#शब्द : १०३
लोगो तुमहीं मति के भोरा : १
ज्यों पानी पानी मिली गयऊ, त्यों धुरि मिला कबीरा : २
जो मैथिल को साँचा ब्यास, तोहर मरण होय मगहर पास : ३
मगहर मरे मरै नहिं पावैं, अन्तैं मरै तो राम लजावै : ४
मगहर मरे सो गदहा होय, भल परतीत राम सो खोय : ५
क्या काशी क्या मगहर ऊसर, जो पै वृद्यया राम बसै मोरा : ६
जो काशी तन तज़ै कबीरा, तो रामहि कहु कौन निहोरा : ७
#शब्द_अर्थ :
भोरा = भोला , मूर्ख ! धुरि = धुर , पक्का ! मैथिल = मिथिला का निवासी ! ब्यास = व्यास , पंडित ! मगहर = गोरखपुर के पास एक ग्राम ! अंतैं = अलग, अंततः ! राम लजावै = खुद पर शर्म आना ! गदहा = गधा ! भल = बिलकुल ! ऊसर = विरान जमीन ! पै = यदि ! निहोरा = सहारा, एहसास !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो ये पृथ्वी हम सब की भूमि है और उसपर ये तीर्थ जगह वो पवित्र जगह , वो अपित्र जगह ऐसा कुछ नही , कही कुछ सुविधा है कही कुछ असुविधा है पर पवित्र अपवित्र ऐसा कुछ भी नहीं , हमारे लिये पूरी धरती मां है ! कोई स्थान जन्म मरण के लिये पवित्र अपवित्र नहीं !
हम काशी और मगहर दोनों को एक समान मानते है ! मिथिला के ब्राह्मणों ने पंडिताने यह भ्रम फैलाया है की काशी में जिसकी मौत होती है जिसका दाह संस्कार वहां किया जाता है ब्राह्मण पाण्डे के हाथों जिसका क्रियाकर्म पिण्ड दान होता है वह मृत्यु उपरांत स्वर्ग जाता है और वीरान अनुपजाऊ जमीन जैसे मगहर में जिस का देहांत होता है वह स्वर्ग नहीं जाता सीधा अगले जन्म में गदहा , भार ढोने वाला जानवर गधा बन जाता है !
धर्मात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण की इस भ्रामक धारणा कल्पना को ठुकराते हुवे कहते है भाइयों मरणोपरांत स्वर्ग नर्क ऐसा कुछ नहीं होता ! चाहे काशी में मरो या अन्य जगह जैसे पानी पानी सब जगह मिलकर एक हो जाता है वैसे ही कही भी दाह संस्कार करो मरा इंसान जल कर धुर बन जाता है , धुर अनन्त में विलीन हो जाता है ,राख बन जाता है !
कबीर साहेब कहते है मैं खुद इस अंध विश्वास को तोड़ने के लिये मेरे प्राण मगहर में ही त्यागूंगा , काशी में नहीं !
मेरा राम , चेतन तत्व राम मै कहा भी जावु मेरे साथ ही है ! मेरी कथन और करनी में कोई भेद नहीं ! खुद को शर्मिंदा होना पड़े ऐसा कोई काम मैं नहीं करता न ऐसा गलत धर्म मै लोगोंको बताता हूं ! मेरा धर्म विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म नहीं, मेरा धर्म विदेशी तुर्की मुस्लिमधर्म नहीं ! मेरा धर्म सनातन पुरातन आदिवासी मूलभारतीय हिन्दूधर्म है ! जो शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित है और अंध विश्वास को ठुकराता है जैसे ये अंध विश्वास की मगहर में मरने वाले गधा बनते है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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