Monday, 2 June 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 7 : 5

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : कहरा  : 7 : 5

कहरा  : 7 : 5

मोहन  जहाँ  तहाँ  मै  जईहै , नहि  पत रहल  तुम्हारा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

मोहन  = मोहवश , लालच  मे  , मोह  माया  ग्रस्त  ! जहाँ  तहाँ  = इधर  उधर  ! मै  = लोग  ! जईहै  = जाते  है  ! नहि  = ना  रहना  ! पत = इज्जत , सन्मान  ! रहल  = रहना  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर कहरा  के  इस  पद  मे  लालची , मोह  माया  गस्त  झूठे  मक्कार  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण  धर्मी  पंडे  पूजारी  और  ब्राह्मण  तथा   कथित  पंडित  जो  अपने  आप  को  बडा  ग्यानी  समझते  है  उनकी  लालची  वृत्ती  की  पोल  खोल  करते  हुवे  कहते  है   ब्राह्मण  बडे  लालची  होते  है  दान  दक्षिणा  के लिये   कही  भी  जाते  है  ! अनेक  प्रकार  झूठी  पूजाये  कराकर यजमान  को  लूटते  है  ! 

कबीर  साहेब  कहते  है  एसे  निच   लालची पंडित  की  समाज  मे  कोई  प्रतिष्ठा  नही  है  क्यू  की  लोग जानते  है  वे  पंडितो  से  ठगे  गये  है  !  पंडितो  का  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  झूठ  पर  ही  आधारित  है  लोगोंको  ठगने  के  लिये  ही  बना  है  ! ये  धर्म  नही  अधर्म  और  विकृती  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबिरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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