कहरा : 5 : 6
उपजत बिनसत बार न लागे , ज्यों बादर की छाँही हो !
शब्द अर्थ :
उपजत बिनसत = जन्म मृत्यू ! बार = समय ! न लागे = नही लगता ! ज्यों = जैसे ! बादर = बादल ! छाँही = छाया !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे जन्म और मृत्यू को समय नही लगता वो परमात्मा निराकार निर्गुण अजर अमर तत्व नित नव और क्षण क्षण नव निर्मिती और विलुप्त होता रहता है इस लिये जीवन को क्षणिक है जैसे बादल आकाश मे आता है और छाया धरती पर आती है और जैसे ही बादल आगे बढकर निकल जाता है छाया भी निकल जाती है इस लिये मानव इस धरती पर अपना जीवन क्षणिक है ये सत्य जानकर अपना जीवन मुलभारतिय हिन्दूधर्म का एकमात्र ग्रंथ पवित्र कबीर वाणी पवित्र बीजक का सद्धर्म शिल सदाचार समता भाईचारा धर्म पालन कर जीवन का अंत होने के पहले उसे सार्थक बनाये !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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