Friday, 30 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 7 : 2

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 7 : 2

कहरा : 7 : 2

मुँड मुँडाय फुलि के बैठे , मुद्रा पहिर मँजूषा हो ! 

शब्द अर्थ : 

मुँड मुँडाय = सर के बाल मुंडाना , मुंडन ,होम हवन करना ! फुलि के बैठे = ब्राह्मण होने का अहंकार ! मुद्रा = अंगठी ! पहिर = पहनी , धारण किया ! मंजूषा = धन पिटारा , पेटी , बक्सा ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे उन यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्मी पांडे पूजारी ब्राह्मण पर कटाक्ष करते हुवे कहते है ये लोग होम हवन की विधी कर उनके बच्चौ को द्विज कहते है इस लिये उनके सर के बाल का मुंडण करते है , जनेऊ पहनाते है पीतांबर पहने ये अहंकार गुब्बार बक्सा बन जाते है और से फुले नही समाते ! 

इन विदेशी ब्राह्मणों को लगाता है वही सर्व श्रेष्ठ और धनवान है और ब्राह्मण होने के कारण उनका जीवन सफल हो गया पर एसा नही है उसके बाद वो जीवन भर असत्य अहंकारी वर्ण जाती का अधर्म विकृती का पालन कर नर्क मे जाते है ! नर्क ही उनके धन की पेटी है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबिरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Wednesday, 28 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 6 : 7

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : कहरा  : 6 : 7

कहरा  : 6 : 7

कहहिं  कबीर यह  औसर  बीते , रतन न  मिले बहोरी  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

कहहिं  कबीर  = स्वयं कबीर  कहते  है  ! यह  औसार  = यह  जन्म  , ये समय , क्षण  ! बीते  = निकल  गया  ! रतन  = अनमोल  मोक्ष  , निर्वांण  , राम ! न  मिले  = नही  मिलेगा  ! बहोरी  = दूबारा  ! 

प्रग्या बोध  : 

परमात्मा  कबीर कहरा  के  इस  पद  मे  कहते है  भाईयों  यह  जीवन  अनमोल  है  अद्भूत  है  क्यू  की  ये  मानव  जीवन  सभी योनी मे  श्रेष्ठ  है  केवल  मानव  जन्म  मे  ही  प्रग्या  बोध  हो  सकता  है  शिल  सादाचार  का  धर्म  की  परख  इसी  जन्म  मे  होती  है  इस लिये  इस  जीवन व्यर्थ  ना  जाने  दे  , इस जीवन  मे  मृत्यू  कब  कैसे  कहा  आये  कुछ  भरोसा नही  इस  लिये  हर  समय  सावधान  रहो  और  हर  पल  हर  क्षण  परमात्मा  चेतन   राम  की  प्राप्ती  मे  लग जावो  ! ये जन्म  चुके  और  बेकार  गया तो  जन्म  मृत्य  के  भव  चक्र  से  बच  नही  सकोगे  और  फिर यह  मानव  जीवन कब  मिले  कोई  भरोसा  नही  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबिरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Tuesday, 27 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 6 : 5

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : कहरा  : 6 : 5

कहरा  : 6 : 5

दर्ब  हीन  जैसे पुरूषारथ , मन  ही  माँहि  तबाई  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

दर्ब  = अहंकार  ! हीन  = रहित  ! पुरूषारथ  = करनी  , पुरूषार्थ  !  मन  = अंतकरण  ! तबाई  = बर्बादी , उथलपूथल  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  कहरा  के  इस  पद  मे पुरूषार्थ  के  बारेमे  बात  करते  हुवे  बताते  है  पुरूषार्थ  वही  उत्तम  है  जो  अहंकार  रहित  है  क्यू  की  अहंकार  मन  को  कालुशित  करता  है  और  अंतकरण मे  उथलपूथल  निर्मांण  कर  अशांती  को  जन्म  देकर  सुख  को  दुख  मे  बदल  देता  है  ! 

अहंकार  ने  बडे  बडे  लोगोंको  पद  भ्रस्ट  कर  दिया  ज़िसके  उदाहरण  रावण  कंस  दूर्योधन  है  !  अहंकार  ने  इनकी  क्या  दूर्गती  की  है  सब  जानते है  ! 

धर्मविक्रमादित्य   कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Udyog Ratn Ramai !

#उद्योगरत्न_रमाई ! 

आज रमाबाई आम्बेडकारांचा मृत्य दिन आहे त्यांचे स्मृतीस विनम्र अभीवादन ! 7 फरवरी 1894 – 27 मे 1935 त्यांचा जन्म आणी मृत्यू दिन आहे , त्यांना अल्पायुष लाभले व अतिषय गरीब आणी खड़तर आयुष्य जगावे लागले ! 

रमाबाई आम्बेडकर ह्या भारतिय संविधान चे जनक भारतरत्न डॉक्टर बाबासाहेब यांच्या प्रथम पत्नी ! 

अस्पृष्य महार समाजात बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर आणी रमाबाई चा जन्म झाला होता ! 

लग्नाचे समई आम्बेदडकर 15 वर्षाचे तर रमाई 12 ची होती !

परदेशात जाऊन ज्ञानसाधना करणाऱ्या बाबासाहेबांना मात्र रमाईने कधी आपल्या दुःखाची झळ पोहचू दिली नाही. पती परदेशात शिक्षणासाठी गेले. रमाई एकट्या पडल्या.. घर चालवण्यासाठी तिने शेण गोवऱ्या.. सरपणासाठी वणवण फिरल्या. पोयबावाडीतून दादर माहीम पर्यंत जात असत बॅरिस्टराची पत्‍नी शेण वेचते म्हणून लोक नावे ठेवतील. म्हणून पहाटे सूर्योदयापूर्वी व रात्री ८.०० नंतर गोवऱ्या थापायला वरळीला जात असत. मुल उपशी राहु नये म्हणुन स्वता उपास करत असत ! 

रमाई दलित समाजातिल महिला सारख्याच कष्टलू होती ! खुटुम्बाला मदत व्हावी या साठी रमाई ने शेंण गोवारी थापून विक्री चा घरगुती उद्योग शुरू केला ! रमाई ला मुलभारतिय गृह उद्योगरत्न ही उपादी देणे सयुक्तिक ठरेल !

#नेटीवीस्ट_दीपा_राऊत

Monday, 26 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 6 : 4

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 6 : 4

कहरा : 6 : 4

स्वादे बोद्र भरे धौं कैसे , औसे प्यास न जाई हो ! 

शब्द अर्थ : 

स्वादे = स्वाद ! बोद्र = उदर , पेट ! भरे धौं = पेट की अग्नी ! औसे = रात के बाद सबेरे की पडने वाली बुन्दे ! प्यास = पानी की जरूरत ! न जाई = नही जाती ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे बताते है की पेट की भूक केवल अन्न के सुवास स्वाद से नही भरती ऊचित मात्रा मे अन्न खाने से ही पेट भरता है दुर रखे स्वादिस्ट अन्न से भूक नही मिटती वैसे ही सबेरे की पडने वाली ओंस से मानव की प्यास नही बुझती उसे ऊचित मात्रा मे पानी खुद पिना होता है वैसे ही धर्म की बात है धर्म का खुद पालन कर ही उसका सुख उसका पुन्य अर्जित किया जाता है धर्म धर्म कहने से कुछ नही होता है ! 

जो धर्म ही नही जो संस्कृती ही नही एसे अधर्म विकृती से भरे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म का पालन करने से कुछ नही होगा ! अपना समतावादी मुलभारतिय हिन्दूधर्म चाहे ज़ितना अच्छा हो दुर रखोगे तो कैसा आपका कल्याण होगा ? बुरे को दुर करो अछे को अपनावो तो सुख मिले ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम  
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Sunday, 25 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 6 : 3

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 6 : 3

कहरा : 6 : 3

जैसे मदपी गाँठि अर्थ दै , घरहु कि अकिल गमाई हो ! 

शब्द अर्थ : 

जैसे = जीस प्रकार ! मदपी = मद्द , दारू पीने वाला , नशेडी ! गाँठि = निज , अपने पास की ! अर्थ = पैसा , संपत्ती ! घरहु = घर , कुटुम्ब ! अकिल = सुख शांती ! गमाई = गमाना , निकल जाना ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे नशेडी गंजेडी , दारू बाज लोगोंकी हालात की उपमा अधर्म विकृत विदेशी वैदिक ब्राह्मण धर्म से करते हुवे खुद की संपत्ती ,धन दौलत सुख शांती घर कुटुम्ब की ईबहरत , इज्जत सब कुछ बेकर की वस्तु दारू पर खर्च करता है वैसे ही मूर्ख लोग विदेशी वैदिक ब्राह्मण धर्म के वर्ण जातिवाद ऊचनीच भेदभाव छुवाछुत अस्पृष्यता होम हवन गाय बैल की बली आदी का समर्थन करने वाला सोमरसी दारुबाज अनैतिक विकृत अधर्म ब्राह्मण धर्म की नर्तकी मेनका रंभा ऊर्वशी जैसी देवदासी के भोग मे पुंजी जीवन और घर का सुख सब लूटा दे रहे है ! 

कबीर साहेब दारूबाज लोग और एसे धर्म से दुर रहने की बात करते है !

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Saturday, 24 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 6 : 2

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 6 : 2

कहरा : 6 : 2

सेमर सेइ सुवा ज्यौं जहँडे , ऊन परे पछताई हो ! 

शब्द अर्थ : 

सेमर = वृक्ष ! सेइ = फल सेवन करना ! सुवा = पछी ! ज्यौं = ज्यो कोशिश करे ! ऊन = रोये , कपास ! परे = बादमे ! पछताई = पछताना ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे उस पन्छी की हालत का वर्णन करते है जो सेमर वृक्ष के बडे बडे फल को रसदार समझकर उसे खाने के लिये चोंच मारता है और उसमे कोई रस नही मिलता है तो और जोर जोर से चोंच मरकार उस कठिण फल के आवरण को तोड देता है और फल से कोई रस गुदा खाने योग्य कुछ नही निकलता बस सुखी रूई ही रूई बहार आती है और रूई हवा मे उडने लगती है और पन्छी कुछ भी खाने को नही मिलने से अंतता निराश हो कर उड जाता है ! 

 कबीर साहेब कहते है भाई तुम भी व्यर्थ अर्थहीन विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म अपने भले का कुछ चाहते हो पर जैसा सेमर का पेड रसहीन है वैसे ही ब्राह्मण धर्म धर्महीन है ! वहा ब्राह्मण के मतलब फायदे की बात है जैसे सेमार के फल मे पन्छी के फायदे की कोई बात नही ! सेमर ने तो अपने बीज हवा से रूई उडे और दुर दुर तक बीज पहूचे इस लिये उसे रूई से चगा दिये पन्छी को खाने के लिये नही ! आवरण पर मत जावो ! गहराई मे देखो विदेशी युरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म तुम्हारे फायदे के लिये नही बना है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Thursday, 22 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 5 : 8

पवित्र  बीजक  : प्रग्या बोध  : कहरा  : 5 : 8

कहरा  : 5 : 8

कहहिं कबीर एक  राम  भजे  बिनु , बुड़ी सब  चतुराई  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

कहहिं  कबीर  =  कबीर  का  कहना  है  ! एक  राम  = एक  की  परमतत्व  निराकार  निर्गुण  चेतन राम  ! भजे  बिनु  = जाने  बिना !  बुड़ी  = डुबगई  , व्यर्थ गई  ! सब  चतुराई  = सब  ग्यान ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  कहरा  के  इस  पद  मे  निराकार  निर्गुण  अविनाशी  अजर  अमर  सार्वभौम  सर्वत्र सर्वद्यन  केवल   एक  परमात्मा  है  ज़िसने  हम  सब  चराचर  शृष्टी  बनाई  है  वो  हम  सब  मे  है  हम  सब  उसी  मे  है  ! न  वो  अवतार  लेता  है  न  मुर्ती  मे  बसता  है  ! न  वो  दशरथ  का  राम  है  न  अन्य  कोई  राम  नाम  की  व्यक्ती  ! पर  शिव  राम  कृष्ण  आदी  मानव  आपने  गूणो  के  कारण  मानव  समाज  मे  उत्तम  पुरुश  हुवे  जैसे  महाविर  बुद्ध  कबीर  नानक साई  आदी  जैसे  फुले  गांधी  आम्बेडकर  आधुनिक  काल  मे  हुवे  इस  लिये  अनुकरणीय पूज्यनिय  है  पर  परमात्मा  चेतन  राम  नही  ! मर्त्य  लोग  और  चेतन  तत्व  राम  मे  क्या  अंतर  है  कबीर  साहेब ने  आसान  शब्दो  मे  स्पस्ट  किया  और  बताया  की  संसारी  ग्यान  विग्यान  धर्म  मान्यता  पंथ  विचार  सब  बेकार  है  अगर  वो  चेतन राम  की  शिवशृष्टी  वेवस्था  को  नही  जानते  और  ओतर मूर्ती पूजा  ढ़ोंगधतुरे  जाती  वर्ण ऊचनीच  छुवाछुत  अस्पृष्यता  होम  हवन  गाय  बैल  आदी  की  बली  सोमंरस  मेंनका ऊर्वशी   अप्सरा   स्वर्ग नरक वैदिक  असभ्य  देवी  देवता  के अधर्म  और  विकृती  मे  फसे  है  तो  सब  ग्यान  बेकार  है  ! 

कबीर  साहेब  कहरा  पाँच  के  अंतिम  पद  आठ  मे  यही  बात  कहते  है  भाई  शिल  सदाचार  समता  ममता  विश्व  बंधुत्व  का  धर्म  मुलभारतिय  हिन्दू  धर्म  का  पालन  करो  तो  परम  तत्व  चेतन  राम  के  दर्शन  हो  और  जीवन  सफल हो  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम  
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Tuesday, 20 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 5 : 6

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 5 : 6

कहरा : 5 : 6

उपजत बिनसत बार न लागे , ज्यों बादर की छाँही हो ! 

शब्द अर्थ : 

उपजत बिनसत = जन्म मृत्यू ! बार = समय ! न लागे = नही लगता ! ज्यों = जैसे ! बादर = बादल ! छाँही = छाया ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे जन्म और मृत्यू को समय नही लगता वो परमात्मा निराकार निर्गुण अजर अमर तत्व नित नव और क्षण क्षण नव निर्मिती और विलुप्त होता रहता है इस लिये जीवन को क्षणिक है जैसे बादल आकाश मे आता है और छाया धरती पर आती है और जैसे ही बादल आगे बढकर निकल जाता है छाया भी निकल जाती है इस लिये मानव इस धरती पर अपना जीवन क्षणिक है ये सत्य जानकर अपना जीवन मुलभारतिय हिन्दूधर्म का एकमात्र ग्रंथ पवित्र कबीर वाणी पवित्र बीजक का सद्धर्म शिल सदाचार समता भाईचारा धर्म पालन कर जीवन का अंत होने के पहले उसे सार्थक बनाये !

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Monday, 19 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 5 : 5

पवित्र  बीजक  :  प्रग्या  बोध  : कहरा  : 5 : 5

कहरा  : 5  : 5

ई  संसार  असार  को  धन्दा , अंतकाल  कोइ  नाहीं  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

ई   =  ये  !  संसार  = शृष्टी  , जगत  , विश्व  ! असार  = सारांश मे  कुछ  नही  !  को = है  ! धन्दा  = काम  ! अंतकाल  = अंतता   !  कोइ  = रिस्तेदार आदी  ! 

प्रग्या  बोध   : 

परमात्मा  कबीर  कहरा  के  इस  पद  मे  इस  संसार  का  मर्म  बताते  हुवे  कहते  है  निर्गुण  निराकार  अविनाशी   अमर  अजर तत्व  चेतन  राम   ने  इस  शृष्टी  का  निर्मांण  किया  वह  सब  मे  है  कण  कण  मे  है  और  हम  सब  दृष्य  अदृष्य  उसकी  निर्मिती  उसी  मे  है  पर  अलीप्त  नही  , वो  अलिप्त  भाव  से  हम  मे  कार्यरत  है  और  हम  कार्य  कारण  भाव    नियाम  उसके  परिणाम   और  मै  पन  , अहंकार  माया  मोह   इच्छा  तृष्णा  लासच  आदी  से  बंधे  है इस  से  मुक्ती  का  मार्ग  धर्म  अर्थात  शिल  सदाचार निगर्वी  आचरण  समता  भाईचार  का  मार्ग  ही है  अन्य  कोई  नही  और  यह  बोध  जगत  मे केवल  मनुष्य  जन्म  मे  ही  हो  सकता  है  अन्य  प्राणी  पक्षी  आदी  जन्म  मे  नही  इस  लिये  मानव  जन्म श्रेष्ठ  है  पर  हम  फिर  यहाँ  अधर्म  और  विकृती  के  आचरण  के  कारण  इस  अद्भूत  मानव  जन्म  को  विकार ग्रस्त  जीवन  के कारण  खो  देते  है  और  अंतता   मै  मेरा की  चक्कर  मे  असार  को  इकठहा करते  है  और  सार  को  छोड  देते  है  और  बार  बार  अनेक प्रकार  के जन्म लेकर  जन्म  मृत्यू  के  भव  चक्र  मे  दुख  भोगाते  रहते  है  ! 

कबीर  साहेब  उनकी  वाणी  पवित्र  बीजक  मे  मुक्ती  के  मार्ग का  धर्म  ग्यान  देते  है  , यही प्रग्या  बोध  मुलभारतिय  हिन्दू  धर्म  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू   नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Mulbhartiya Hindhudharm Vishwapeeth


Saturday, 10 May 2025

Hindu Rashtra ! A poem by Jansenani

#हिंदूराष्ट्र 

करो आठ दिन मे  
अखण्ड हिंदुस्तान 
ना हो देश से बैमान 
कह रहा हैं हिंदुस्तान !

अब की बार मौका 
मारो मौके पर चौका 
हिंदू के दुष्मन भगा दो 
हिंदू राष्ट्र अब बना दो !

वर्णवाद की करो छुट्टी 
जाति की मिटावो हस्ती 
ब्राह्मण विदेशी भगावो 
अब तो हिंदूराष्ट्र बनावो !

सोन चिडिया मेरा देश 
वैदिक भगावो विदेश 
वेद मनुस्मृती दो विदाई 
बाकी हिंदू भाई भाई !

हिंदू कोड बिल कानुन 
बीजक धर्मग्रंथ हिंदू का 
समाता का अलख जगवो 
साचा हिंदूराष्ट्र बनावो !

#जनसेनानी

Friday, 9 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 4 : 2

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 4 : 2

कहरा : 4 : 2

राम नाम का करहु बनिजिया , हरि मोरा हटवाई हो ! 

शब्द अर्थ : 

राम = परमात्मा चेतन तत्व राम ! नाम = सुस्मरण ! करहु = करता हु ! बनिजिया = वस्तु बेचने वाला बानिया ! हरि = माया मोह अहंकार हरने वाला , छुटकारा देने वाला गुरू ! मोरा = मेरा ! हटवाई = धर्म विचार , विश्वास ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे निराकार निर्गुण चेतन तत्व अविनाशी शिव राम को अपना विश्वास कहते हुवे इसी का स्मरण , ध्यान करना चाहिये यह बताते है ! यही विचार का मै प्रचार प्रसार करता हूँ जो मुलभारतिय हिन्दूधर्म है जो समातावादी है ! 

कबीर साहेब कहते है जो विचार दुख से मुक्ती दे ,अहंकार माया मोह से मुक्ती दे जाती वर्ण विषमाता शोषण छुवाछुत अस्पृष्यता अधर्म विकृती से मुक्ती दे उसी विचार का मै प्रचार प्रसार करता हूँ ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम  
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Thursday, 8 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 4 : 1

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : कहरा  :  4  : 1

कहरा  :  4  :  1

ओढन  मोरा  राम  नाम , मैं  रामहि का  बनजारा   हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

ओढन  = लेना  , स्विकारना ! मोरा  = मेरा  ! राम  = चेतन  तत्व  परमात्मा  राम  ! मै = कबीर  !  रामहि  = राम  का  ! बनजारा  = भटकने  वाला शृष्टी  का   जीव  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  कहरा  के  इस  पद  मे  निराकार  निर्गुण  अमर  अजर  सदा  सत्य  शिव  सुन्दर  परम तत्व  चेतन  राम  और  उसने  निर्मित  इस  चराचर  शिवशृष्टी  का  आपसी  सबंध  स्पस्ट करते  हुवे  कहते  है  मै  कबीर  वही  चेतन  तत्व  राम  हूँ  ज़िसने  इस  शिवशृष्टी  जीव  बनकार  शृष्टी  के  सदा शिव  सत्य  सुन्दर   नियम  का  पलान कर  ये  जीवन  व्यतीत  करना  है  ! लाखो  योनियोंके  प्रवास  बाद  ज़िसमे  प्रग्या का  आत्म  बोध  कराने  वाला  मानव  जीवन  बडे   सौभाग्य  प्राप्त  होता  ! अगर  उसमे  भी  मानव  अधर्म  विकृती  को  स्विकार  कर  जीवन को  बर्बाद किया  तो जन्म  मृत्यू के  भवचक्र  मे  फिर   एक बंजारे  की  तरह  भटकना  पडेगा  !
  
कबीर   साहेब  कहते  है  मै  वो  बंजारा  हूँ  जो  राम  की  तरफ  जाने  वाला  धर्म  मार्ग  जानता है  वो  मार्ग है  शिल  सदाचार  भाईचारा  समाता का  मार्ग  मुलभारतिय  हिन्दू  धर्म  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म विश्वपीठ
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Wednesday, 7 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 3 : 8

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 3 : 8

कहरा : 3 : 8 

कहहिं कबीर सुनो हो संतो , सकल सयाना पहुँना हो ! 

शब्द अर्थ : 

कहहिं : कहना ! कबीर = परमात्मा , धर्मात्मा कबीर स्वायं , चेतन तत्व राम ! सुनो = सुनो समझो , मानो ! संतो = साधु समाज ! सकल सयाना = पूर्ण ग्यानी ! पहुना हो = धन्य हो ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे कहते है भाई आधे अधुरे धर्म ग्यानी , अधर्म आचरण करने वाले कभी अंतिम लक्ष निर्वांण की अवस्था को प्राप्त नही हो सकता इस लिये सकल धर्म ग्यान और आचरण की जरूरत होती है , संसारी तो संसारी , साधु संत प्रवृत्ती के लोग भी अंध विश्वास वैदिक अधर्म और विकृती मे फसे हुवे है और अग्यानवश खुद को ग्यानी साधु संत कहते है पर भाईयों जाती वर्ण अस्पृष्यता भेदभाव ऊचनीच विषमाता छुवाछुत कामुक देवी देवता गाय बैल घोडे की बली लेने वाले देवता और सोंमरस पिने वाले लोग और उनका विकृत अधर्म का पालन कर कैसे निर्वांण की अवस्था और चेतन राम के दर्शन कर सकते हो ! धर्मात्मा कबीर इस के लिये सर्वांग सुन्दर सत्य शिव धर्म मुलभारतिय हिन्दूधर्म जो शिल सदाचार समता भाईचारा अहिंसा का मार्ग है उसका पालन करने की सिख यहाँ देते है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Sunday, 4 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 3 : 5

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 3 : 5

कहरा : 3 : 5

मुख के दांत गये कहा भौ बौरे , भीतर दांत लोहे के हो ! 

शब्द अर्थ :

मुख = मुह ! दांत = मुह के खाने के दांत ! गये = गीरे ! कहा = किधर ! भौ = भाई ! बौरे = नादान , मूर्ख ! भीतर = मन की वासना ! लोहे = कठीण , दूर्लभ , मोह माया ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे बताते है की मानव प्राणी वक्त के साथ बूढा होता है , शरीर कमजोर और बीमार होता जाता है कितने ही अवयव अपनी कार्य क्षमता खो देते है आँख को कम दिखाई देता है दात गीर जाते है पर आलम ये है की उसके मन की लालसा लालच मोह माया कभी जब कम नही होती , नियंत्रित नही होती तो समझे की मानव अब भी मोह माया के चंगुल मे फसा हुवा है और जन्म मृत्यू , दुख के भव चक्र मे फसा हुवा है ! अब भी विषय वासना धन संपत्ती बड़प्पन अहंकार पद प्रतिष्टा के मोह मे फसा हुवा है !  

कबीर साहेब इस मन के विकार पर मार पर नियंत्रण रखने की बात करते हुवे बताते है की भाईयों मानव जीवन दूर्लभ है इसी जीवन सदधर्म का ग्यान हो सकता है अन्य योनी के जीवन मे नही इसलिये शिल सदाचार समता बंधुत्व अहिंसा का मुलभारतिय हिन्दूधर्म का पालन कर जीवन सार्थक बनाये ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Saturday, 3 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 3 : 4

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 3 : 4

कहरा : 3 : 4

तन के वृद्ध कहा भौ बौरे , मनुवा अजहूँ बारो हो ! 

शब्द अर्थ : 

तन = शरीर ! वृद्ध = बूढा ! बौरे = मूर्ख ! मनुवा = मानव , मनुष्य प्राणी ! अजहूँ = अभी भी ! बारो = बच्चा , नादान ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे कहते है मानव जन्म दूर्लभ है अनेक योनी मे जन्म लेने के बाद कर्म धर्म संजोग से यह दूर्लभ मानव जन्म और जीवन मिलता है ! कुछ तो जन्म के समय ही मर जाते , कुछ अल्पायू होते है कुछ जो पुरा और लंबा जीवन ज़िते है बूढे होते है वे निच्छित ही भाग्यशाली है पर इस का मतलब ये नही होता है की उम्र से बूढे हुवे तो ग्यानी हुवे कितने ही लोग अब भी बूढे तो होते है पर बच्चे और नादान ही रहाते है और बच्चौ जैसे ही इच्छा तृष्णा मोह माया के पिछे भागते रहते है ! ये नादानी है , बचपना है अगर लंबी उम्र जीने के बाद मोह माया से मुक्त नही हो पाये तो क्या ग्यान प्राप्त हुवा ? 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Friday, 2 May 2025

Pavitra Bijak: Pragya Bodh : Kahara : 3 : 3

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 3 : 3

कहरा : 3 : 3

ऊपर ऊजर कहा भौ बौरे , भीतर अजहूँ कारो हो ! 

शब्द अर्थ : 

ऊपर = तन , बाहरी ! ऊजर = सुन्दर , ऊम्दा , अच्छा ! भौ = होना , दिखना ! बौरे = मूर्ख मानव ! भीतर = मन में , मन से ! अजहूँ = अभी भी , अब तक ! कारो = काले , मैले , ठग , बुरा ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे उन लोगोंको कटाक्ष करते है जो अधार्मिक , अंधविश्वासी , बुरे और मन के मैले है जो उपर उपर से तो बडे साफ सूतरे , सुन्दर नजर आते है जो चन्दन तिलक लगाते है पीतांबर पहनते है चोटी जनेऊ रखते है खुद को ग्यानी पंडित ब्राह्मण कहते है पर मन के काले है ! वेद और भेद को मानते है मनुस्मृती को मानते है जाती वाद , वर्णवाद छुवाछुत अस्पृष्यता भेदभाव विषमता को मानते है ! मानव गुलामी और शोषण का समर्थन करते है , अधर्म और विकृती के समर्थक है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण ,,अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी