Sunday, 8 December 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 86 : Kabira Tero Ghar Kandal Men !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ८६ : कबिरा तेरो घर कंदला में ! 

#शब्द :८६ 

कबिरा तेरो घर कंदला में, यह जगत रहत भुलाना : १
गुरु की कही करत नहिं कोई, अमहल महल दिवाना : २
सकल ब्रह्म मौ हंस कबीरा, काग़न चोंच पसारा : ३ 
मन्मथ कर्म धरे सब देही, नाद बिंद बिस्तारा : ४
सकल कबीरा बोले बानी, पानी में घर छाया : ५
अनन्त लूट होत घट भीतर, घट का मर्म न पाया : ६
कामिनी रूपी सकल कबीरा, मृगा चरिन्दा होई : ७
बड़ बड़ ज्ञानी मुनिवर थाके, पकरि सके नहिं कोई : ८
ब्रह्मा बरुण कुबेर पुरंदर, पीपा औ प्रहलादा : ९
हरनाखुश नख वोद्र बिदारा, तिन्ह को काल न राखा : १०
गोरख ऐसो  दत्त दिगम्बर, नामदेव जयदेव दासा : ११
तिनकी खबर कहत नहिं कोई, उन्ह कहाँ कियो है बासा : १२
चौपर खेल होत घट भीतर, जन्म का पासा डारा : १३
दम दम की कोई खबरि न जाने, कोई कै  न निरूवारा : १४
चारि दृग महि मंडल रच्यो है, रूम शाम बिच डिल्ली : १५
तेहि ऊपर कछु अजब तमाश्या, मारो है यम किल्ली : १६
सकल अवतार जाके महि मंडल, अनन्त खड़ा कर जोड़े : १७
अदबुद अगम औगाह रच्यो है, ई सब शोभा तेरे : १८
सकल कबीरा बोले बीरा, अजहूँ हो हुशियारा : १९
कहहिं कबीर गुरु सिकली दर्पण, हरदम करहिं पुकारा : २०

#शब्द_अर्थ : 

कबिरा = मनुष्य जीव ! घर = निवास ! कंदला = गुफा ! अमहल = बेघर ! महल = संसारी ! मन्मथ = काम , वासना ! नाद = शब्द ! बिंद = वीर्य !  सकल = सब !  घट = वृद्यय !  मृग चरिंदा = सुंदर , मोहक ! पुरंदर = इंद्र ! दत्त = दत्तात्रेय !  चौपर = पासे का खेल !  दम दम = क्षण क्षण ! चारि दृग = चार दिश्याएं ! महि मंडल = पृथ्वी और आकाश ! रुम = विदेशी , तुर्की ! शाम = थाई !  दिल्ली = भारत, हिंदुस्थान , वृदय !  यम = वासना ! किल्ली = अज्ञान !  अगम = अपार ! औगाह = अथांग !  बीरा = विजई !  सिकली = मांजना , तेज करना ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो हम सब जी के जनजाल में फंसे हुए लोग है !  इस जगत के मोह माया मे फंस  कर अपना वास्तविक घर और आत्मस्वरुप भूल गए हैं !  तब भी इस संसार में कुछ साधु संत गुरु है वह आत्मबोध का ज्ञान देते है पर हम उनको तरफ ध्यान नहीं देते उनकी बात नहीं सुनते !  

संसार में धर्म के नाम पर धन्दा चल रहा है  चाहे वो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म हो या तुर्की  मुस्लिम धर्म हो , दोनों मनगढ़ंत  ब्रह्म , अल्ला और उनके नबी अवतार आदि न जाने क्या क्या अधर्म को अज्ञान का धर्म संस्कृति बताकर लोगों भटका रहे है ! इनका धर्म प्रचार कव्वे जैसी काव काव है केवल कबीर सत्य ज्ञान बताते है ! 

भाइयों  दिखावे पर मत जावो , बात की  गंभीरता समझो यह मानव शरीर और जीवन अनमोल है ! इसका सदुपयोग करो !  बड़े बड़े लोग जो खुद को बड़े तपस्वी बताते थे मुनि थे नाम धारी , भक्ति मार्गी और  देवि देवता  चाहे वे ब्रह्मा , इंद्र , विष्णु दत्त गोरख  ही बड़े अपने आप को अमर कहते थे वे आज कहां हैं ? सब मर गए !  जो भी अहंकार में अंधे हुवे सब मर गए , कोई नहीं बचा चाहे वो गुफा में रहे , वन में रहे , बड़े मकान और महल में रहे संसारी और संन्यासी सब मर गए क्यों की उन्होंने जीव की उत्पत्ति का रहस्य ही नहीं जाना ! 

कबीर साहेब कहते है भाइयों अपना मूलभारतीय हिन्दूधर्म में इस विश्व की उत्पति , सृष्टि , धरती , मानव निर्माण की वजह सब कुछ समझाया गया है जो कबीर साहेब अपनी पवित्र वाणी बीजक में बताते है इसे समझो तो मानव जीवन सार्थक होगा अन्यथा जन्म मृत्यु के फेरे में भटकते रहोगे ! कबीर साहेब कहते है जीव की निर्मिती। नाद और बिंद से हुई है और एक निराकार निर्गुण अविनाशी तत्व चेतन राम ही सारे सृष्टि का निर्माता है जो आत्म स्वरूप को भूलता है और माया मोह अहंकार लालच तृष्णा इच्छा  में फसाता है अपना विवेक , आत्म बोध खो देता है और क्षणभंगुर बातो के पीछे पड़ा रहता है वही बारम्बार जन्म लेता है , दुख भोगता है नरता है फिर जन्म लेता है इस जन्म जरा मरण के भव सागर से बाहर निकलना है तो एक ही मार्ग है सत्य सनातन पुरातन मूलभारतीय हिन्दूधर्म का शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा का मार्ग ! यही बात कबीर साहेब कहते है वे उस मार्ग के बोध कर्ता है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
#कल्याण, #अखण्डहिंदुस्थान, #शिवश्रृष्टि

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