#शब्द : ९९
अब कहाँ चलेउ अकेले मीता, उठहु न करहु की चिन्ता : १
खीर खांड घृत पिण्ड सँवारा, सो तन लै बाहर कै डारा : २
जो शिर रचि रचि बाँधहु पागा, सो शिर रतन बिडारत कागा : ३
हाड़ जरे जस जंगल लकड़ी, केश जरें जस घास की पूली : ४
आवत संग न जात संगाती, काह भये दल बाँधल हाथी : ५
माया के रस लेइ न पाया, अन्तर यम बिलारि होई धाया : ६
कहहिं कबीर नर अजहु न जागा, यम का मुगदर मांझ शिर लागा : ७
#शब्द_अर्थ :
खांड = मीठा ! पिण्ड = शरीर ! बिडारत = फोड़ना ! पूली = गठरी ! यम = मौत !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो मोह माया अहंकार में फस कर मानव जीवन का असली मकसद मोक्ष निर्वाण भूल मत जावों ! मानव जन्म दुर्लभ है !
देखो जिस शरीर पर तुम इतना घमंड करते हो उसका अन्त में क्या हाल होता है ! जिस शरीर को तुमने जीभ के स्वाद के अधीन होकर मीठे मीठे पकवान, घी माखन और मांस मछली खा कर धृष्टपुष्ट किया और ऊंचे ऊंचे सिंहासन स्थान तख्त पर शानदार कपड़े पहने नाच गाना सुनते रहे , कितने ही हाथी घोड़े पालकी और नौकर चाकर इकट्ठा किये जमीन जुमला जायजाद , महल माड़ी बनाई वो सब पीछे छूट गये कोई साथ नहीं आया न संगी न साथी , न बीवी न बच्चे न मां बाप न भाई बहन न मित्र न अन्य काई रिश्तेदार अन्त में आप के साथ आये !
चेतन राम शरीर से अलग होते ही तुम्हारा यह नश्वर शरीर सब को अप्रिय और बोझ लगाने लगा ! तुम्हारे मृत शरीर को तुरंत घर के बाहर कर दिया , उसे कोई देखने वाला न हो तो कुत्ते कौवे फाड़ फाड़ कर खा लेते ! उस मृत शरीर को जलवो तो जंगल की लकड़ी की तरह जल जाता है और जिस कपाल के बाल पर शान की पगड़ी पहने फिरते थे वो बाल घास की गठरी जैसे जल जाती है और हाड़ मांस बस राख बनकर रह जाते है ! यही इस नश्वर शरीर की चेतन राम बिना कहानी है !
इस लिये कबीर साहेब कहते है भाइयों ये मानव जीवन , मानव जन्म को व्यर्थ न जाने दो मोह माया इच्छा अधार्मिक वृति तृष्णा, अहंकार आदि को पहचानो ये नश्वर शरीर के गुण है ! अमर अजर अविनाशी तत्व चेतन राम के गुण है निराकार निर्गुण ! कोई अहंकार नहीं न लालच न मोह माया , न तृष्णा न इच्छा !
कबीर साहेब कहते धर्म का पालन करो , मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करो, शील सदाचार भाईचारा समता मानवता वाला मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करो ! कर भला सो हो भला !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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