पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 5 : 5
कहरा : 5 : 5
ई संसार असार को धन्दा , अंतकाल कोइ नाहीं हो !
शब्द अर्थ :
ई = ये ! संसार = शृष्टी , जगत , विश्व ! असार = सारांश मे कुछ नही ! को = है ! धन्दा = काम ! अंतकाल = अंतता ! कोइ = रिस्तेदार आदी !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे इस संसार का मर्म बताते हुवे कहते है निर्गुण निराकार अविनाशी अमर अजर तत्व चेतन राम ने इस शृष्टी का निर्मांण किया वह सब मे है कण कण मे है और हम सब दृष्य अदृष्य उसकी निर्मिती उसी मे है पर अलीप्त नही , वो अलिप्त भाव से हम मे कार्यरत है और हम कार्य कारण भाव नियाम उसके परिणाम और मै पन , अहंकार माया मोह इच्छा तृष्णा लासच आदी से बंधे है इस से मुक्ती का मार्ग धर्म अर्थात शिल सदाचार निगर्वी आचरण समता भाईचार का मार्ग ही है अन्य कोई नही और यह बोध जगत मे केवल मनुष्य जन्म मे ही हो सकता है अन्य प्राणी पक्षी आदी जन्म मे नही इस लिये मानव जन्म श्रेष्ठ है पर हम फिर यहाँ अधर्म और विकृती के आचरण के कारण इस अद्भूत मानव जन्म को विकार ग्रस्त जीवन के कारण खो देते है और अंतता मै मेरा की चक्कर मे असार को इकठहा करते है और सार को छोड देते है और बार बार अनेक प्रकार के जन्म लेकर जन्म मृत्यू के भव चक्र मे दुख भोगाते रहते है !
कबीर साहेब उनकी वाणी पवित्र बीजक मे मुक्ती के मार्ग का धर्म ग्यान देते है , यही प्रग्या बोध मुलभारतिय हिन्दू धर्म है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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