#आंबेडकर_विचार_में_कुछ_पहेलियां !
डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर २० वी शताब्दी के विश्व के महान विद्वान माने जाते है !
१४ अप्रैल, १८९१ को हिंदुस्तान में विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के चतुर्वर्ण और जाती वेवस्था , उचनिच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता के अधर्म में उनका जन्म अस्पृश्य समाज में हुआ !
डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने खूब अध्ययन किया और अपने समाज की गुलामी अस्पृश्यता की जड़ विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के जाती वेवस्था में देखा जाती की को वर्ण की बड़ी वेवस्था का कारण माना और एक उदर मतावलंबी के होते विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के ब्राह्मण को स्थानांतरित पर भारतीय माना ! वैदिक ब्राह्मणधर्म की उपज में तीन वर्ण , ब्रह्म अलग और ब्राह्मण अलग मान कर शुद्र वर्ण और अस्पृश्य की निर्मिती बाद की मानते हुवे उन्होंने कभी अस्पृश्य को चन्द वंशी आर्य मान कर दोनों सूर्य वंशी और चंद्र वंशी क्षत्रिय को विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का हिस्सा माना था जिस कारण कभी उन्होंने जनेऊ संस्कार भी अछूतोकी कराने की बात की और जनेऊ पहनने , नाम बदलने जैसे उपाय से छुआछूत, जाती व्यवस्था की तीव्रता कम करने की कोशिश की !
यह उनके शुरुआती विचार थे जिसका त्याग कर बाबासाहेब आंबेडकर आगे बढ़े और कोई भी मानव समाज शुद्ध रक्त का नहीं , ब्राह्मण का रक्त भी शुद्ध नहीं इस लिये वर्ण और जाती व्यवस्था अस्पृश्यता विषमता छुवाछूत इत्यादि निरर्थक है ऐसा उनका मत हुआ ! पर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण अपने अहंकारी मत ब्राह्मण श्रेष्ठ , जन्म से ब्राह्मण, द्विज से सवर्ण और जनेऊ , हवान के ज्ञाता के सर्व श्रेष्ठ आर्य इस विचार पर डटे रहे !
कभी रोटी बेटी संबंध को बढ़ावा, शिक्षा को बढ़ावा आदि मार्ग से जाती वर्ण व्यवस्था समाप्त होगी यह आशावाद करते रहे पर मूल समस्या कहा से आई , ये उपज भारत की है या भारत के बाहर की इसकी समीक्षा में उनके विचार में कमी रह गई ! ये एक कूट कारण है समस्या है जीस पर आंबेडकर खामोश देखे जाते है शायद इस का कारण उनका विश्व मानववाद का दृष्टिकोण रहा हो ! पर इस अति उदार मानवतावाद से विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म की वर्णवादी, जातिवादी, उचनिच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता छुवाछूत की समस्या हल होना बहुत कठिन दिखाई देता है !
बाबासाहेब आंबेडकर ने उदार और शांति प्रिय बुद्ध धर्म में धर्म परिवर्तन से उनके समाज में जाती वर्ण व्यवस्था से छुटकारा देखा ! जाति वर्ण गंदगी विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पुजारी ब्राह्मण समाज ने न केवल बुद्ध धर्म में घुसाया खुद बुद्ध का वर्ण करण किया ! चातुर वर्ण में बुद्ध को क्षत्रिय वर्ण का बना दिया और दस अवतार के एक अवतार में डाल कर वर्ण और जाती व्यवस्था को बरकरार रखा ! जैन धर्म सिख धर्म और तो और मुस्लिम और ख्रिस्ती धर्म विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के कुटिल चाल से नहीं बच सके !
वर्ण और जाती व्यवस्था भारत की देन नहीं ! किसी भारतीय धर्म की निर्मिती नहीं तो वो विदेशी पारसी धर्म, यहूदी धर्म और विदेशी ब्राह्मण धर्म की रक्त शुद्धि विचार की निर्मिती है जिसका केंद्र यूरेशिया का ब्राह्मण स्व गृह यानी स्वर्ग रहा है ! ये स्वर्ग निवासी यूरेशियन वैदिक धर्मी टोलिया यूरोप, मिस्र , पर्शिया , ईरान, अफगानिस्तान आदी में पहले गई और उनमें से कुछ हिंदुस्थान में सिंधु हिन्दू संस्कृति काल में हमारी उन्नत संस्कृति , नागरी व्यवस्था , मूलभारतीय हिन्दूधर्म तहस नहस करते घुसे इस तथ्य को बाबा साहेब ने जोर देकर नहीं कहा ! बड़ी दबी आवाज में उन्होंने ये बात स्वीकार की पर कभी उसका प्रचार प्रसार नहीं किया !
बाबासाहेब आंबेडकर ने विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म को यहूदी, पारसी धर्म जिसे अलग धर्म नहीं कहा और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म ने जो मूलभारतीय हिन्दूधर्म पर जबरदस्ती मिल्कियत जमा रखी थी वो धर्म अलग है और मूलभारतीय हिन्दूधर्म अलग है ये धर्मात्मा कबीर की बात वो खुद गाँधी जी की तरह कबीर पंथी होने बाद भी कबीर साहेब की मनीषा नहीं पहचान सके !
आंबेडकर विचार में यह एक कूट प्रश्न बनकर रह गया !
इस कूट प्रश्न का हल नेटिवीस्त डी डी राऊत ने १९७० में स्थापित नेटिव रूल मूव्हमेन्ट का विचार नेटिविजम और नेटिव हिन्दुत्व के रूप में दिया !
विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और विदेशी ब्राह्मण हिंदुस्तान, हिन्दू, हिन्दू धर्म के दुश्मन है, देश के दुश्मन है इस लिये धार्मिक और राजनैतिक दोनों लड़ाई एकसाथ लड़े बैगर इस देश से जाती वर्ण अस्पृश्यता विषमता छुवाछूत इत्यादि विकृति, असभ्यता, अधर्म का अंत संभव नहीं ये विचार नेटिवीस्ट डी डी राउत ने दिया ! मूलभारतीय विचार मंच, नेटिव पीपल्स पार्टी, मूलभारतीय हिन्दूधर्म विश्वपीठ का निर्माण कर धर्मात्मा कबीर साहेब की पवित्र वाणी बीजक को मूलभारतीय हिन्दूधर्म का एकमात्र धर्मग्रंथ और डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर लिखित हिन्दू कोड बिल को मूलभारतीय हिन्दूधर्म के कायदा बताकर दो प्रवाह विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और स्वदेशी मूलभारतीय हिन्दूधर्म को अलग अलग धर्म बताया ! जाति वर्ण अस्पृश्यता विषमता छुवाछूत इत्यादि विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म में है मूलभारतीय हिन्दूधर्म में नहीं !