#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : १०५ : ये भ्रम भूत सकल जग खाया !
#शब्द : १०५
ये भ्रम भूत सकल जग खाया, जिन जिन पूजा ते जहैंडाया : १
अण्ड न पिण्ड न प्राण न देही, कोटि कोटि जिव कौतुक देही : २
बकरी मुरगी किन्हेंउ छेवा, आगल जन्म उन्ह औसर लेवा : ३
कहहिं कबीर सुनो नर लोई, भुतवा के पुजले भुतवा होई : ४
#शब्द_अर्थ :
खाया : दुर्बल बनाना ! जहैंडाया = ठगा गया ! अण्ड = सूक्ष्म शरीर , बीज ! पिण्ड = स्थूल शरीर , देह ! प्राण = प्राण वायु , सांस ! देही = देह धारक जीव ! कोटि कोटि = करोड़ों करोड़ों ! कौतिक = कुतूहल ! छेवा = वध , हत्या ! औसर = मौका ! लोई = धर्मात्मा कबीर की धर्मपत्नी लोई !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते भाईयो सुनो , सन्तों सुनो, लोई तुम भी सुनो जगत में लोगोंने खास कर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण और विदेशी तुर्की मुस्लिमधर्म के मौला मौलवी आदि ने समाज में नाना प्रकार के डर , अंध विश्वास , भ्रम फैलाया है जिसमें भुत , प्रेत , ब्रह्म राक्षस और जगह उनके मनगढ़ंत पाथर के पुतले और मंदिर और मजार बना कर उन को खुश करने के लिये बकरी मुरगी हलाल , हत्या बलि देते है !
भाइयों बताओ बकरी मुरगी मारने के बाद उनका मांस , गोस्त कौन खाते है ? वो भुत प्रेत या वही मानव जिन्होंने इन बकरी मुर्गी को मारा ? मानव ही खाते है कोई भुत प्रेत मुर्गी बकरी खाने नहीं आता व्यू की सच्चाई ये है की भुत प्रेत होते ही नहीं , यह एक भ्रम है , अंध विश्वास है ! भुत प्रेत को जब कोई देह होता ही नहीं तो वो किस मुंह से बकरी मुर्गी खायेंगे ? पूछते है धर्मात्मा कबीर !
कबीर साहेब कहते हैं मुर्गी बकरी मारने वाले और प्रेत , भुत को पूजने वाले जैसे उनकी कल्पना है मन में डर है वैसे ही उनको दिखाई देगा और उन्हें सच लगने लगेगा इसको पागल पन कहते है तो निश्चित ऐसे लोग पागल हि होंगे ! और ऐसे मूर्ख बेशक भुत को डरते डरते मरेंगे और भुत होंगे ! बकरी मुर्गी भूत प्रेत को अर्पण करने वाले एक दिन आवश्य बकरी मुर्गी बन कर हलाल होंगे !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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