पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 9 : 3
कहरा : 9 : 3
उर्ध निश्वासा उपजी तरासा , हँकराइनि परीवारा हो !
शब्द अर्थ :
उर्ध निश्वासा = सुस्कार , हताशा , अशंती , सांस लेने मे तकलीफ , सिने मे दर्द , दिल की बिमारी ! उपजी = उत्पन्न होना ! तरासा = दुख , उदासिनता ! हँकराइनि = गर्व ! परीवारा = एक गुण के , परिवार के !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कहरा के इस पद मे कहते है की अहंकार गर्व ना करो यह अधर्म है वो माया मोह आदी विकार को जन्म देता है ये सब एक ही परिवार के अवगुणी लोग है या अधर्म है जो कुछ क्षण समय के लिये आपको गर्व से भर देते है पर आप समज लो गर्व का घर एक ना एक दिन खाली होता ही है ! इसलिये गर्व अहंकार ना करो !
कबीर साहेब कहते है जब अहंकार टूटता है तो बडा कस्ट होता है ,दिल टूट जाता है दिल की बीमारी हो जाती है थका हारा महसुस करता है और आहे भरता रहता है सांस लेने छोडने मे बडी तकलीफ होती है इस लिये मोह माया लालच अधिक धन सम्पत्ती के होड मे और उसके गर्व मे मानवता ना भूलो !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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