#डोमाजी_लहुजी_राऊत मेरे पिताजी ! नेटीवीस्ट डी डी राऊत
मेरे पिताजी डोमाजी लहुजी राऊत का जन्म 1890 मे हुवा था पक्की तारिख मालुम नही 1 जुन 1890 स्कुल दाखले के लिये शायद लिखी गई थी !
पिताजी कुछ ही दिन स्कुल गये और स्कुल से भाग कर घर आते थे इसलिये पहली फेल थे !उनके बचपन मे ही मेरे दादाजी का निधन हुवा था ! पिताजी एकमात्र संतान होने के कारण मेरी दादी पार्वताबाई ने उन्हे बडे लाड प्यार से पाला ! मेरे दादाजी भी अकेले लडके थे और गाँव की गणविर खांदान की सुन्दर गोरी चिठ्ठी लडकी पर्वताबाई से बचपन मे ही शादी कर दी गई थी !
हमारा पुस्तनी धन्धा धान ले कर उसे चावल बनाने वाले बडी हलकी चक्की पर धान से चावल बनाने और गाँव के गुजरी हाट बाजार मे बेचना था जादा तर वार्ड के लोग और रिस्तेदार यही काम करते थे कुछ लोग खेती मजदुरी य़ा सिलाई का काम भी करते थे !
मेरे पिताजी का जन्म हुवा और जल्दी ही मेरे दादाजी चल बसे , दादी कहती थी वो बडे हँडसम और बहुत गोरे थे बाल घूँगरालू और घने थे ! पहलवानी का शौक था !
दादी ने अपनी पुरी ज़िन्दागी मेरे पिताजी डोमाजी राऊत को बडा करने और उसका धन्धा परिवार बसाने मे लगा दिया !
जब पिताजी यही कोई 15 - 16 साल के हुवे उनकी शादी सिन्दपुरी के मोटघरे परिवार के कोतवाल की लडकी किशनाबाई से कर दी गई जो खुद एक नासमझ 9 साल की बच्ची थी ! दोनो बच्चे जैसे रहकर दादी को हाथ बटाते हुवे बडे हुवे ! पिताजी को दादाजी जैसे पहलवानी का शौक चढा मेरे पिताजी के दोस्त अक्सर दुसरे पहलवान ज़िसमे खाटीक बारई मुस्लिम आदी थे ज़िन्हे आखाडा और पहलवानी के कारण गाँव और पडोस के गाँव मे सभी वस्ताद के नाम से जानते थे ! कुछ लोगोंसे बडी अच्छी दोस्ती थी और तिज त्योहार पर वो पिताजी को भोजन पर बुलाते थे मै बचपन मे अक्सर उनके साथ जाया करता था !
मेरे पिताजी के शादी के 5 - 6 साल बाद मेरी दादी को चिंता हो रही थी की किसनाबाई की गोद नही भरी माँ बच्ची थी पर दादी को जल्दी थी वो पोता पोती का मुख जल्दी देखना चाहती थी इस लिये उसने पिताजी की शादी गोसे मार्ग पर बसे खेडे की लडकी दारोंबाबाई जो बालीग 18- 19 की कास्तकार परिवार की अकेली लडकी से करादी जो दुरसे ममेरी रिस्तेदार ही थी !
इस तरह मुझे दो माँ ये हुवी ! दोनो स्वभास से शांत थी और फिर एक के बाद एक बच्चे पैदा होना शुरू हुवा !
पार्वताआई को सब से बडा बेटा गणपत फिर पांड़ूरंग
किशनाआई को श्रिकांत फिर देवाजी फिर बाबाजी फिर मै दौलत फिर दो छोटी बहने शशिकला , सरिता !!
बिच मे एक दो संताने मरे भी !
दो माँ के हम छ भाई दो बहने ! मै भाईयोमे सब से छोटा !
पुस्तानी धन्धा चावल का व्यापार ! फिर राईस मिल गाँव मे खुली , धान की चक्की बन्द हुवी ! बडा परिवार ! दोनो माँ खेतोमे कोई छोटा बडा काम करती जंगल से जलावन लकडी लाती परिवार मे हाथ बटाती ! दादी बहुत बुढी हुवी देखा है जब उसका देहांत हुवा तब मै बहुत छोटा था गोरी पतली सफेद बाल वाली बुढी याद आती है !
मेरे बचपन मे पिताजी चावल के बोरे बेचने कभी नागपुर रायपुर माल ले जाते ! मेरे बचपन मे ही पिताजी के चावल का ट्रक ज़िल्हा बन्दी या राज्य बन्दी के कारण माल के साथ ज़प्त हुवा था उसके बाद हमारी माली हालत बिघडती गई !
बडा परिवार , बडे होते बच्चे पिताजी ने मेरे सब से बडे भाई गणपत की पढाई बन्द कराकर कपदे की शिलाई मशिंन सिखने के लिये नागपुर को एक चाचा संभाजी राऊत के पास भेजा ! काम सिखाने के बाद नागपुर मे शिलाई का दुकान लष्करीबाग मे शुरू करा दी !
अच्छे व्यवहार के कारण किसान उनके धान उधारी पर देते थे ! फिर माल बाजार और नागपुर मंडी मे ले जाते रहे ! आते वक्त वे जो फल यहा नही मिलते वो लेकर आते थे !
पांड़ूरंग दादा , श्रिकांत दादा गाँव के नगरपालिका के स्कुल मे पढ़ाई कर दोनो मेट्रिक हुवे और कोलेज के पढाई के लिये नागपुर भेजे गये !
पांड़ूरंग दादा को बचपन से ही समाज कार्य मे रूची थी इस लिये वो समाज के सिद्धार्थ होस्टेल के सचिव बने जो उस समय समाज के दान पर चलता था , एक परिवार के पिताजी के सम वयस्क चाचा मंसाराम राऊ जो टेलर थे गांधीजी से प्रभावित होकर कोंग्रेस के आजादी के आंदोलन मे जुडे थे वो आगे स्वातंत्र सेनानी बन जेल भी गये वो भारत सेवक समाज से जुडे और उनको बताया गया की समाज ने अगर होस्टेल भारत सेवक समाज इस संस्था के माध्यम से चलाया तो जल्दी मान्यता सरकारी अनुदान भी मिलेगा !
उसी समाय पवनी के नगरपालिका के स्कुल मे माध्यमिक शिक्षक की जरूरत है ! मंसाराम राऊत कोंग्रेश के कार्यकर्ता होने के कारण नगरसेवक और नगरपालिका अध्यक्ष भी चुने गये थे और फिर ऊहोने प्रस्ताव रखा की पांडूरंग दादा शिक्षक बने पढे लिखे होने के कारण संस्था का सचिव बन कार्य करे और सिद्धार्थ होस्टेल का अधिक्षक मंसाराम राऊत बने ताकी सरकार से आधा पगार और संस्था से आधा पगार उनको मिले और परिवार चले , उस समाय स्वातंत्र सेनानी को कोई पेंशन आदी कुछ नही मिलता था !
पांड़ूरंग राऊत राऊत गुरूजी के नाम से आगे बहुत प्रतिष्ठित हुवे और आजू बाजू के सभी गाँव खेडे के लोग उनको जानने मानने लगे ! शुरू के अनेक वर्ष सिद्धार्थ होस्टेल के अधिक्षक , सचिव रह कर होस्टेल सभी रिकार्ड रख कर पांड़ूरंग राऊत गुरूजी मंसाराम राऊत को होस्टेल पुरी तरह दे कर बाहर हुवे फिर नगरपालिका स्कुल के कुछ शिक्षक घोडीचौरे ( मयूर ) गुरूजी , खापर्डे गुरूजी , अमृत मेश्राम , गणपत राऊत ,पुष्पा राऊत आदी को सदश्य बनाकर खुद एक नई संस्था नालंदा के सचिव का पद लेकर सारे रिकार्ड रखने से लेकर विद्दयार्थी जूटाना फिर एक बार राऊत गुरूजी ने शुरू किया मेरी माँ किशनाबाई खाना पकाने का काम करती मेरा एक बडा भाई देवाजी राऊत जो मेट्रिक फेल और छपाई का काम जानता था उसे नये होस्टेल नालंदा होस्टेल का अधिक्षक बनाया गया तिनो दिनरात नालंदा होस्टेल के बींन पगारी सेवक ! नालन्दा होस्टेल को मान्यता मिलाई , अनुदान मिलाना शुरू हुवा होस्टेल सिद्धार्थ होस्टेल के बाद एक बडा होस्टेल बना ! पांडूरंग गुरूजी ने उसे भी छोड दिया !
दादा साहेब चव्हान ने ने गुरूदेव मंडल मोजरी के माध्यम से कस्तुर्बा गर्ल होस्टेल निकाला ऊँहोने पांड़ूरंग राऊत से मदत मांगी ,गुरूजी ने ऊँहे पुरी मदत की ! समाज़ सेवा इसे कहते है !
श्रिकांत राऊत मेरे एक भाई नागपुर मे तहसिलदार बने एक भाई बाबाजी एंमएसईबी मे सेवा देकर रिटायर्ड हुवे !
मेरे सभी भाई बहन आज नही है ! जब मै बी कॉम की पढाई 1970 कर रहा था तब मै मेरे गाँव के बौद्धिक मंडल का अध्यक्ष बना अपना विचार नेटीवीज्म और नेटीव हिन्दुत्व के कार्य के लिये नेटीव रूल मुव्हमेंट बनाई ! अनेक सामाजिक संस्था , शिक्षा संस्था बनाया , राजकिय पक्ष नेटीव पिपल्स पार्टी बनाई !
पर मेरा सपना मेरे पिताजी को मै अपने कमाई से मलमल का कुर्ता भेट करू !
मेरे पिताजी बचपन से पहलवानी के कारण मोटे तगदडे थे , सफेद शर्ट धोती और पूठठे वाली लाल टोपी ऊनका रोज़ का पेहराव था वे बीडी चिलिंम पिते थे पर दारू कभी नही पिते थे हम सब मांस मछाली के शौकींन थे ! घर मे नाग थाना और नागो की पूजा रोज सबेरे नहाने के बाद करते थे ! बाबा फरीद के मुरीद थे दुसारे के दुख मिटाने दुवा मांगते रक्षा पानी मंत्र पढकर देते थे राऊत कुल के कुल देवता नाग मन्दार के पूजारी थे तुलासी और वाघीन माँ के पूजारी इस स्थल बंगला कहा जाता है वो हमारा ही घर था शायद हम राज पारिवार के लोग रहे हो !
पिताजी मरते तक कभी खाली नही बैठे , चावल के धन्धे के बाद गुड का धन्धा शुरू किया डॉ महेन्द्र गोसावी के देशी दवा बनाने वाले आयूर्वेद फेक्तारी मे स्टोअर कीपर रहे !
पर मै उनको अपने कमाई से खरीद कर मलमल का कुर्ता नही दे सका मै 1973 मे मुम्बई मे काम पर लगा और उनका निधन 1970 मे हुवा था !
आज फादर्स डे है ! पिताजी की याद मे कुछ थोडा !
#जनसेनानी नेटीविस्ट_डीडी_राऊत