Tuesday, 27 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 6 : 5

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : कहरा  : 6 : 5

कहरा  : 6 : 5

दर्ब  हीन  जैसे पुरूषारथ , मन  ही  माँहि  तबाई  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

दर्ब  = अहंकार  ! हीन  = रहित  ! पुरूषारथ  = करनी  , पुरूषार्थ  !  मन  = अंतकरण  ! तबाई  = बर्बादी , उथलपूथल  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  कहरा  के  इस  पद  मे पुरूषार्थ  के  बारेमे  बात  करते  हुवे  बताते  है  पुरूषार्थ  वही  उत्तम  है  जो  अहंकार  रहित  है  क्यू  की  अहंकार  मन  को  कालुशित  करता  है  और  अंतकरण मे  उथलपूथल  निर्मांण  कर  अशांती  को  जन्म  देकर  सुख  को  दुख  मे  बदल  देता  है  ! 

अहंकार  ने  बडे  बडे  लोगोंको  पद  भ्रस्ट  कर  दिया  ज़िसके  उदाहरण  रावण  कंस  दूर्योधन  है  !  अहंकार  ने  इनकी  क्या  दूर्गती  की  है  सब  जानते है  ! 

धर्मविक्रमादित्य   कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

No comments:

Post a Comment