#शब्द : १००
देखउ लोगा हरि केर सगाई, माय धरि पुत धियऊ संग जाई : १
सासु ननद मिलि अचल चलाई, मंदरिया के गृह बैठी जाई : २
हम बहनोई राम मोर सारा, हमहिं बाप हरि पुत्र हमारा : ३
कहहिं कबीर ये हरि के बूता, राम रमते कुकुरि के पूता : ४
#शब्द_अर्थ :
हरि = चेतन राम ! सगाई = रिश्ता ! माय = माता, माया! धियऊ = पुत्री , बुद्धि ! सासु = सास , संशय ! ननद = पति की बहन , कुमति ! अचल = निश्चल ! मंदरिया = मदारी, बाजीगर ! बहनोई = जीजा , भार ! राम = चेतना, आत्म बोध ! सारा = सत्य ! हरि के बूता= प्रज्ञा बोध के कारण ! कुकुरि = मुर्गी ! पूता = पुत्र !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो सुनो निराकार निर्गुण अविनाशी तत्व चेतन राम ने ही सगे संबंधी बनाये है ! ये सगे संबंधी माया मोह इच्छा तृष्णा लालच लोभ कुमति अहंकार संशय ये सब मानव मन के रिश्तेदार जैसे मां बाप भाई बहन , पुत्र पुत्री , सास ननद , भौजाई, जीजा आदि होते है वैसे ही मन के बने बनाये है !
आसक्ति के कारण मानव अधर्म को धर्म मानते है और उसका पालन कर अधिक अधर्म करते है और मर्त्य मानव शरीर इन विकृति से अधिक बोझिल होकर दुखी होता है ! दुख एक भव चक्र है जिसका कारण अधर्म है इसलिए परिणाम दुख है , बार बार जन्म मृत्यु है !
ऐसा कोई बिरला ही है जो चेतन राम की तरह निर्गुण निराकार अविनाशी जीवन जीता है जिसे मोक्ष या निर्वाण अवस्था कहा जाता है ! इस अवस्था को धर्मात्मा कबीर प्राप्त हुवे इस लिये वे चेतन राम है , निराकार निर्गुण अविनाशी तत्व चेतन राम !
कबीर साहेब कहते हैं भाईयो आप भी दुख के भवचक्र मुर्गी से अंडा अंडे से मुर्गी उस जीवन चक्र से बाहर निकल सकते हो और ये मानव जीवन मूलभारतीय हिन्दूधर्म के प्रज्ञा बोध तत्व शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सत्य सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाला मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन कर अपना दुर्लभ मानव जीवन सार्थक कर सकते है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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