पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 6 : 7
कहरा : 6 : 7
कहहिं कबीर यह औसर बीते , रतन न मिले बहोरी हो !
शब्द अर्थ :
कहहिं कबीर = स्वयं कबीर कहते है ! यह औसार = यह जन्म , ये समय , क्षण ! बीते = निकल गया ! रतन = अनमोल मोक्ष , निर्वांण , राम ! न मिले = नही मिलेगा ! बहोरी = दूबारा !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे कहते है भाईयों यह जीवन अनमोल है अद्भूत है क्यू की ये मानव जीवन सभी योनी मे श्रेष्ठ है केवल मानव जन्म मे ही प्रग्या बोध हो सकता है शिल सादाचार का धर्म की परख इसी जन्म मे होती है इस लिये इस जीवन व्यर्थ ना जाने दे , इस जीवन मे मृत्यू कब कैसे कहा आये कुछ भरोसा नही इस लिये हर समय सावधान रहो और हर पल हर क्षण परमात्मा चेतन राम की प्राप्ती मे लग जावो ! ये जन्म चुके और बेकार गया तो जन्म मृत्य के भव चक्र से बच नही सकोगे और फिर यह मानव जीवन कब मिले कोई भरोसा नही !
धर्मविक्रमादित्य कबिरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी
No comments:
Post a Comment