#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : १०६ : भँवर उड़े बग बैठे आई !
#शब्द : १०६
भँवर उड़े बग बैठे आई, रैन गई दिवसों चलि जाई : १
हल हल काँपे बाला जीव, ना जानो का करिहैं पीव : २
काँचे बासन टिके न पानी, उड़ि गये हंस काया कुम्हिलानी : ३
काग उड़ावत भुजा पिरानी, कबीर यह कथा सिरानी : ४
#शब्द_अर्थ :
भँवर = काले बाल ! बग = सफेद बाल ! रैन = रात्र ! दिवसों = दिवस , समय ! बाला = भोला , बचपन ! पीव = दैव ! बासन = शरीर, बर्तन ! हंस = जीव , चेतन राम ! कुम्हिलानी = मुरझाना ! काग उड़ावत = व्यर्थ का काम ! भुजा पिरानी = कमजोर , बुड्ढा ! यह कथा = जीवन लीला ! सिरानी = समाप्त होना !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो मानव जीवन दुर्लभ है कितने ही जन्मों में भटकते हुवे बहुत कठिनाई से मानव जन्म मिलता है ! सृष्टि के जन्म मृत्यु चक्र में मानव जीवन उत्तम और श्रेष्ठ जीवन है क्यू की इसी मानव जीवन में प्रज्ञा बोध हो सकता है , मानव धर्म और शील सदाचार का जीवन जी कर परमात्मा परमपिता चेतन राम तत्व को समझ कर भव सागर से मुक्त होकर मोक्ष निर्वाण पद प्राप्त कर सकता है !
कबीर साहेब कहते है भाईयो सनातन पुरातन आदिवासी आद्य मूलभारतीय हिन्दू धर्म का आचरण ही वो मार्ग है जिसके पालन करने से चेतन राम के दर्शन होंगे और मानव जीवन सार्थक होगा !
मानव जीवन एक समय बद्ध जीवन है जन्म है बालपन , तरुण , बुढ़ापा , शरीर और मन के रोग से गुजरकर मानव के दिन रात यू ही देखते देखते गुजर जाते है और इस समय का सदपयोग ना कर अगर हम मोह माया इच्छा अधार्मिक वृति तृष्णा आदि के जंजाल में फंस जाते है तो मृत्यु समीप आते ही हम अपने कर्मो का लेखा जोखा खुद याद करते है और पाप , अधर्म, गलत कार्य के दुष्परिणाम के भविष्य की संभावना देख कर थर थर कांपने लगते है , दुखी होते है ! यह न हो इस लिये भाईयो आज ही सतर्क हो जावो ! धर्म अधर्म को समझो क्यू की धर्म की जरूरत केवल मानव जीवन में होती है अन्य जीव में नहीं ! प्रज्ञा बोध केवल मानव जीवन में प्राप्त किया जा सकता अन्य जीवन में नहीं ! इसलिए व्यर्थ और सार्थक में भेद करो , धर्म और अधर्म में भेद करो , संस्कृति और विकृति में भेद करो ! मूलभारतीय हिन्दूधर्म प्रज्ञा बोध है , धर्म है , संस्कृति है , विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म विकृति , अधर्म है क्यू की वहां शील सदाचार भाईचारा समता मानवता नहीं है !
#धर्मवीक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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