#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ८२ : तुम यहि विधि समझो लोई !
#शब्द : ८२
तुम यहि विधि समझो लोई, गोरी मुख मन्दिर बाज़ै : १
एक सरगुण घट चक्रहिं बेधे, बिना वृषभ कोल्हू माचा : २
ब्रह्महिं पकरि अग्नि मा होमै, मच्छ गगन चढ़ि गाजा : ३
नित अमावस नित ग्रहण होई, राहु ग्रासे नित दीजै : ४
सुरभि भक्षण करत वेद मुख, घन बसें तन छीजै : ५
त्रिकुटी कुण्डल मध्ये मन्दिर बाजे, औघट अम्मर छीजै : ६
पुहुमि का पनिया अम्मर भरिया, ई अचरज कोई बुझई : ७
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, योगिन सिद्धि पियारी : ८
सदा रहे सुख संयम अपने, बसुधा आदि कुमारी : ९
#शब्द_अर्थ :
कोई = धर्मात्मा कबीर की धर्म पत्नी ! गोरी मुख = सुंदर स्त्री , योगी की कुण्डलिनी ! मन्दिर = नाभि ! एक सरगुण = मन ! छटचक्र = योगी शरीर शक्ति की समझ ! वृषभ = बैल ! माचा = जोत दिया ! अग्नि = होम , योग अग्नि ! मच्छ = मछली ! गगन = विश्व ! गाजा = गर्जना ! ग्रासे = खाना ! सुरभि भक्षण = गौ मांस खाना ! वेद मुख = ब्राह्मण ! घन = बादल ! छीजै = बरसाना ! त्रिकुटी = दोनों आंख के बीच ! मन्दिर = स्थान ! औघट = दुर्गम ! पुहुमि = पृथ्वी ! पानिया = पाणी ! अम्मर = अम्बर , आकाश ! वसुधा = पृथ्वी , धरती ! आदि कुमारी = सब की !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो सुनो , लोई तुम भी सुनो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोगोने क्या क्या तमाशे खड़े किये !
पहले वेद अनुसार ब्रह्मा के मुख से पैदा हुवे खुद को सर्व श्रेष्ठ ब्राह्मण बताया , और उनकी कन्या पार्वती गौरी को मूलभारतीय हिन्दूधर्म के शिव से ब्याहने से इस लिऐ मना किया कि वो शुद्र है और शुद्र को ब्राह्मण कन्या नही दी जा सकती है ! पर जब गौरी पार्वती ने जिद कर शिव से ब्याह किया उसको बच्चा गणपति हुआ और लोग गौरी गणपति को पूजने लगे तो दान दक्षिणा के लिए ब्राह्मणों ने गौरी गणपति के मंदिर बनाना शुरू किया !
वेद और वैदिक होम हवन में अग्नि पूजा गाय घोड़े आदि की बलि देकर गौ मांस खाने वाले ब्राह्मण तब मंदिर में शिव शंकर महादेव, पार्वती , शक्ति , गणपति की पूजा भी ठीक है कहने लगे ! उल्टा भी उन्हें दान दक्षिणा के लिए ठीक लगाने लगा ! यही नहीं तो मूलभारतीय हिन्दूधर्मी शिव की यौगिक कला भी उन्होंने मान्य किया और योग को भी ठीक कहने लगे ! ब्रह्मा विष्णु महेश को योग , कुंडलिनी , त्रिकूट, त्रिपुट को मान्य कर भस्म से माथे पर भुजा पेट आदि पर शिव का त्रिपुट धारण करने लगे ! चन्दन के साथ साथ जाली लकड़ी की राख भी अब उन्हें भाने लगी क्यू की बहुजन मूलभारतीय इसे पवित्र मानते है ! गले में तुलसी माला कान में कमंडल शिव मणि माला को रुद्राक्ष कह कर धारण करने लगे ! ये तो ऐसा ही हुआ जल की मछली आकाश में उड़ाने लगी ! अब विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोगोंको यहां की हर चीज , धर्म , संस्कृति प्यारी लगने लगी क्यू की यहां की सुजलाम सुफ़लाम धरती से उन्हें सब सुख मिलने लगे और इसी चक्कर में उन्होंने वेद मनुस्मृति आदि में वर्ण जातिवाद वसाहतवाद, शोषण अस्पृश्यता विषमता छुआछूत को जन्म दिया उन्हें लगा अब ये धरती सदा के लिए उनकी हो गई पर भाईयो ऐसा कभी नहीं होता ! अहंकार शोषण करने वाले भी एक दिन मिट जाते है , यह धरती कभी एक अहंकारी की नही हुई , वो सब की जन्मदाती है ! सब की है सब का पालन करती है !
कबीर साहेब विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण से कहते है हे गौ मांस खाने वाले ब्राह्मण अपने विकृत धर्म संस्कृति का इतना घमंड ना करो यहां आसमान में ग्रहण अमावस्या आम बात है, जो पानी भाप और बादल बन आकाश में उड़ता है , इतराता है उसे भी एक दिन जमीन पर गिर कर उतरना होता है ! घमंड, अहंकार जातिवाद अस्पृश्यता विषमता शोषण करना बंद करो होश में आवो , चेतन राम सब का घमंड तोड़ता है और तुम्हारा भी टूटेगा यह निश्चित है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दधर्म_विश्वपीठ
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