Monday, 26 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 6 : 4

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 6 : 4

कहरा : 6 : 4

स्वादे बोद्र भरे धौं कैसे , औसे प्यास न जाई हो ! 

शब्द अर्थ : 

स्वादे = स्वाद ! बोद्र = उदर , पेट ! भरे धौं = पेट की अग्नी ! औसे = रात के बाद सबेरे की पडने वाली बुन्दे ! प्यास = पानी की जरूरत ! न जाई = नही जाती ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे बताते है की पेट की भूक केवल अन्न के सुवास स्वाद से नही भरती ऊचित मात्रा मे अन्न खाने से ही पेट भरता है दुर रखे स्वादिस्ट अन्न से भूक नही मिटती वैसे ही सबेरे की पडने वाली ओंस से मानव की प्यास नही बुझती उसे ऊचित मात्रा मे पानी खुद पिना होता है वैसे ही धर्म की बात है धर्म का खुद पालन कर ही उसका सुख उसका पुन्य अर्जित किया जाता है धर्म धर्म कहने से कुछ नही होता है ! 

जो धर्म ही नही जो संस्कृती ही नही एसे अधर्म विकृती से भरे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्म का पालन करने से कुछ नही होगा ! अपना समतावादी मुलभारतिय हिन्दूधर्म चाहे ज़ितना अच्छा हो दुर रखोगे तो कैसा आपका कल्याण होगा ? बुरे को दुर करो अछे को अपनावो तो सुख मिले ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम  
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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