अपने कमाई से खरीद कर मलमल का कुर्ता नही दे सका मै 1973 मे मुम्बई मे काम पर लगा और उनका निधन 1970 मे हुवा था ! 

आज फादर्स डे है ! पिताजी की याद मे कुछ थोडा ! 

#जनसेनानी नेटीविस्ट_डीडी_राऊत

Saturday, 14 June 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 9 : 2

पवित्र  बीजक  :  प्रग्या  बोध  :  कहरा  : 9 : 2

कहरा  : 9 : 2

ड़ण्डवा  की  डोरिया  तोरि  लराइनि , जो  कोटिन  धन  होई  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

डण्डवा  की  डोरिया  = फासी  का  फंदा  ! तोरि  = तुझे  ! लराइनि   = लगाई  है  ! जो  = अगर  ! कोटिन  धन  = विपुल  धन सम्पत्ती  ! होई  हो  = पास  मे  हो  ! 

प्रग्या बोध  : 

परमात्मा  कबीर  कहरा  के  इस  पद  मे  कहते  है  भाईयों  बुरे  कर्म  से  लाखो  करोडो  की  धन  सम्पत्ती  कमाई और  चौरी  ड़केती   खुन  खराबा  करते  हुवे  पकडे  गये   और  कानुन  अर्थत  धर्म  अनुसार  मृत्यू  दंड  सुनाया  गया  तो  आपके  पास  की  लाखो  करोडो  की  धन  सम्पत्ती  आप  को  मृत्यू  दंड  , फासी  का  फंदा  से  नही  बचा  सकती  वैसे  ही  कर्म  फल  से  कोई   नही  बचा  सकता  उसका  ऊतार  केवल  सद  धर्म  सद  कर्म  ही  है  !

धर्मात्मा  कबीर  कर्म  विपाक  अर्थात  कर्म  के  फल  के  बात  को  बडी  सरल  भाषा  मे  यहाँ  समझाते  है  ! अच्छे  कर्म  करो  बुरे  कर्मो  से  दुर  रहो  , शिल  सदाचार  का  मुलभारतिय  हिन्दू  धर्म  का  पालन  करो  विकृती  भरे  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण अधर्म  और  ऊंके  फंदेबाज  पांडे  पूजारी  ब्राह्मण  संकारचार्य  आदी  फेरेबी  लोगोंसे  दुर  रहो  , होम  हवन  जनेऊ  छुवाछुत  अस्पृष्यता  विषमाता  शोषण झूठ  का  मार्ग  ब्राह्मणधर्म   छोडो  यही  बात  कबीर  साहेब  हमे  यहाँ  बताते  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण  , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Friday, 13 June 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 9 : 1

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 9 : 1

कहरा : 9 : 1

एसनि देह निरालप बौरे , मुवल छुवे नहिं कोई हो ! 

शब्द अर्थ : 

एसनि = इस प्रकार ! देह = शरीर , जीवन ! निरालप = निर्दोष ! बौरे = मूर्ख ! मुवल = बुरे विचार , मुसावाद , झूठ ! छुवे = स्पर्श ! नहिं = न करे ! कोई = किसी भी प्रकार के ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा नऊ के इस प्रथम पद मे लोगोंको शिल सदाचार का उत्तम धर्म अपनाकर अपना जीवन और ये देह मन शरीर ऊजला करने के लिये कहते है ! लालच , झूठ मोह माया जैसे सभी विकार जो शरीर और जीवन के लिये हानिकारक है उस से बचो ! विकृत विचार और अधर्म से दुर रहो ! विदेशी यूरेशियन ब्राह्मण धर्मी पांडे पूजारी आप को अंध विश्वास मे फसाकर वैदिक अधर्म से आपका जीवन नर्क कर रहे है ! 

मुलभारतिय हिन्दू धर्म का शिल सदाचार का मार्ग आप को गलत रास्ते पर जाने से रोकता है और ब्राह्मण कुकर्म झूठ से बचाता है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Wednesday, 11 June 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 8 : 7

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : कहरा  : 8 : 7

कहरा  : 8 : 7

कुशल  कहत  कहत  जग  बिनसे , कुशल  काल  की  फाँसी  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

कुशल  = अच्छा  , मंगल , कल्याणकारी   ! कहत  = बोलते  है  ! जग  = लोग  ! बिनसे  = नाराज  होते  है  ! कुशल  = आप  का  आनन्द  ! काल  की  फाँसी  =  संकट  पैदा  करने  का  कारण  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  कहरा  के  इस  पद  मे  सावधान  करते  हुवे  बताते  है  जो  लोग अच्छे  है  सुखी   है  लोगोमे  मान  सन्मान  है   ये  सुख  भी  लोगोंको  देखा  नही  जाता  आप  का  आनन्दी  होना  लोगोंको  दुखी  करता  है  क्यू  की  लोग  मोह  माया  मद  मत्सर  से  ग्रस्त  है  आपका  आनन्द  उनहे  देखा  नही  जाता  और  फिर  ये  लोग  आपके  पिछे  पड  जाते  है  आपके  पीठ  पिछे  आपकी  निन्दा  करते  है  आपके  बारेमे  झूठ  फैलाते  है  ! आपकी  कुशलता  भी  एसे  आपके  विरोध  मे  काम  करती  है  और  आपके  लिये  फाँसी  बान  जाती  है  ! 

ये  सब  अजीब  लगाता  हो  पर  सच  है  लोग  आपके  उन्नती , बडे  पद , धन  संपत्ती स्वास्थ  कुशल  मंगल  से  जलते  है  क्यू  की  अधिकतर  लोग  अधर्मिक  लालची  दुसारे  का  बुरा  चाहने  वाले  होते  है  इस  लिये  आपको  सावधान होना  चाहिये  आपके  आनन्द  का  भी  इजहार  ना  करो  !  अपने  आप  मे  संतुस्ट  रहो ,  कुछ  लेना  न  देना  मगन  रहना  अच्छा  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Monday, 9 June 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 8 : 5

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 8 : 5

कहरा : 8 : 5

पानी पवन अकाश जायेंगे, चन्द्र जायेंगे सूरा हो ! 

शब्द अर्थ : 

पानी = पाणी ! पवन = हवा ! अकाश = आकाश ! जायेंगे = नही रहेंगे ! चन्द्र = चांद ! सूरा = सूर्य ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे कहाते है हे मानव तू समझ ले ये संसार और वस्तु ये हवा पानी रिक्तता आकाश चन्द्र सूर्य तारे सभी उस चेतन राम द्वारा निर्मित है और वो जब तक चाहता तब तक ही है , वो जब चाहे इन्हे मिटादे और जब चाहे नया अन्य बना दे सब उसकी मर्जी से चलता है ! वही एकमात्र कर्ता धरता और मालिक है !  

वह निराकार निर्गुण अविनाशी अमर अजर तत्व चेतान राम केवल सत्य शिव सुन्दर और स्थाई है और उसकी सभी निर्मिती परिवर्तनशिल है ! 

राम की सभी निर्मिती एक लहर और तरंग की तरह है अस्थाई है ! स्थाई है तो वो है चेतन राम वो प्रग्या बोध है परमात्मा कबीर ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम  
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Friday, 6 June 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 8 : 2

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : कहरा  : 8 : 2

कहरा  : 8 : 2

आवत  जात  दोऊ  विधी  लूटे , सर्वतंग  हरि  लीन्हा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

आवत  जात  = जन्म  मृत्यू  के  समय  !  दोऊ  विधी  = दोनो  समय  ! लूटे  = कुछ  न  रहना  , शुन्य !  सर्वतंग  = सब  ग्यान  ! हरि  = निराकार  निर्गुण   चेतान  रम  ! लीन्हा  = मालिक  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  कहरा  के  इस  पद  मे  कहते  ह्य  जन्म  और  मृत्यू  दोनो  विधी  के  समय  हम  शुन्य  हो  जाते  है  पूर्व  का  सब  कुछ  हम  भूल  जाते  जब की  सभी  संचित  वो  एकमात्र परमात्मा  निराकार  निर्गुण  चेतन   तत्व  राम  ही  जानते  है  वही  हरि  है  ज़िसने  सब  हरण  कर  हमे  निर्वस्त्र  कर दिया   है  नंगा कर  दिया  है  सब  लूटा  है  !  हम  सब  जन्म के समय  खाली  हाथ  आते  है  और  मृत्यू  के  समय  खाली  हाथ  जाते  है  इस  लिये पाप  और  पाप  की  कमाई  से  बचो  , अधर्म  से  दुर  रहो  , किसी  बात  का  घमण्ड  अहंकार  मत  करो ! तुम  न  कभी  मालिक  थे  न  रहोगे  सब  का  मालिक  एक  परमात्मा  चेतन  राम  है  यह  याद  रखो  ! वही  देता  है  वही  लेता  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Tuesday, 3 June 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 7 : 6

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : कहरा  : 7 : 6

कहरा  : 7 : 6

माँझ  मंझरिया  बसै  सो  जाने , जन  होईहै  सो  थीरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

माँझ  मंझरिया  = मांस  मछलि  ! बसै  = खाने  वाले ! जन = लोग  !  होईहै  = होते है  ! थीरा  = चिल्लर प्रवृत्ती  के  लोग  ! 

प्रग्या बोध  : 

परमात्मा  कबीर  कहरा के  इस  पद  मे  कहते  है  मांस  मछली  खाने  वाले  लोगोंका  ध्यान  वही  रहता है  वे साधु  संगत  मे  बैठते  नही  न  धर्म  अहिंसा  की  बात  सुनते  है  ! मांस  मछली  खाना , होम  हवन  मे  गाय  बैल   घोडे  की  बली  देना  सोमरस  दारू  पिना  आदी  अधर्म  ही  उन्हे  ठिक  लगता है ऐसे  लोग  समाज  मे  गंभीरतासे  नही  लिये  जाते  ! उन्हे  थिल्लर  और  चिल्लर  प्रवृत्ती  के  माना  जाता  है  ! 

विदेशी युरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  के  पांडे  पूजारी  पंडित  ब्राह्मण  जो  दारू सोमरस , गाय  की  बली , झूठे और  कलंकित देवी  देवता   आदी  का  बखान करते  है  तो  लोग  उनका  मजाक उडाते है  क्यू  की  सामान्य  लोग  भी  जानते  है  ब्राह्मण  धर्म  कोई  धर्म  नही  विकृती  और  अधर्म  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण  , अखण्ड  हिन्दुस्तान ,  शिवशृष्टी

Monday, 2 June 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 7 : 5

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : कहरा  : 7 : 5

कहरा  : 7 : 5

मोहन  जहाँ  तहाँ  मै  जईहै , नहि  पत रहल  तुम्हारा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

मोहन  = मोहवश , लालच  मे  , मोह  माया  ग्रस्त  ! जहाँ  तहाँ  = इधर  उधर  ! मै  = लोग  ! जईहै  = जाते  है  ! नहि  = ना  रहना  ! पत = इज्जत , सन्मान  ! रहल  = रहना  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर कहरा  के  इस  पद  मे  लालची , मोह  माया  गस्त  झूठे  मक्कार  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण  धर्मी  पंडे  पूजारी  और  ब्राह्मण  तथा   कथित  पंडित  जो  अपने  आप  को  बडा  ग्यानी  समझते  है  उनकी  लालची  वृत्ती  की  पोल  खोल  करते  हुवे  कहते  है   ब्राह्मण  बडे  लालची  होते  है  दान  दक्षिणा  के लिये   कही  भी  जाते  है  ! अनेक  प्रकार  झूठी  पूजाये  कराकर यजमान  को  लूटते  है  ! 

कबीर  साहेब  कहते  है  एसे  निच   लालची पंडित  की  समाज  मे  कोई  प्रतिष्ठा  नही  है  क्यू  की  लोग जानते  है  वे  पंडितो  से  ठगे  गये  है  !  पंडितो  का  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  झूठ  पर  ही  आधारित  है  लोगोंको  ठगने  के  लिये  ही  बना  है  ! ये  धर्म  नही  अधर्म  और  विकृती  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबिरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी