कहरा : 7 : 2
मुँड मुँडाय फुलि के बैठे , मुद्रा पहिर मँजूषा हो !
शब्द अर्थ :
मुँड मुँडाय = सर के बाल मुंडाना , मुंडन ,होम हवन करना ! फुलि के बैठे = ब्राह्मण होने का अहंकार ! मुद्रा = अंगठी ! पहिर = पहनी , धारण किया ! मंजूषा = धन पिटारा , पेटी , बक्सा !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे उन यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्मी पांडे पूजारी ब्राह्मण पर कटाक्ष करते हुवे कहते है ये लोग होम हवन की विधी कर उनके बच्चौ को द्विज कहते है इस लिये उनके सर के बाल का मुंडण करते है , जनेऊ पहनाते है पीतांबर पहने ये अहंकार गुब्बार बक्सा बन जाते है और से फुले नही समाते !
इन विदेशी ब्राह्मणों को लगाता है वही सर्व श्रेष्ठ और धनवान है और ब्राह्मण होने के कारण उनका जीवन सफल हो गया पर एसा नही है उसके बाद वो जीवन भर असत्य अहंकारी वर्ण जाती का अधर्म विकृती का पालन कर नर्क मे जाते है ! नर्क ही उनके धन की पेटी है !
धर्मविक्रमादित्य कबिरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ