#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ८८ : सावज न होइ भाई सावज न होई !
#शब्द : ८८
सावज न होई भाई सावज न होई , वाकी मांसु भखे सब कोई : १
सावज एक सकल संसारा, अविगति वाकी बाता : २
पेट गारि जो देखिये रे भाई, आहि करेज न आंता : ३
ऐसी वाकी मांसू रे भाई, पल पल मांसु बिकाई : ४
हाड़ गोड़ ले घूर पवांरिनि, आगि धुवाँ नहिं खाई : ५
शिर सिंगी किछुवो नहिं वाके, पूंछ कहाँ वे पावै : ६
सब पण्डित मिलि धंधे परिया, कबिरा बनौरी गावै : ७
#शब्द_अर्थ :
सावज = शिकार ! अविगति = अज्ञात ! घूर = कचरा ! पवाँरिनि = फेकना ! आगि धुवां = ज्ञानग्नि ! धंधे = गोरख धंधा ! कबिरा = सामान्य लोग ! बनौरी = बनाए दोहे , गीत !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो सुनो क्या जिस जानवर का तुम मांस खाते हो उसमें कोई ऐसी कोई खास बात है कि तुम उसका मांस खाते ही सर्वज्ञानी श्रेष्ठ , दुख मुक्त अमर हो जावोगे ? विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण होम हवन के अग्नि में गाय घोड़े की बलि देते है और उसका मांस खाते है , मदिरा सोम पीते है , नाच गाना उन्मादी वैदिक बकबक करते है , उस से क्या होता है अग्नि में चढ़ाई बलि हव्य धुर बन कर उड़ जाती है ! किसी देवी देवता के पास नहीं पहुंचती है !
कबीर साहेब कहते है ब्राह्मण होम हवन , होम अग्नि की बड़ी प्रशंसा करते है बड़े गुण गाते है ताकि सामान्य लोगोंको इस गोरख धंधे में फ़साये रखे और ब्राह्मण होम हवन , देवी देवता के नाम दान दक्षिणा लेते रहे गौ मांस खाते रहे , सोम रस पीते रहे ये सब गोरख धंधे ब्राह्मणों के धंधे है !
बलि और जानवर का मांस ब्राह्मण धर्म, मुस्लिम धर्म को जायज है ये प्राणी हत्या है ! ये कोई धर्म नहीं , अधर्म है अधर्म से भला कौन ईश्वर भगवान खुश होता है ? कोई नहीं ! कबीर साहेब कहते है और धर्म भलेही प्राणी हत्या , मांस भक्षण , गाय घोड़े की बलि , होम हवन , जनेऊ, छुआछूत , विषमता , अस्पृश्यता उचनिच, भेदाभेद आदि अधार्मिक कृत्य का समर्थन करते है मै इनके खिलाफ बोलता हूँ , दोहे , गीत गाता हूं !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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