Tuesday, 31 December 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 107 : Khasam Binu Teli Ko Bail !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : १०७ : ख़सम बिनु तेली को बैल भयो ! 

#शब्द : १०७

खसम बिनु तेली को बैल भयो : १
बैठत नाहिं साधु की संगत, नाधे  जन्म गयो : २
बहि बहि मरहु पचहु निज स्वारथ, यम  को दण्ड सहयों : ३
धन दारा सुत राज काज हित, माथे भार ग़ह्यो : ४
खसमहि छाँडि विषय संग राते, पाप के बीज बायो : ५
झूठी मुक्ति नर आश जीवन की, उन्ह प्रेत को झुठ खयो : ६
लख चौरासी जीव जन्तु में, सायर जात बह्यो : ७
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, उन श्वान  को पूँछ ग़ह्यो : ८

#शब्द_अर्थ : 

खसम = स्वामी, चेतन राम !  नाधे = नाद करना , पीछे पडना !  पचहु =  पहुंचना , हासिल करना ! यम = मलिन, दुखदाई !  राते = आसक्त , रहना, रमण करना ! प्रेत को जूठ = पुरानी वस्तुएं , जूठन !  सायर = समुद्र , सायर प्राणी ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते भाईयो खुद को पहचानो , तुम स्वयं चेतन राम हो , कोइ कोल्हू के बैल नहीं ! क्या काम करना है क्या नही करना है तुम स्वयं निर्णय कर सकते हो !  मूलभारतीय हिन्दूधर्म के साधु , संत महात्मा गुरु आचार्य कि संगत में जावो उनको सुनो वो तुम्हे सच्चा धर्म ज्ञान देंगे !  पोंगा पंडित वैदिक ब्राह्मण तुम्हे गलत धर्म बताते है उसके मार्ग पर चलोगे तो तुम्हारा जीवन नर्क हो जायेगा ! 

माया मोह इच्छा अधार्मिक वृति लालच  छोड़ो इनसे मिले सुख धन संपत्ति अंत में दुखदाई ही होती है बार बार पाप करने की बुरी आदत देती है जिस कारण भव सागर में बार बार जन्म मृत्यु के फेरे में दुख भोगना पड़ता है ! 

जिन वस्तु चीज़ों की तुम आसक्ति रखते हो वो सब जूठन है , पहले भी कितने ही लोगों ने उसका  उपभोग किया है ! जूठन के पीछे क्या लगना ? आवो अमर अजर चेतन राम तत्व को प्राप्त करो ! यह अदभुत है !  अनमोल है वो मोक्ष , निर्वाण , राम पद आपको शील सदाचार सत्य सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाला मूलभारतीय हिन्दूधर्म ही दिला सकता है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ, 
#कल्याण, #अखंडहिंदुस्थान, #शिवसृष्टि

Reddle In Ambedkar Thoughts !

#आंबेडकर_विचार_में_कुछ_पहेलियां ! 

डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर २० वी शताब्दी के विश्व के महान विद्वान माने जाते है !

१४ अप्रैल, १८९१ को हिंदुस्तान में विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के चतुर्वर्ण और जाती वेवस्था , उचनिच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता के अधर्म में उनका जन्म अस्पृश्य समाज में हुआ ! 

डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने खूब अध्ययन किया और अपने समाज की गुलामी अस्पृश्यता की जड़ विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के जाती वेवस्था में देखा जाती की को वर्ण की बड़ी वेवस्था का कारण माना और एक उदर मतावलंबी के होते विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के ब्राह्मण को स्थानांतरित पर भारतीय माना ! वैदिक ब्राह्मणधर्म की उपज में तीन वर्ण , ब्रह्म अलग और ब्राह्मण अलग मान कर शुद्र वर्ण और अस्पृश्य की निर्मिती बाद की मानते हुवे उन्होंने कभी अस्पृश्य को चन्द वंशी आर्य मान कर दोनों सूर्य वंशी और चंद्र वंशी क्षत्रिय को विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का हिस्सा माना था जिस कारण कभी उन्होंने जनेऊ संस्कार भी अछूतोकी कराने की बात की और जनेऊ पहनने , नाम बदलने जैसे उपाय से छुआछूत, जाती व्यवस्था की तीव्रता कम करने की कोशिश की ! 

यह उनके शुरुआती विचार थे जिसका त्याग कर बाबासाहेब आंबेडकर आगे बढ़े और कोई भी मानव समाज शुद्ध रक्त का नहीं , ब्राह्मण का रक्त भी शुद्ध नहीं इस लिये वर्ण और जाती व्यवस्था अस्पृश्यता विषमता छुवाछूत इत्यादि निरर्थक है ऐसा उनका मत हुआ ! पर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण अपने अहंकारी मत ब्राह्मण श्रेष्ठ , जन्म से ब्राह्मण, द्विज से सवर्ण और जनेऊ , हवान के ज्ञाता के सर्व श्रेष्ठ आर्य इस विचार पर डटे रहे ! 

कभी रोटी बेटी संबंध को बढ़ावा, शिक्षा को बढ़ावा आदि मार्ग से जाती वर्ण व्यवस्था समाप्त होगी यह आशावाद करते रहे पर मूल समस्या कहा से आई , ये उपज भारत की है या भारत के बाहर की इसकी समीक्षा में उनके विचार में कमी रह गई ! ये एक कूट कारण है समस्या है जीस पर आंबेडकर खामोश देखे जाते है शायद इस का कारण उनका विश्व मानववाद का दृष्टिकोण रहा हो ! पर इस अति उदार मानवतावाद से विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म की वर्णवादी, जातिवादी, उचनिच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता छुवाछूत की समस्या हल होना बहुत कठिन दिखाई देता है ! 

बाबासाहेब आंबेडकर ने उदार और शांति प्रिय बुद्ध धर्म में धर्म परिवर्तन से उनके समाज में जाती वर्ण व्यवस्था से छुटकारा देखा ! जाति वर्ण गंदगी विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पुजारी ब्राह्मण समाज ने न केवल बुद्ध धर्म में घुसाया खुद बुद्ध का वर्ण करण किया ! चातुर वर्ण में बुद्ध को क्षत्रिय वर्ण का बना दिया और दस अवतार के एक अवतार में डाल कर वर्ण और जाती व्यवस्था को बरकरार रखा ! जैन धर्म सिख धर्म और तो और मुस्लिम और ख्रिस्ती धर्म विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के कुटिल चाल से नहीं बच सके !

वर्ण और जाती व्यवस्था भारत की देन नहीं ! किसी भारतीय धर्म की निर्मिती नहीं तो वो विदेशी पारसी धर्म, यहूदी धर्म और विदेशी ब्राह्मण धर्म की रक्त शुद्धि विचार की निर्मिती है जिसका केंद्र यूरेशिया का ब्राह्मण स्व गृह यानी स्वर्ग रहा है ! ये स्वर्ग निवासी यूरेशियन वैदिक धर्मी टोलिया यूरोप, मिस्र , पर्शिया , ईरान, अफगानिस्तान आदी में पहले गई और उनमें से कुछ हिंदुस्थान में सिंधु हिन्दू संस्कृति काल में हमारी उन्नत संस्कृति , नागरी व्यवस्था , मूलभारतीय हिन्दूधर्म तहस नहस करते घुसे इस तथ्य को बाबा साहेब ने जोर देकर नहीं कहा ! बड़ी दबी आवाज में उन्होंने ये बात स्वीकार की पर कभी उसका प्रचार प्रसार नहीं किया ! 

बाबासाहेब आंबेडकर ने विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म को यहूदी, पारसी धर्म जिसे अलग धर्म नहीं कहा और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म ने जो मूलभारतीय हिन्दूधर्म पर जबरदस्ती मिल्कियत जमा रखी थी वो धर्म अलग है और मूलभारतीय हिन्दूधर्म अलग है ये धर्मात्मा कबीर की बात वो खुद गाँधी जी की तरह कबीर पंथी होने बाद भी कबीर साहेब की मनीषा नहीं पहचान सके ! 

आंबेडकर विचार में यह एक कूट प्रश्न बनकर रह गया !

इस कूट प्रश्न का हल नेटिवीस्त डी डी राऊत ने १९७० में स्थापित नेटिव रूल मूव्हमेन्ट का विचार नेटिविजम और नेटिव हिन्दुत्व के रूप में दिया ! 

विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और विदेशी ब्राह्मण हिंदुस्तान, हिन्दू, हिन्दू धर्म के दुश्मन है, देश के दुश्मन है इस लिये धार्मिक और राजनैतिक दोनों लड़ाई एकसाथ लड़े बैगर इस देश से जाती वर्ण अस्पृश्यता विषमता छुवाछूत इत्यादि विकृति, असभ्यता, अधर्म का अंत संभव नहीं ये विचार नेटिवीस्ट डी डी राउत ने दिया ! मूलभारतीय विचार मंच, नेटिव पीपल्स पार्टी, मूलभारतीय हिन्दूधर्म विश्वपीठ का निर्माण कर धर्मात्मा कबीर साहेब की पवित्र वाणी बीजक को मूलभारतीय हिन्दूधर्म का एकमात्र धर्मग्रंथ और डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर लिखित हिन्दू कोड बिल को मूलभारतीय हिन्दूधर्म के कायदा बताकर दो प्रवाह विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और स्वदेशी मूलभारतीय हिन्दूधर्म को अलग अलग धर्म बताया ! जाति वर्ण अस्पृश्यता विषमता छुवाछूत इत्यादि विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म में है मूलभारतीय हिन्दूधर्म में नहीं ! 

#नेटिविस्ट_डीडी_राऊत

Monday, 30 December 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 106 : Bhanwar Ude Bag Baithe !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : १०६ : भँवर उड़े बग बैठे आई ! 

#शब्द : १०६

भँवर उड़े बग बैठे आई, रैन गई दिवसों चलि जाई : १
हल हल काँपे बाला जीव, ना जानो का करिहैं पीव : २
काँचे बासन टिके न पानी, उड़ि गये हंस काया कुम्हिलानी : ३
काग उड़ावत भुजा पिरानी, कबीर यह कथा सिरानी : ४

#शब्द_अर्थ : 

भँवर =  काले बाल ! बग = सफेद बाल ! रैन = रात्र ! दिवसों = दिवस , समय  !  बाला = भोला , बचपन !  पीव = दैव ! बासन = शरीर, बर्तन ! हंस = जीव , चेतन राम  ! कुम्हिलानी = मुरझाना !  काग उड़ावत = व्यर्थ का काम ! भुजा पिरानी = कमजोर , बुड्ढा ! यह कथा = जीवन लीला ! सिरानी = समाप्त होना ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो मानव जीवन दुर्लभ है कितने ही जन्मों में भटकते हुवे बहुत कठिनाई से मानव जन्म मिलता है ! सृष्टि के जन्म मृत्यु चक्र में मानव जीवन उत्तम और श्रेष्ठ जीवन है क्यू की इसी मानव जीवन में प्रज्ञा बोध हो सकता है , मानव धर्म और शील सदाचार का जीवन जी कर परमात्मा परमपिता चेतन राम तत्व को समझ कर भव सागर से मुक्त होकर मोक्ष निर्वाण पद प्राप्त कर सकता है ! 

कबीर साहेब कहते है भाईयो सनातन पुरातन आदिवासी आद्य मूलभारतीय हिन्दू धर्म का आचरण ही वो मार्ग है जिसके पालन करने से चेतन राम के दर्शन होंगे और मानव जीवन सार्थक होगा ! 

मानव जीवन एक समय बद्ध जीवन है जन्म है बालपन , तरुण , बुढ़ापा , शरीर और मन के रोग से गुजरकर मानव के दिन रात यू ही देखते देखते गुजर जाते है और इस समय का सदपयोग ना कर अगर हम मोह माया इच्छा अधार्मिक वृति तृष्णा आदि के जंजाल में फंस जाते है तो मृत्यु समीप आते ही हम अपने कर्मो का लेखा जोखा खुद याद करते है और पाप , अधर्म,  गलत कार्य के दुष्परिणाम के भविष्य की संभावना देख कर थर थर कांपने लगते है , दुखी होते है ! यह न हो इस लिये भाईयो आज ही सतर्क हो जावो ! धर्म अधर्म को समझो क्यू की धर्म की जरूरत केवल मानव जीवन में होती है अन्य जीव में नहीं ! प्रज्ञा बोध केवल मानव जीवन में प्राप्त किया जा सकता अन्य जीवन में नहीं !  इसलिए व्यर्थ और सार्थक में भेद करो , धर्म और अधर्म में भेद करो , संस्कृति और विकृति में भेद करो ! मूलभारतीय हिन्दूधर्म प्रज्ञा बोध है , धर्म है , संस्कृति है , विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म विकृति , अधर्म है  क्यू की वहां शील सदाचार भाईचारा समता मानवता नहीं है ! 

#धर्मवीक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
#कल्याण, #अखंडहिंदुस्थान, #शिवसृष्टि