#शब्द : ७९
कहहु हो अम्मर कासों लागा, चेतनहारा चेत सुभागा : १
अम्मर मध्ये दीसे तारा, एक चेता एक चेतनहारा : २
जो खोजों सो उहवाँ नाहीं, सो तो आहि अमरपद माहीं : ३
कहहिं कबीर पद बूज़ै सोई, मुख वृद्यया जाके एकै होई : ४
#शब्द_अर्थ :
अम्मर = अविनाशी चेतन राम तत्व, आकाश ! लाना = आसक्त होना ! चेतनहारा = ज्ञानी , बोधि प्राप्त ! सुभागा = भाग्यवान ! अम्मर = आकाश ! तारा = सूर्य आदि तारे नक्षत्र ! उहवाँ = वहाँ , आकाश में श्रृष्टि में ! अमरपद = चेतन राम स्वरूप ! पद = निजरूप , दोहा !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो तुम खुद में अमर तत्व चेतन राम मौजूद है उसे आकाश , तारे नक्षत्र और अन्य जगह ढूंढना बेकार है ! वह निर्गुण निराकार अविनाशी परमतत्व परमात्मा चेतन राम जब तुम्हारे अंतकरण में है चराचर श्रृष्टि में है और तुम्हारी दृष्टि कही और है तो उसका बोध ज्ञान कैसे होगा ? तुम उसे रूप और आकार में ढूंढते हो , रंग गुण में ढूंढते हो जो क्षलनशिर है मर्त्य है ! रूप रंग बदलने वाली वस्तुएं प्राणी पक्षी नाशवान है और चेतन तत्व अमर तो कैसे अमर अजर तत्व राम को ढूंढ पावोगे ?
कबीर साहेब कहते है भाइयों अमर तत्व चेतन राम को वहां खोजों जहां वो रहता है ! वो सत्य शील सदाचार में रहता है ! जब तुम भी सत्य मार्गी , सत्य वक्ता , सत्य दर्शी बन जावोगे और तुम्हारे मुख में और आचरण में सत्य ही सत्य होगा , सत्य के शिवाय कुछ नहीं होगा तब न उस अविनाशी अमर अजर तत्व राम के दर्शन होंगे ! अमर राम तत्व को किसी विज्ञान की प्रयोग शाला में नहीं पाया जा सकता ना उसे पांच इंद्रिय और छठी इंद्री कल्पना से देखा जा सकता है वह इन सब से परे केवल ज्ञान स्वरूप चेतन तत्व है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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