Sunday, 25 May 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 6 : 3

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 6 : 3

कहरा : 6 : 3

जैसे मदपी गाँठि अर्थ दै , घरहु कि अकिल गमाई हो ! 

शब्द अर्थ : 

जैसे = जीस प्रकार ! मदपी = मद्द , दारू पीने वाला , नशेडी ! गाँठि = निज , अपने पास की ! अर्थ = पैसा , संपत्ती ! घरहु = घर , कुटुम्ब ! अकिल = सुख शांती ! गमाई = गमाना , निकल जाना ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे नशेडी गंजेडी , दारू बाज लोगोंकी हालात की उपमा अधर्म विकृत विदेशी वैदिक ब्राह्मण धर्म से करते हुवे खुद की संपत्ती ,धन दौलत सुख शांती घर कुटुम्ब की ईबहरत , इज्जत सब कुछ बेकर की वस्तु दारू पर खर्च करता है वैसे ही मूर्ख लोग विदेशी वैदिक ब्राह्मण धर्म के वर्ण जातिवाद ऊचनीच भेदभाव छुवाछुत अस्पृष्यता होम हवन गाय बैल की बली आदी का समर्थन करने वाला सोमरसी दारुबाज अनैतिक विकृत अधर्म ब्राह्मण धर्म की नर्तकी मेनका रंभा ऊर्वशी जैसी देवदासी के भोग मे पुंजी जीवन और घर का सुख सब लूटा दे रहे है ! 

कबीर साहेब दारूबाज लोग और एसे धर्म से दुर रहने की बात करते है !

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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