कहरा : 3 : 5
मुख के दांत गये कहा भौ बौरे , भीतर दांत लोहे के हो !
शब्द अर्थ :
मुख = मुह ! दांत = मुह के खाने के दांत ! गये = गीरे ! कहा = किधर ! भौ = भाई ! बौरे = नादान , मूर्ख ! भीतर = मन की वासना ! लोहे = कठीण , दूर्लभ , मोह माया !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे बताते है की मानव प्राणी वक्त के साथ बूढा होता है , शरीर कमजोर और बीमार होता जाता है कितने ही अवयव अपनी कार्य क्षमता खो देते है आँख को कम दिखाई देता है दात गीर जाते है पर आलम ये है की उसके मन की लालसा लालच मोह माया कभी जब कम नही होती , नियंत्रित नही होती तो समझे की मानव अब भी मोह माया के चंगुल मे फसा हुवा है और जन्म मृत्यू , दुख के भव चक्र मे फसा हुवा है ! अब भी विषय वासना धन संपत्ती बड़प्पन अहंकार पद प्रतिष्टा के मोह मे फसा हुवा है !
कबीर साहेब इस मन के विकार पर मार पर नियंत्रण रखने की बात करते हुवे बताते है की भाईयों मानव जीवन दूर्लभ है इसी जीवन सदधर्म का ग्यान हो सकता है अन्य योनी के जीवन मे नही इसलिये शिल सदाचार समता बंधुत्व अहिंसा का मुलभारतिय हिन्दूधर्म का पालन कर जीवन सार्थक बनाये !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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