Monday, 30 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 17 : Ramhi Gaavai Aurahi Samuzaavai !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : १७ : रामहि गावै औरहि समझावै 

#शब्द : 

रामहि गावै औरहि समझावै, हरि जाने बिनु बिकल फिरें : १
जेहि मुख वेद गायत्री उचरे, ताके बचन संसार तरे : २
जाके पाँव जगत उठि लागे, सो ब्राह्मण जीव बद्ध करें : ३
आपन ऊंच नीच घर भोजन, घिन कर्म  हठि वोद्र भरे : ४
ग्रहण अमावस ढूकी ढूकि माँगे, कर दीपक लिये कूप परे : ५
एकादशी व्रत नहिं जाने, भूत प्रेत हठि वृदय धरे : ६ 
तजि कपूर गाँठी विष बाँधे, ज्ञान गवांये मुग्ध फिरे : ७
छीजै साहू चोर प्रतिपाले, सन्त जाना की कूटि करे : ८
कहहिं कबीर जिभ्या के लंपट, यहि विधि प्राणी नर्क परे : ९

#शब्द_अर्थ : 

रामहि गावै = राम की ईश्वर की कीर्ति ! वेद  गायत्री मंत्र  = विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के धर्म विचार !  बद्ध करे = हत्या करे ! घिन कर्म = घृणित कर्म !  ढूकि ढुकि = ढूंड़ ढूंढ , घुस घुस कर देखना ! मुग्ध = मूर्ख, अज्ञानी ! कुटि करे = चेष्टा करे ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और मूलभारतीय हिन्दूधर्म अलग अलग है ! उनके धार्मिक विचार , धर्मगुरु , तीज त्यौहार अलग अलग है ! विदेशी वैदिक यूरेशियन ब्राह्मणधर्म का धर्मग्रंथ वेद है जहाँ है भेदाभेद , उनका गायत्री मंत्र अश्लील है वहाँ कोई नीतिमत्ता नहीं , उनका कानून मनुस्मृति है जहा जाति वेवस्था उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय विचार है !  मूलभारतीय हिन्दूधर्म का धर्म लोकधर्म समता शांति अहिंसा भाईचारा मानवता , विज्ञानवादी सनातन पुरातन आदिवासी मूलभारतीय समाज का है जो किसी ब्राह्मण को अपना धर्मगुरु , पुरोहितों नहीं मानता इसके धर्म ज्ञानी साधु संत है ! 

विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के ईश्वर देवी देवता होम हवन में अग्नि से प्रगट होते है जहां गो हत्या , अश्व हत्या आदि प्राणी हत्या , सोम रस दारू , अश्लील हरकते सामान्य बात है ! 

हिन्दू एकादशी आदि व्रत करते है अमावस्या को उपवास करते है ये विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के ब्राह्मण हिन्दू के घर में  जा जा कर दान मांगते है  ये ढोंगी हत्यारे है , ज्ञानी नही पापी है , राम की बाते  करते है परे चेतन राम को नहीं जानते , लोगोंको दुख देना , उनको लूटना स्वर्ग नरक पाप पुण्य भूत प्रेत आदि का डर पर इनका पुरोहिति धंधा चलता है और ये सच्चे ज्ञानी साधु संत की कुचेष्टा करते रहते है !  

विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पुरोहित ब्राह्मण खुद को श्रेष्ठ कहते है और मूलभारतीय हिन्दूधर्मी लोगोंको नीच शुद्र अस्पृश्य गुलाम कहते गैर साधु संत का अपमान करते है ऐसे ब्राह्मण निश्चित ही नर्क में जायेंगे !

कबीर साहेब विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म से दूर रहने की सलाह मूलभारतीय हिन्दूधर्मी लोगोंको देते है !

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्थान , #शिवश्रृष्टि

Sunday, 29 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 16 : Ramura Zizi Jantar

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : १६ : रामुरा झीझी जंतर बाज़ै !

#शब्द : १६

रामुरा झीझी जंतर बाजै, कर चरण बिहूना नाचै : १
कर बिनु बाज़ै सुनै श्रवण बिनु, श्रवण श्रोता सोई : २
पाटन सुबस सभा बिनु अवसर, बुझो मुनि जन लोई : ३
इन्द्रि बिनु भोग स्वाद जिभ्या बिनु, अक्षय पिण्ड बिहूना : ४
जागत चोर  मन्दिर तहाँ मुसै, खसम अक्षत घर सूना : ५
बीज बिनु अंकुर पेड़ बिनु तरिवर, बिनु फूले फल फरिया : ६
बाँझ कि कोख पुत्र अवतरिया, बिनु पग तरिवर चढ़िया : ७
मसि बिनु द्वाइत कलम बिनु कागद, बिनु अक्षर सुधि होई : ८
सुधि बिनु सहज ज्ञान बिनु ज्ञाता, कहहिं जन सोई : ९ 

#शब्द_अर्थ : 

रामुरा = चेतन राम द्वारा निर्मित जीव ! झीझी = अनाहत ध्वनि  ! जंतर = यंत्र , शरीर , खोपड़ी ! बिहूना  = रहित ! पाटन = नगर !  सुबस = अच्छा निर्माण किया !  लोई  =। कबीर की पत्नी ! बिनु अवसर = निरंतर , सदैव ! पिण्ड = शरीर ! मंदिर = वृदय !  खसम = स्वामी, जीव ! अछत = रहते हुवे ! घर = वृदय !  बाँझ = सुनी कोख !  मसि = काली शाई ! द्वावत = शाई की शीशी  दवात ! सुधि = याद , चेत  !  जन  = मनुष्य !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते लोई , साधु  , संतो भाईयो सुनो इस शरीर की रचना अद्भुत है  जिसे  चेतन राम ने बड़ी  सूक्ष्म कारगिरि की तरह बनाया है जिसमें वह खुद ज्ञान रूप में बोधि रूप में निरंतर अस्तित्व में है और खुद ही खुद के साथ बिना आवाज किए , शोर किए बोलता रहता है , उसके संवाद का आवाज बाहर नहीं सुनाई देता ! इसे अंतर्मन का आवाज कहा जाता है ,वृदय का आवाज कहा जाता है इसे न कोई अन्य बजाने वाला है न कोई अन्य साज यंत्र है इसे अनाहत आवाज ध्वनि , या चेतन राम का खुद से खुद का संवाद कहा जाता है  !  

शरीर में अंतर अवयव को धमनी से रक्त आदि पहुंचती है उस नाडी का आवाज सनसनाहट नाड़ी परीक्षा के लिए किया जाता है , अधिक बेचैनी अशांतता से खोपड़ी में जो सनसनाहट होती है वो चेतन राम की आवाज नहीं अपने शरीर की घबराहट ,  गर्माहट , ज्वर आदि से निर्मित आवाज को कुछ मूर्ख योगी साधु सन्यासी योग मायाशक्ति की आवाज समझकर कुछ अद्भुत संकेत पा लिए है ऐसा भ्रम पालते है और उस आवाज को राम से जोड़ कर  लोगोंको बताते फिरते है कि भगवान शिव राम कृष्ण आदि ने हमसे बात की इत्यादि जो सरासर मूर्खता है , ऐसी बातों में ना आवे मूर्ख , अंधविश्वासी ना बने ! ना भगवान होम हवन से ब्राह्मण के मंत्रों से प्रगट होते है ना बाहरी दर्शन देते है , वह तो सदैव तुम्हारे अंदर ही है निरंतर तुम्हे अच्छा बुरा , हितकारी , अहितकर , धर्म अधर्म , संस्कार विकृति की बात तो करता रहता है फिर उसे किसी भेष में रूप में  ढूंढने की जरूरत ही क्या ?  वो निराकार , निर्गुण , शुद्ध  ज्ञान बोध रूप में तो आपके भीतर ही है  !

भाईयो चेतन राम आपकी बाहरी चोर लुटेरे माया मोह अहंकार अंधविश्वास आदि से रक्षा करना चाहता है इसी लिए सावधान करते रहता है , माया मोह उस अधरवेल , परजीवी की तरह है जो दूसरे की  शोषण पर फलता फूलता रहता है जिसे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म की कलम की गई शाखा मूलभारतीय हिंदूधर्म के वृक्ष पर विष के फल जाती वर्ण उचनिच अस्पृश्यता विषमता भेदभाव आदि के विष के फल दे रहा है ! 

कबीर साहेब कहते है भाईयो मैने बाहर के स्कूल कॉलेज विद्यालय विद्यापीठ गुरुमठ आदि से कोई पढ़ाई नही की है मै अनपढ़ हूं  , लिखना पढ़ना नही जानता ,  पर मैने चेतनराम की अनहद आवाज जो मेरे खुद के मन मंदिर में वृदय में निरंतर होती रहती है बहुत सरल निर्लेप भाव से सुनी है वह चेतन राम की सिख ही सदधर्म है सरल सहज जीवन !  मैने यही किया अन्दर बाहर मै राम ही राम देखता हूं  , वही मेरा मूलभारतीय हिन्दूधर्म है और वृदय  की आवाज ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्थान , #शिवसृष्टि

Saturday, 28 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 15 : Ramura Chali Binavan Ma Ho !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : १५ : रामुरा चली बिनावन मा हो !

#शब्द : 

रामुरा चली बिनावन मा हो, घर छोड़े जात जोलहा हो : १
गज नौ गज दस गज उनइस की, पुरिया एक तनाई : २
सात सुत नौ गण्ड बहत्तर, पाट लागु अधिकाई : ३
ता पट तुला तुलै नहिं गज न अमाई, पैसन सेर अढ़ाई : ४
तामें घटई बढ़े रतियो नहिं, करकच करें गहराई : ५
नित उठी बैठी खसम सो बरबस, तापर लागु तिहाई : ६
भींगी पुरिया काम न आवै, जोलहा चला रिसाई : ७
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, जिन यह सृष्टि बनाई : ८
छाड़ पसार राम भजु बौरे , भवसागर कठिनाई : ९

#शब्द_अर्थ : 

रामुरा = राम रमैया जीव , चेतन राम! बिनावन = शरीर रूपी वस्त्र ! मा = माया , वासना ! घर = शरीर ! जोलहा = जीव , वस्त्र बुनने वाला! गज = लंबाई का नाप ! नौ गज = कर्म वासनामय शरीर ! दस गज = दस इंद्रिय ! उनइस = दस और नौ मिलकर उन्नीस कर्म इंद्रिय ! पुरिया = ताना , शरीर ! सात सुत = रस , मांस वीर्य इत्यादि , नौ नाड़ी = शरीर में स्थित नौ नाडिया ! गंड बहत्तर = शरीर में बहत्तर जोड़ ! पाट = फैलाव , विस्तार ! अधिकाई = उत्तम, मालिक जीव ! अमाई = अशांति ! करकच = कीटकीट , झगड़ा ! गहराई = बहुत ! खसम = पति , जीव ! बरबस = बलात ! तिहाई = बुढ़ापा ! भींगी = जर्जर ! रिसाई = सफाई ! पसार = माया का विस्तार ! भवसागर = जन्म मरण , वासनामय जग ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर जोलहा थे वस्त्र बुनने थे और बाजार हाट में बेचते थे वे सहजता से शरीर और मन के अन्दर बाहर सब जगह बड़ी गहनता से निरीक्षण करते थे इसलिए उनको मानव जीवन , स्वभाव , जरूरतें , चाहत , आवश्यकता ,चेतन राम , जीव , मोह माया भवसागर , सुख दुख शांति अशांति आदि की अवस्था व्यवस्था उनके अपने काम में भी दिखाई दी !  

कबीर साहेब ने मानव का निर्माण , सृष्टि का निर्माण ,चेतन राम , जीव , प्रज्ञा , बोध शरीर की बनावट विस्तार और उनके कार्य कारण भाव का गहन अध्ययन किया और देखा की मानव माया मोह इच्छा तृष्णा अहंकार लोभ आदि में फस जाता है और शुद्ध चेतन जीव अर्थात चेतन राम को अनेक उपदव्याप में उलझाकर उसे दूषित , कलुषित कर देता है जिस वजह से जीव आत्मा चेतन राम को बार बार विभिन्न जन्म लेना पड़ता है ,ये जन्म मृत्यु बुढ़ापा दुख दर्द भरा मायावी जीवन से वो मुक्त नहीं हो पाता है ! जैसे भींगी पुरिया को निचोड़ना पड़ता है तभी वह उत्तम कपड़ा बुन सकती है वैसे ही उत्तम निर्विकार जीवन के लिये जो अधर्म का कचरा जीवन में निर्माण करते है उसकी सफाई के बैगर उत्तम जीवन , मोक्ष संभव नहीं यही बात कबीर साहेब यहां बताते हैं ! 

अधर्म से जिएंगे तो बार बार जन्म मृत्यु के फेरे से गुजरना पड़ेगा , दुख दर्द सहना पड़ेगा ! अधर्म विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म है , जाति वर्ण अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय विचार है ! लोभ मोह माया इच्छा तृष्णा अहंकार है इसकी रसाई करो , निर्मल बनो और स्वच्छ सुत से बेदाग कपड़ा बुनो तो भवसागर में उसकी अनमोल कीमत है वरना उसकी कीमत क्या जो मैला है फटा टूटा , विद्रूप है दुख कारक है ?

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
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Friday, 27 September 2024

Pavitra Bijak: Pragya Bodh : Shabd : 14 : Ramura Sanshay Gaanthi N chhute !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : १४ : रामुरा संशय गाँठि न छूटै !

#शब्द : 

रामुरा संशय गाँठि न छुटे, ताते पकरि पकरि यम लूटै : १
होय कुलीन मिस्कीन कहावै, तू योगी संन्यासी : २
ज्ञानी गुणी सुर कवि दाता, ये मति किनहु न नासी : ३
सुमृति वेद पुराण पढ़ें सब, अनुभव भाव न दरसे :  ४
लोह हिरण्य होय ध्रों कैसे, जो नहिं पारस परसे : ५
जियत न तरेउ मुये का तरिहो , जियतहि जो न तैरे : ६
गहि परतीत किन्ह जिन जासों, सोई तहाँ अमरे : ७
जो कुछ कियउ ज्ञान अज्ञाना, सोई समुझ सयाना : ८
कहहिं कबीर तासों क्या कहिये, जो देखत दृष्टि भुलाना : ९

#शब्द_अर्थ : 

रामुरा = रमैया , जीव, चेतन राम! संशय = संदेह , अनिच्छित ! यम = विकार, वासनाऐं ! कुलीन = उच्च कुल ! मिस्किन =  फकीर , गरीब साधु  धार्मिक गृहस्थी !  मति = विचार , संशय ! सुमृति = मनु स्मृति ! अनुभव = प्रयोगसिद्ध ज्ञान , आत्म  बोध !  भाव = भावना ! हिरण्य = स्वर्ण !  अमरे = अमर , अंतिम स्थान पर पहुंचना ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो सब लोग संशय  प्रवृति से बंधे है ! क्या करु क्या न करु समझ में नहीं आता और बिना गुरु ज्ञान के गलत कर बैठते है जैसे बहुत सारे लोग वेद , मनु स्मृति , पुराण की बातोंको सच मान बैठे है , अपना विवेक बुद्धि का प्रयोग नहीं करते है जग को खुली आंख से नहीं देखते है , बुरे अनुभव के बाद भी बुरी सिख को नहीं छोड़ते है तो ऐसे मुर्खोंका कैसे भला होगा पूछते है कबीर साहेब ! 

लोहे को सोना बनाने के लिऐ पारस की जरूरत होती है मनुष्य जीवन का सोना करना है तो पारस , परख करने वाला गुरु ढूंढना होगा , सुनी सुनाई बातों पर विश्वास मत करो अपने अनुभव स्व अनुभूति  से परखो क्या ये विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग वेद और भेद वर्ण और जाति उचनिच और अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय मनु स्मृति के नियम कानून और पुराण की मनगढ़न स्वर्ग नरक अप्सरा हूरें स्वर्गीय सुख के बहकावे में आपका वर्तमान समय , जीवन बर्बाद तो नहीं कर रहे आप को बर्बाद और गुमराह तो नहीं कर रहे आपसे पुण्य के काम करने के बदले विकृत और अधर्म वैदिक ब्राह्मणधर्म का पालन करने को कह कर आपका ईहिक और आध्यात्मिक शोषण तो नहीं कर रहे ? 

कबीर साहेब सावधान करते हुवे कहते है भाई जीवन में आज जीते जी तरना है मृत्यु के बाद तो शव तैरते है !  जीते जी शव मत बनो अपने हित और सुख के तुम खुद मालिक हो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पोंगा पंडित नहीं ना तुर्की मुस्लिमधर्म के मौलवी ! अपना स्वदेशी मूलभारतीय हिन्दूधर्म को समझो जो आपके हित और सुख के लिए है जो धार्मिकता के साथ सभ्य संस्कृति और मोक्ष दुख मुक्ति का मार्ग है , सुख कारक है जीवन सार्थक करने वाला है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्थान , #शिवश्रृष्टि

Kabirdev Aarati : Aadi Vandu Tuj kabira !

#कबीरदेव !

आदी वन्दू तुज कबीरा 
तुच धर्मात्मा खरा
आदि वन्दू तुज ______ // ध्रू //

तू सत्यवक्ता तू सत्यभोक्ता 
तुजविन सत्यधर्म सांगील कोण 
तुच माणुसकी चा झरा  
आदि वन्दू तुज ______ 1

मुलभारतियांचा तू देव 
नाहिं तुला कश्याचा भेव 
तुच आमचा तारणहारा 
आदि वन्दू तुज ______ 2

हिन्दूधर्म तू पुनरस्थापक 
बीजक धर्मवाणी देयक 
तू चेतन राम ॐकारा 
आदि वन्दू तुज _____ 3

मुलभारतिय हिन्दू धर्म 
हेच पवित्र आम्हा कर्म 
परम पवित्र ही ग्यान धारा 
आदि वन्दू तुज ______ 4

कबीरसत्व जगतगुरू दौलतराम 
आद्द धर्मपीठ कबीरदेव समान
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ कारा 
आदि वन्दू तुज _______ 5

#जनसेनानी

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 13 : Ram Teri Maya Dund Machavai !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : १३ : राम तेरी माया दुन्द मचावै !

#शब्द : १३

राम तेरी माया दुन्द मचावै : १
गति मति वाकी समुझी परे नहिं, सुर नर मुनिहि नचावै : २
क्या  सेमर तेरि शाखा बढ़ाये, फूल अनुपम बानी : ३
केतेक चात्रक लागि रहे हैं, देखत रूवा उड़ानी : ४
काह खजूर बड़ाई तेरी, फल कोई नहिं पावै : ५
ग्रीषम  ऋतु जब आनि तूलानी, तेरी छाया काम न आवै : ६
आपन चतुर और को सिखावै, कनक कामिनी सयानी : ७
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, राम चरण ऋतु मानी : ८ 

#शब्द_अर्थ : 

माया = भुलावा, धोखा, भ्रम !  दूंद = द्वंद , कलह !  राग = द्वेष !  हर्ष = आनंद ! गति = चाल ! मति = बुद्धि ! शाखा = डाली ! अनुपम = विलक्षण उत्तम ! बानी = वाणी , बनाना ! चात्रक = चात्रिक पक्षी !  रूवा = कपास , रुई ! सयानी = बुद्धिमानी ! ऋतु = मौसम बदलाव, प्रेम !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो संसार  में मोहमाया इच्छा अधार्मिक अहंकार लालच ने कहर किया है उसकी तीव्रता , आवेग तृष्णा से राजा महाराजा वीर मुनि ज्ञानी साधु संत कोई नही बचा जब तक वो मन में बसे राम को समझते नहीं ! 

कबीर साहेब कहते है सेमर वृक्ष को तो सब ने देखा होगा कितने बड़े होते है , बड़े पत्ते , सुंदर फूल और बड़े बड़े फल को देख कर अक्सर पंछियों को लगता है बड़े फल है तो बड़े रसदार मीठे होंगे पर जैसे ही चोंच मारते है अन्दर से रस तो नहीं रुई बाहर निकल आती है और वो उड़ जाती है , खाने के लिए कुछ नहीं मिलता ये तो उस पेड़ की नीति है अपने बीज जो रुई को लगे रहते है उसे उड़ावो और कही अन्य जगह ले जाकर गिरावो ताकि वहां सेमर उग सके ! 

कबीर साहेब कहते है भाईयो आपने खजूर का पेड़ भी देखा होगा बड़ा ऊंचा होता है पर राह चलते लोगोंको न उसकी छाया ग्रीष्म ऋतु में काम देती है ना फल , बड़प्पन पर मत जावो , बड़ी बड़ी बातों में ना फासो , दिखावे पर ना आसक्त हो , ना मोहित हो ! सब मन का भ्रम है !  

आगे कबीर साहेब कहते है कितने ही अमीर लोग अमीरी आने पर चतुर बन जाते है और दूसरोंको अक्ल सीखने लगते है , सुंदर स्त्री भी अपने को सुंदरता की वजह से उसकी तारीफ करते है तो अपने आप को बड़ी सयानी समझने लगती है ! भाईयो इस भुलावे पर मत जावो रईस लोग धन संपत्ति दौलत कमाने के गुर बताते है जिसमें कितनी ही अनैतिकता होती है जैसे सुंदर स्त्री अपनी सुंदरता की घमंड में  चरित्र नहीं बचा पाती वैसे ही धनिक लोग संपत्ति की हाव में , चाहत में क्या सही क्या बुरा क्या धर्म क्या अधर्म सब भूल जाते है ! ऊंचा होना , श्रेष्ठ दिखाना , बड़ा बनना अगर अनैतिकता , भुलावे का कारण बन जाता है तो अंत बेकार है ! 

कबीर साहेब कहते है भाईयो उचनिच , बड़ा छोटा , श्रेष्ठ कनिष्ठ , जाति वर्णवाद , अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय विचार अधर्म का आधार लेकर कुछ लोग अपने आप को श्रेष्ठ ब्राह्मण मान रहे है , अग्यान भरा वैदिक ब्राह्मणधर्म का प्रचार प्रसार कर रहे है पर उनके बड़ाई पर मत जावो , अंत में पछताओगे क्यों की वहां अधर्म विकृति के शिवाय कुछ नहीं ! धोखे के शिवाय कुछ नहीं , दिखावे के शिवाय कुछ नहीं !

अन्त में कबीर साहेब कहते है चेतन राम को जानो , सभी मौसम ऋतु में समभाव से रहो , क्षणिका मोह माया तृष्णा में भूल कर अधार्मिक , विकृत व्यवहार ना करो ताकि जीवन के अंत में पछताना न पड़े !  बड़बोले विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और तुर्की धर्म के दिखावे पर मत जावो अपना मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन कर मोक्ष , निर्वाण का सुख पावो !

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्थान , #शिवश्रृष्टि

Thursday, 26 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 12 : Santo Mate Matu Jani Rangi !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : १२ : संतो मते मातु जन रंगी !

शब्द : संतो मते मातु जन रंगी : १
पियत पियाला प्रेम सुधा रस, मतवाले सत्संगी : २
अर्धे उर्धे भाटी रोपिनि, लेते कसारस गारी : ३
मूंदे मदन काटी कर्म कस्मल, संतति चुवत अगारी : ४
गोरख दत्त वशिष्ठ व्यास कपि, नारद शुक मुनि जोरी : ५
बैठे सभा शम्भु सनकादिक, तहाँ फिरे अधर कटोरी : ६
अम्बरीष औ याज्ञ जनक जड़, शेष सहस मुख फोना : ७
कहाँ लौं गानों अनन्त कोटि लौं, अमहल महल दिवाना : ८
ध्रुव प्रहलाद विभीषण माते, माती शेवरी नारी : ९
निर्गुण ब्रह्म माते वृंदावन, अजहूँ लागु खुमारी : १०
सुर नर मुनि यति पीर औलिया, जिन रे पिया तिन जाना : ११
कहैं कबीर गूंगे की शक्कर, क्यों कर करे बखाना :१२

#शब्द_अर्थ : 

मते = विभिन्न मत, विचार ! मातु = मत, विचार वाला ! जन रंगी = भक्त , साधु संत गण , जन ! अर्धे : शरीर का अर्धा भाग ! उर्धे = ऊपरी भाग , शिरोभाग ! भाटी = दारू की भट्टी ! कसारस = दारू , माड़, मदिरा ! गारी = बनाना , निकालना ! अधर कटोरी = दारू का प्याला ! मुँदे = दमन ! मदन = काम तृष्णा ! कर्मकस्मल = दूषित कर्म , मोह ! संतति = सतत , निरंतर ! अगारी = अग्नि पूजक , होम हवन वाले ! दत्त = दत्तात्रेय ! कपि = कपिल मुनि , हनुमान ! शुक = शुक़देव ! याज्ञ = यज्ञवल्क ! जड़ = जड़भरत ! शेष = शेषनाग ! अमहल = गरीब , झोपड़ी में रहने वाले , सामान्य जन ! महल = श्रीमंत , महलोमें रहने वाले ! खुमारी = नशा ! यति = त्यागी , पीर = मुस्लिम पीर , गुरु ! औलिया = मुस्लिम संत , सिद्ध !  

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो जो सच्चे ज्ञानी , धार्मिक है ऐसे लोग बहुत कम है वे भाईचारा समता मानवता सदाचार शील आदि का प्रचार करते है ऐसे विचार मत के सत्संग साधु संगत में रहते रमते है उन्हें वहा सुख शांति आनंद मिलता है ! 

बाकी अन्य विचार ,मतवाले विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और तुर्की मुस्लिमधर्म के लोग अपने ही मत विचार को ठीक मानते है ये अर्ध पके लोग है , अर्ध परिपक्व है , पूरे धर्मज्ञानी नहीं ! और एसे अधपके लोगोंकी कोई कमी नहीं , विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोगोने तो उनका बड़ा जमावड़ा बनाया है जैसे दत्त , वशिष्ठ , व्यास , कपिल , नारद , शुक , गोरख , अम्बरीष , यज्ञवल्क, नारद , जनक , जड़भरत , शंकराचार्यवादी अघोरी आदि आदि इन सब का जाती वर्ण वादी , असमानता विषमता , भेदभाववादी वेद और मनुस्मृति को मानने वाले का आध्यात्मिक जमावड़ा खड़ा किया ! ये वेद होम हवन के समर्थक गोमेध अश्वमेध , सोमरस मांस मदिरा के समर्थक जब मिल बैठते है तो उनकी बैठक में सोमरस के प्याले अधर अधर से घूमते है , एक ही प्याले से वो सोमरस पीते है , यही उनका भाईचारा समता है ! 

दुर्भाग्य से कुछ स्थानीय नागवंशी राजे , धनिक भी इनकी मोह माया , अधर्म में फस कर मदिरा मोहिनी की चक्कर में अपना मूलभारतीय हिन्दूधर्म त्याग कर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के दूसरे तीसरे दर्जे में शामिल हो गए है ! ये देशद्रोही , समाजद्रोही है , धर्मद्रोही , बाटगे है , बटे हुवे लोग है जिन्होंने विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म की गुलामी , लाचारी स्वीकार कर ली है उनके देखादेखी कुछ सामान्य लोग भी अपने को चतुर्थ श्रेणी के वैदिक ब्राह्मण धर्मी हो गए है ! माया मोह अज्ञान के कारण विशाल मूलभारतीय नागवंशी परिवार अनेक मुंह में बट गया है , एकता खंडित हो गई है , जितने मुंह उतनी बाते ऐसी नागोंकी हालत हो गई है ! मूलभारतीय ध्रुव , प्रल्हाद अन्य की भी यही अवस्था हुवी ! 

कबीर साहेब कहते है पूरा देश वर्ण जाति उचनीच विषमता अस्पृश्यता भेदभाव में बट गया , विदेशी तुर्की मुस्लिमधर्म के आक्रमण से नहीं बच सका और उनका भी धार्मिक आक्रमण विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म की तरह यहां के मूलभारतीय हिन्दूधर्म और सिंधु हिन्दू संस्कृति पर हुवा !  

 कबीर साहेब कहते हैं देश का विचार निर्गुण निराकार अविनाशी चेतन राम में एकता भाईचारा समता मानवता शील सदाचार को कुछ लोगौने बचा कर रखा वे वृन्दावन में वृंदा की याद में वहां सत्संग करते है आज भी विदेशी वैदिक यूरेशियन ब्राह्मणधर्म के विष्णु ने मूलभारतीय वृंदा पर किए अत्याचार , बलात्कार को याद कर देश विदेशी यूरेशियन ब्राह्मण मुक्त करने के लिए सत्संग करते है ! 

जो मूलभारतीय हिन्दूधर्म वीर शुर साधु योगी मुस्लिम धर्म में गए साधु संत पीर औलिया कबीर के मूलभारतीय हिन्दूधर्म विचार या मतअवलंबी है वही जानते हैं प्रेम भाईचारा समता मानवता शील सदाचार क्या है बाकी जो नहीं मानते उनको कबीर वो गूंगे कहते है जो मीठे का स्वाद शब्दों में बयान नहीं कर सकते ! 

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Tuesday, 24 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 11 : Paande Nipun Kasai !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ११ :  #संतो_पाँडे_निपुण_कसाई ! 

#शब्द : ११

संतो पांडे निपुण कसाई : १
बकरा मारि भैंसा पर धावै, दिल में दर्द न आईं : २
करि स्नान तिलक दै बैठे, विधि सो देवि पूजाई : ३
आतमराम पलक में बिनसे, रुधिर की नदी बहाई : ४
अति पुनीत ऊंचे कुल कहिये, सभा  माहिं अधिकाई : ५
इन्हते दीक्षा सब कोई मांगे, हँसी आवै मोहि भाई : ६
पाप काटन को कथा सुनावै, कर्म करावै नीचा : ७
हम तो दूनों परस्पर देखा, यम लाये हैं धोखा : ८
गाय बधे तो तुरुक कहिये, इतने वै क्या छोटे : ९
कहहिं कबीर सुनो हो संतो , कलिमा ब्राह्मण खोटे : १० 

#शब्द_अर्थ : 

पाण्डे =  वैदिक पांडे ,  ब्राह्मण पुजारी ! निपुण = चतुर ! दर्द = पीड़ा , दुख ! अधिकाई = धर्म अधिकारी , गुरु !  दीक्षा = धर्म ज्ञान ! कलिमा =  कलियुगी यम ! खोटे = असत्य,  बुरे  ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो सुनो ये विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पंडे पुजारी जो बाहर  से हिंदुस्तान में अपना वैदिक ब्राह्मणधर्म ले आये है शुरू से ही हिंसक असभ्य खुनशी और हत्यारे और पापी का अधर्म विकृति रही है ! ये वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग होम हवन के नाम पर और अग्नि से साक्षात सशरीर उनके देवी देवता ब्रह्मा इंद्र रुद्र गायत्री आदि प्रगट होते है ऐसी पुरानी मनगढ़ंत मान्यता लेकर हिंदुस्तान में भी लाखों गाय बैल भैंसे घोड़े कत्ल करते रहे ! इन ब्राह्मणोकी इस घृणित धर्म मान्यता गोमेध अश्वमेध आदि हिंसा पर प्रहार करते हुवे कबीर साहेब इन विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पुजारी को सीधे सीधे क्रूर यमराज कहते है ! इनके धर्म को विकृति और अधर्म पाप मान कर कहते है भाई जब लोग पाप काटने , कम करने कथा सुनते है , लोग इनसे दीक्षा , मंत्र माला लेते है तिलक लगवाते है धार्मिक कथा पूजा करते है तो मुझे बड़ी हँसी आती है और लोगोंके मूर्खता पर तरस आता है !  येतो अधर्म की शिक्षा दीक्षा देते है , झूठे फरेबी मंत्र पढ़ते है बताते है जो मूलभारतीय को नीच , शुद्र , अस्पृश्य , गुलाम बताते है !

वैदिक ढोंगी पंडित पूजारी सबेरे सबेरे उठकर चंदन तिलक लगाकर इसी फिराक में बैठे रहते है कोई बेवकूफ मूलभारतीय आए और उसे झूठी असत्य नारायण पूजा , होम हवन करा कर उल्टे पाप में फसा दे !  ये ब्राह्मण बड़े झूठे और निपुण कसाई है अब मुर्गी आदि सब मार कर खाते है और तुर्की से आए धर्म को तुर्क कहकर वो पशु मांस गोश्त खाते है तो उन्हें बुरा कहते है जब की इनमें और तुर्की में काई फर्क नहीं दोनों हत्यारे नीच और पापी है और ब्राह्मण तो उनसे भी जादा नीच ओर पापी है ! 

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Monday, 23 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 10 : Santo Rah Dunon Ham Ditha !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : १० : संतो राह दुनों हम दीठा ! 

#शब्द : १० 

संतो राह दुनों हम दीठा : १
हिंदू तुरक हटा नहिं मानें, स्वाद सबन को मीठा : २
हिन्दू बरत एकादशि साधे, दूध सिंघारा सेती : ३
अन्न को त्यागे मन को न हटके, पारन करे सगौती : ४
तुरक रोजा निमाज गुजारे, बिसमिल बाँग पुकारे : ५
इनको बिहिस्त कहाँ से होबै, जो साँजैं मुर्गी मारे : ६
हिन्दू की दया मेहर तुरकन की, दोनों घट से त्यागी : ७ 
ई हलाल बै झटका मारें, आग दुनों घर लागी : ८
हिन्दू तुरक की एक राह है, सतगुरू सोई लखाई : ९
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, राम न कहूँ खुदाई : १० 

#शब्द_अर्थ : 

दीठा = देखा ! हटा = मना करना ! सेती = सहित, द्वारा ! हटके = रोके ! पारन = उपवास , व्रत पर अन्न ! सगौती = मांस , गोश्त ! तुरक = तुर्की मुस्लिम ! गुजारे = अदा करे ! बिसमिल = अल्ला के नाम से ! बांग = जाहिर आवाज , अजान ! बिहिस्त = स्वर्ग ! मेहर = दया ! हलाल = जायज पशु हत्या और मांस ! झटका = झटके से मार ना , हत्या वाला पशु का मांस ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग और विदेशों तुर्की मुसलमान धर्म के लोग बड़े ढोंगी है ! एक तरफ वो एकादशी आदि तिथि पर उपवास करते रखते है, नीरजल रोजे रखते है वही उपवास के नाम से ये लोग दिनभर विविध उपवास के पदार्थ बनाकर खाते रहते है और तो और ये ढोंगी लोग अपने जीभ के चोंचले पूरे करने के लिए अपने अपने धर्म की मान्यता बताकर झटका और हलाल की रीति रिवाज से पशु हत्या करते है ऊनका मांस , गोश्त उपवास का समारोप पर खाते है और ऊपर से बताते है अल्ला ईश्वर ने प्राणी हत्या , मांस गोश्त खाने की अनुमति दी है , जायज है ! 

कबीर साहेब इन दोनो धर्म विदेशी वैदिक यूरेशियन ब्राह्मणधर्म और विदेशी तुर्की मुस्लिम धर्म को गलत और अधर्म अनैतीक मानते है ! वे कहते है हत्यारे कैसे स्वर्ग , जन्नत में जा सकते है ? और वे वहा जाते है कहने वाले दोनो धर्म ढोंग और असभ्य अनैतिक विकृत अधमी !

कबीर साहेब भारत में उदय हुवे मूलभारतीय हिन्दूधर्म , बुद्धधर्म ,जैनधर्म की अहिंसा , मेहरबानी कृपा दया को धर्म का मूल मानते हुवे मानव और प्राणी हत्या का विरोध करते हुवे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और विदेशी तुर्की मुस्लिम धर्म को अधर्म मान कर खारिज करते है ! मन की लालच मोह माया को रोकने की बात करते है कबीर साहेब ! 

कबीर साहेब कहते है अधमी वैदिक ब्राह्मणधर्म से ना राम , भगवान खुश है न तुर्की मुस्लिम धर्म से रहीम , अल्ला खुश है ! प्राणी हत्या से कोई ईश्वर , अल्ला , भगवान कैसे खुश हो सकता है पूछते है कबीर साहेब ! 

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Sunday, 22 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 9 : Santo Bole Te Jag Mare !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ९ : संतो बोले ते जग मारे !

#शब्द : ९

संतो बोले ते जग मारे : १
अनबोले ते कैसक बनि है, शब्दहि कोइ न बिचारे : २
पहले जन्म पुत्र का भयऊ, बाप जन्मिया पाछे : ३
बाप पूत की एकै नारी, ई अचरज कोइ काछे : ४
दुन्दूर राजा टीका बैठे, विषहर करै खवासी : ५
श्वान बापुरा धरिन ढाकनो, बिल्ली घर में दासी : ६
कार दुकार कार करि आगे, बैल करे पटवारी : ७
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, भैसे न्याय निबेरी : ८ 

#शब्द_अर्थ : 

अनबोले ते = चुप रहने से ! काछे = हटाये ! दुन्दूर = मेंढक , तामसी , रागीट ! विषहर = विषधर , सर्प ! खवासी = चाकरी , सेवा ! श्वान = कुत्ता , आचरणहीन ! बिल्ली = अवसरपरस्त , लालची ! कार = कर्तव्य ! बैल = विवेकहीन ! पटवारी = गुरु , अधिकारी ! भैंसे = मूर्ख , तामसी ! न्याव = न्याय , फैसला ! निबेरी = करना , देना ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर इस उलटवांसी रूपक में कहते है भाई सुनो अब चोर , लुटेरे राज करने लगे है ! चरित्रहीन मायावी लोग धर्म के नाम से अधर्म बता रहे है जैसे मेंढक ने माथे पर टीका , तिलक , चंदन लगाकर धार्मिक गुरु बन बैठ गया हो वैसे जगह जगह विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पंडे पुजारी बैठे है और मेंढक की तरह आवे आव कर बुला रहे 
 है ! मेंढक राजा बन गया और सर्प ,नाग उसकी सेवा में लग गए है ! कुत्ता कहता है मैने अपनी पूंछ से पूरी धरती ढक डाली है , मेरी हो गई है जैसे तीन पाव में सारी पृत्वी वामन नाम का विदेशी बामन कहता है पर सच तो ये है कुत्ता अपनी पुंछ से अपना पिछवाड़ा तक पूरी तरह नही ढक सकता ! बिल्ली चुहोंकी दास बन गई है जैसे मूलभारतीय लोग विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पंडे पुजारी के और उनके पंडे ब्राह्मण धर्म अधर्म का भेद भी नही जानते पर तब भी पाप पुण्य , स्वर्ग नरक की बाते बताते है अनेक अनैतिक कार्य को धर्म बताकर लोगोंको ठगते है ये बैल ये मोटे भैंसे क्या न्याय दे सकते है क्या इनमे न्यायिक चरित्र है ? पूछते है कबीर साहेब ! 

कबीर साहेब पहले ही कह चुके है भाईयो चेतन राम को समझो जानो ! चेतन राम ने जीव बनाया और जीव से नारी अर्थात माया मोह इच्छा लालच अहंकार आदि दुर्गुण का जन्म हुवा ! इस सत्य को हम बताते है तो विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पुजारी हमे मारने दौड़ते है ! इन्हे सत्य पसंद नही , ये लोगोंको अज्ञानी अधर्मी बनाए रखना चाहते है ताकि इनका पेट अज्ञान पर पलता रहे ! पर ये लोग हमे मारे चाहे कुछ भी करे हम सत्यधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म बताते रहेंगे चाहे ये हमारी जान लेले , हम सत्य बोलने से नही हटेंगे ! सत्यधर्म बताकर रहेंगे क्यू की ये विवेक और लोग कल्याण की बात है ! 

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Saturday, 21 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 8 : Santo Aavai Jaay So Maaya !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ८ : संतो आवै जाय सो माया !

#शब्द : ८ 

संतो आवै जाय सो माया : १
है प्रतिपाल काल नहिं वाके, ना कहुँ गया न आया : २
का मकसूदन मच्छ कच्छ न होई, शंखासुर न संहारा : ३
है दयाल द्रोह नहिं वाके, कहहु कौन को मारा : ४
वै कर्ता नहिं बराह कहाये, धरणि धरयो नहिं भारा : ५
ई सब काम साहेब के नाहीं, झूठ कहै संसारा : ६
खम्भ फोरि जो बाहर होई, ताहि पतीजे सब कोई : ७
हरणाकुश नख वोद्र बिदारा, सो कर्ता नहिं होई : ८
बावन रूप न बलि जाँचे, जो जाँचे सो माया : ९ 
बिना विवेक सकल जग भरमे, माया जग भरमाया : १०
परशुराम क्षत्री नहिं मारे, ई छल माया कीन्हा : ११
सतगुरु भेद भक्ति नहिं जाने, जीवहि मिथ्या दीन्हा : १२
सिर्जनहार न ब्याही सीता, जल पषाण नहिं बंधा : १३
वै रघुनाथ एक कै सुमिरै, जो सुमिरै सो अंधा : १४
गोपी ग्वाल न गोकुल आया, करते कंस न मारा : १५
है मेहरबान सबहिन को साहेब, ना जीता ना हारा : १६
वै कर्ता नहिं बौद्ध कहावै, नहीं असुर संहारा : १७ 
ज्ञान हीन कर्ता के भरमें, माये जग भरमाया : १८ 
वै कर्ता नहिं भये निकलंकी, नहिं कालिंगहीं मारा : १९
ई छल बल सब माया कीन्हा, जत्त सत्त सब टारा : २०
दश अवतार ईश्वरी माया, कर्ता कै जिन पूजा : २१
कहहिं कबीर सुनो हो संतो,  उपजै खपै सो दूजा : २२

#शब्द_अर्थ : 

आवै जाय = जन्म मरण ! मकसूदन  = मधु  या मकसूद को मारने वाला कृष्ण !  पतीजै :  दया , विश्वास करना !  जांचे = मांगना ! बौद्ध = गौतम बुद्ध ! निकलंकी =  कल्कि अवतार !  कालिंगहीं = कलिंग देश का राजा , लोग !  जत्त = यती , त्यागी ! सत्त  = सत्यवती , पवित्र ! टारा = तारा , पतित करना ! दूजा = दूसरा संसारी व्यक्ति ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो परमपिता चेतन राम जो कण कण है , और ये समस्त संसार में व्यापी है वो न कभी जन्म लेता है न मरता है न अवतार लेता है न पैगंबर , दूत बन कर आता है वो चेतन राम निराकार निर्गुण अविनाशी है इसलिए न उसने दस अवतार लिए न कोई ईश्वरी किताब लिखी , न बताई , न दूत भेजे , न वेद बताए न मनुस्मृति बनाई ! 

दस अवतार , ईश्वरी वेद , ईश्वर का पुत्र ब्रह्मा , विष्णु ,रुद्र आदि सब झूठ है ! 
जीव का जन्म मरण है , मोह माया मिथ्या अहंकार लालच के कारण विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोगों ने यह दश अवतार आदि  मनगधन्त बाते बनाई है , ब्राह्मणों ने ही बलि को छला और मच्छ , कच्छ, वराह , नकली सिंह जैसे बेवकूफी भरी बाते बताकर मूलभारतीय हिन्दू धर्मी लोगोंको बरगलाते रहे !  परशुराम ब्राह्मण ने मौर्य सम्राट अशोक का नाती संप्रति के समय साकेत के पास विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का राज्य स्थापित करने की कोशिस की थी उसे संप्रति ऊर्फ सम्राट सौभोम ने मार गिराया इसलिए उसे प्रति प्रशुराम राम कहा गया ! वोभी मानव जीव था ईश्वर या उसका अवतार नही उसी प्रकार मौर्य कुल के नागवंशी कृष्ण भी केवल मानव जीव थे ! 

गौतम बुद्ध भी समता भाईचारा मानवता सदाचार शील शांति का विचार देने वाले जीव थे ईश्वरी अवतार नहीं न कलंकी अवतार न कल्कि अवतार सच है ! 

ईश्वर का अवतार लेना यह बकवास विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोगों ने भोलेभाले मूलभारतीय गैर ब्राह्मण को ठगने के लिए भ्रांतियां बनाई , उसी प्रकार ब्रह्मा विष्णु इंद्र  रुद्र आदि सभी विदेशी जीव थे जो जन्मे और खप गए , इन विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के ये ब्राह्मण अवतार कितने गिरे हुवे थे ये बता ने की जरूरत नहीं , ब्रह्मा ने खुद अपनी बेटी सरस्वती का बलात्कार किया , इतना बताना काफी है !  ईश्वर ऐसा नहीं है ! वो निराकार निर्गुण अविनाशी राम हम सब के अंतर्मन में है पर हर जीव मोह माया इच्छा अधार्मिक आदि के कारण बार बार जन्म लेता है और दुख दर्द भरी मायावी जिंदगी अधर्म के कारण जीता है मरता है ! हा ये सच है जो मर्यादा का पालन करते है सदधर्म का पालन करते हुवे मरते है वे मोक्ष , निर्वाण को प्राप्त करते है वही सदधर्म धर्मात्मा कबीर अपनी वाणी पवित्र बीजक में बताते है !  यही मूलभारतीय हिन्दूधर्म है !

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Friday, 20 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 7 : Santo kahoun to ko Patiyaai !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ७ : संतो कहों तो को पतियाई ! 

#शब्द : ७ 

संतो कहों तो को पतियाई, झूठ कहत सांच बनि आई : १
लौके रतन अबेध अमोलिक, नहिं गाहक नहिं सांई : २
चिमिक चीमिक चिमकै दृग दहूँदिशी, अर्ब रहा छिरियाई : ३
आपै गुरु कृपा कछु कीन्हा, निर्गुण अलख लखाई : ४
सहज समाधी उन्मनि जागे, सहज मिले रघुराई : ५
जह्न जहं देखो तह्न तहां सोई, मन मानिक बेधो हीरा : ६
परम तत्व गुरु सो पावै, कहैँ उपदेश कबीरा : ७ 

#शब्द_अर्थ : 

लौके = लौकिक प्राप्त , चमकता हुवा ! रतन = रत्न , चेतन राम ! अबेध = अखंड, अटूट ! चिमिक = चमक , प्रकाश , ज्ञान ! दृग = आंख , देखना ! दहुंदिश = दसों इंद्रिय ! अर्ब = धन , दौलत ,ज्ञान , प्रज्ञा! छिरियाई = फैलाना , छाजाना ! सहज समाधी = स्वरूप ज्ञान , जानकारी , प्रज्ञाबोध ! उन्मनि = प्रगट होना , ज्ञान होना ! स्वरूपाकार = वृत्ति ! रघुराईं = आत्मा राम , चेतन राम ! मन मानिक = तृष्णा रहित स्वच्छ मन ! हीरा = जीव तत्व , चेतन राम! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो मैं अपने सहज निर्मल शिलवान जीवन के कारण ही उस परम तत्व चेतन राम के मेरे अंतकरण में दर्शन किए है ! मैं शत प्रतिशत सच बोल रहा हूं पर लोग विश्वास नहीं करते और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के होमहवन से देवी देवता साक्षात सशरीर होम हवन की गाय घोड़े की बली आदि से प्रसन्न होकर ब्रह्मा विष्णु इंद्र आदि अग्नि से बाहर आकर वर देते है इस ढकोसले को , ढोंग को , झूठी असत्य नारायण पूजा को , बुत परस्ती को सच मानते है तो बड़ा अचरज और दुख होता है ! 

भाईयो चेतन राम को पाना चाहते हो देखना चाहते हो अनुभूति चाहते हो तो निर्विकार होना पड़ेगा तभी उस निर्गुण निराकार परमतत्व चेतन राम रघुराय के दर्शन इधर उधर नही खुद तुम्हारे अंतकरण में होगे ! चेतन राम चाहते हो आत्माराम चाहते हो तो मन को हीरा करो ! मैल भरा मन हीरा कैसे बनेगा ! और राम मन को विशुद्ध हीरा बनाए बगैर प्रगट नही होते ! 

मैं उस परमात्मा को पाने का सबसे आसान सरल मार्ग बता रहा हूं जो सहज सरल जीवन मार्ग है ! सहज समाधी का मार्ग है ! मूलभारतीय हिन्दूधर्म का आत्मबोध , प्रज्ञाबोध का मार्ग शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि में मूल्यों पर आधारित स्वदेशी धर्म , मूलभारतीय हिन्दूधर्म ही वो मार्ग है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्तान , शिवश्रृष्टि

Thursday, 19 September 2024

Pavitra Bijak: Pragya Bodh : Shabd : 6 : Santo Acharaj Ek Bhoun Bhari !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ६ : संतो अचरज एक भौ भारी 

#शब्द : ६ 

संतो अचरज एक भौ भारी, पुत्र धइल महतारी : १
पिता के संग भई बावरी, कन्या रहल कुंवारी : २
खसमहि छाडि ससुर संग गौनी, सो किन लेहु बिचारी : ३
भाई के संग ससुर गौनी, सासुहि सावत दीन्हा : ४
ननद भौज परपंच रचो है, मोर नाम कहि लीन्हा : ५
समधी के संग नहीं आई, सहज भई घरबारी : ६
कहहीं कबीर सुनो हो संतो, पुरुष जन्म भौ नारी : ७ 

#शब्द_अर्थ : 

पुत्र = जीव ! महतारी = माया ! पिता = जीव ! कन्या = माया ! खसम = जीव ! ससुर = श्वसुर , अहंकार! भाई = अज्ञान ! सासुर = मायावी जगत ! सासु = संशय ! सावत = सौत ! ननद भौज = राग द्वेष ! परपंच = प्रपंच ! समधी = सम विचार ! धी = बुद्धि , प्रज्ञा ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाइयों इस संसार के कोई रिश्ते नाते नही बचे है जिसके साथ माया मोह संगत नहीं करती ! हर रिश्ता चाहे वो बाप हो बेटा हो भाई हो मां बहन सास ससुर हो समधी हो सब के साथ मोहिनी बनकर लूटती है सब को मोहित कर अपने बस में करती है गुलाम करती है और शोषण करती है आपस में लड़ाती है , बैर उत्पन्न कराती है और सुख के बदले जीवन नर्क और अशांति दुख दर्द से भर देती है ! 

माया के साथी मोह अहंकार लालच तृष्णा भी टूट पड़ते है और कोई रिश्ते नाते नही बचते है ! 

जीव मालिक है , माया का पिता है , जीव ने ही माया को जन्म दिया है पर वो अपने सगे बाप जीव तक को संसार में छलने से नहीं छोड़ती तो और की बात ही क्या ? 

माया का स्वरूप जन्म और चरित्र बताने के बाद कबीर साहेब मानव जीव को माया से सावधान रहने सतर्क रहने की बात करते है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
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कल्याण , #अखण्डहिंदुस्तान , शिवश्रृष्टि

Wednesday, 18 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 4 : Santo Dekhat Jag Bouraana !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा बोध : #शब्द : ४ :  संतो देखत जग बौराना !

#शब्द : ४ : 

संतो देखत जग बौराना : १
साँच कहों तो मारन धावै, झूठे जग पति याना : २
नेमी देखा धर्मी देखा, प्रात करे अस्नाना : ३
आतम मारि पषाणहि पूजे, उनमें किछउ न ज्ञाना : ४
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़ें कितेब कुराना : ५
कै मुरीद तदबीर बतावै, उनमें उहै जो ज्ञाना : ६
आसन मारि डिम्ब धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना : ७
पीतर पथार पूजन लागे, तीरथ गर्भ भुलाना : ८
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमान : ९
साखी शब्द गावत भूले, आतम खबरि न जाना : १० 
हिन्दू  कहैं मोहिं राम पियारा, तुरूक कहैं रहिमाना : ११
आपुस में दोउ लरि लरि मूये, मर्म न काहु जाना : १२
घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना : १३
गुरु सहित शिष्य सब बूड़े, अन्त काल पछिताना : १४
कहहि कबीर सुनो हो संतो, ई सब भरम भुलाना : १५
केतिक कहों कहा नहिं माने, सहजे सहज समाना : १६

#शब्द_अर्थ : 

पतियाना = विश्वास करना ! पीर = मुस्लिमोके गुरु !  राम  = चेतन राम , राजा राम ! तुरक = तुर्की मुस्लिम धर्म ! ओंलिया = तपस्वी ! मुरीद = शिष्य ! तदबीर = युक्ति ! उहै = भ्रमपूर्ण ! डिम्ब = दंभ , दिखावा ! गुमान = घमंड ! रहिमाना =  दयालु , चेतन राम ! सहजे सहज = सरलता से ! 

#प्रज्ञा_बोध :

धर्मात्मा कबीर कहते हैं हे संतो मैने  देखा लोग धर्म जानते नही और अधर्म के पिछे  पागलों की तरह दीवाने हुवे है ! मैं सत्य कहता हू तो लोग मुझे गाली देते है मारने दौड़ते है और अधर्म को धर्म बताने वाले उन धर्मो के ठेकेदार पंडे मौलवी की झूठी बातो पर विश्वास रखते है ! मैंने इन पाखंडी पांडे पूजारी मौलवी को देखा है सबेरे उठकर नहा धोकर तयार होते है , तिलक चंदन टोपी माला गमछा आदि अपने अपने धर्म के आवरण धारण कर सबेरे सबेरे नए झूठ , नए फरेब ,  अल्ला ईश्वर के नाम से जीव हत्या के लिए तैयार रहते है ! 

देवी देवता की पत्थर पूजा और कुरान का हवाला देकर प्राणी हत्या दोनो अधर्म है ! स्वर्ग नरक , अप्सरा हूरें का भ्रम  फैलाए ये लोगों ने बड़े बड़े अपने शिष्य के हुजुम अखाड़े अड्डे बनाए है जिसके माध्यम से झूठा  मुर्खोंका अंध विश्वास भविष्य बताने का धंधा , भूत प्रेत उतरने का धंधा फंदा , संकट मोचन के लिए पूजा असत्य नारायण होम हवन आदि विवीध मार्ग इन लोगों ने भोले भाले आम लोगोंको ठगने के लिऐ बनाए है !  उपारसे ये लोग बड़े घमंडी भी होते है अपने अज्ञान को ये लोग ज्ञान कहते है ! 

कबीर साहेब कहते है हिन्दू राजा राम  को ईश्वर का अवतार मानते है और मुस्लिम मोहम्मद को अल्लाह का प्रेषित ! पर कबीर साहेब न अवतार को मानते है न कोइ  ईश्वर का दूत हैं , न ईश्वरी किताब की बतोंको वे इसे कोरी कल्पना मानते हैं ! कबीर साहेब चेतन राम मानते है , अवतारी राजा राम नही और बताते है चेतन राम घट घट है , कण कण में है समस्त संसार व्यापी है ! उसने मानव में विवेक , परख करने की शक्ति दी है उसका उपयोग करो ऐसा कबीर साहेब कहते है !  

दोनो विदेशी धर्म विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और विदेशी तुर्की मुस्लिम धर्म के लोगोके के बहकावे में मत आवो और अपना मूलभारतीय हिंदूधर्म का पालन करो यही बात कबीर साहेब कहते है !

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Monday, 16 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 3

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ३

#शब्द : ३ : संतो घर में झगरा भारी : १

साति दिवस मिलि उठि उठि लागें, पाँच ढोटा एक नारी : २
न्यारो न्यारो भोजन चाहैं, पाँचों अधिक सवादी : ३
कोइ काहू का हटा न माने, आपुहि आपु मुरादी : ४
दुर्मति केर दोहागिन मेटई, ढोटहि चाँप चपेरे : ५
कहहि कबीर सोई जन मेरा, जो घर की रारि निबेरे : ६

#शब्द_अर्थ : 

घर = शरीर , वृदय ! पांच ढोटा  = पांच इंद्रिय  नारी = वासना , इच्छा ! हटा = रोकना ! मुरादी = इच्छुक ! दोहागिन = दुर्भाग्य ! चाप = दमन !  रारी =  लोभ , माया,ज़गरा !  निबरे =  सुलझाए ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो ये मानव शरीर निरंतर इच्छा माया मोह की पूर्ति के लिऐ काम करता रहता है , पांच इंद्रिय और इच्छा उसे कभी शांति से बैठने नही देते ! आंख नाक कान जीभ और चमड़ी नित्य भोग के लिऐ माया पीछे लगे रहते है और हर कोई चाहता है माया उससे खुश हो ! पर ऐसा होता नहीं    वो अधिकाधिक स्वाद अधिकाअधिक इच्छा ही निर्माण करती है और पांच इंद्रिय मैं पहले मैं पहले की होड़ में लगे रहते है ! 

कबीर साहेब कहते है इस शरीर वृदय में जो  चाहत भरी अशांति है उससे लड़ना चाहते हो तो विवेक करना सीखना होगा , परख और ज्ञान का उपयोग कर क्या सार्थक क्या निरर्थक यह बात वृदय में बिठानी होगी ! जीवन सार्थक , सुखी करने के लिए माया मोह इच्छा पर लाजिब नियंत्रण रखना होगा और वो काम सदधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म की शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि की सिख ही कर सकती है !  बुतपरस्ती , अंधविश्वास को छोड़कर अपने अंतरमन के चेतन राम को जानना होगा ! जो ये करे वो वही मेरे प्रियजन है !

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Sunday, 15 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 1

#पवित्र_बीजक :  #प्रज्ञा_बोध :  #शब्द : १

#शब्द : १ : सन्तो भक्ति सतोगुर आनी 

नारी एक पुरुष दुइ जाया, बूझो पण्डित ज्ञानी : २
पाहन फोरि गंग एक निकरी, चहुँदिश पानी पानी : ३
तेहि पानी दुइ पर्वत बुड़े, दरिया लहर समानी : ४
उड़ी माखी तरवर को लागी, बोलै एकै बानी : ५
वह माखी को माखा नाही, गर्भ रहा बिनु पानी : ६
नारी सकल पुरुषवै खाये, ताते रहै अकेला : ७
कहहिं कबीर जो अबकी बुझै, सोई  गुरु हम चेला : ८

#शब्द_अर्थ : 

नारी =  इच्छा  , भक्ति  !  पुरुष दुइ = ज्ञान और वैराग्य ! पाहन = पत्थर , विषय मोह ! गंग = गंगा , भक्ति ! दुइ पर्वत = अहंता ममता ! दरिया : समुद्र ! संसार = समुद्र ! लहर = भक्ति , ज्ञान वैराग्य की तरंगे ! माखी = विषय !  तरवर = तरुवर , वृक्ष  , आत्मज्ञान ! एकै बानी = स्वरूप , चेतन राम की बात !  नारी = इच्छा , माया ! पुरुषवै = चेतन जीव! अकेला = असंग निराधार ! 

#प्रज्ञा_बोध :

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो  सदगुरु की संगत करो , सद्धर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करो !  असत्य , झूठा विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म   की संगत छोड़ो , पोंगा पंडित की चूगल में ना फासो ! 

भक्ति श्रद्धा रखो पर ये परख लो की वो भक्ति मार्ग आप के हित का हो , अनावश्यक उलझाने के लिये , पत्थर पूजा के लिये नही !  वैदिक सोंग धतूरे के लिए नही ! 

ये संसार इच्छा माया मोह से ग्रस्त है ,  माया मोह नाम की नारी सदैव पुरुष अर्थात सभी स्त्री पुरुष मानव के पीछे पड़ी है उसे छोड़ो तो ज्ञान की गंगा बहे ! 

सत्य मूलभारतीय हिन्दूधर्म के ज्ञान की गंगा बहेगी तो उसमे  झूठा विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का अधर्म विकृति सब डूब जायेगी! तुम शुद्ध  होकर बाहर निकलोगे और आत्म ज्ञान की ऊंचाई तक पहुच जावोगे ! अज्ञान की मक्खी उड़ जायेगी  और अंतरात्मा, चेतन राम के दर्शन होगे ! जो मोह माया नाम की इच्छा सभी मानव को अपने गुलामी में रखी है उसका कुछ नहीं चलेगा और आप मुक्त हो जावोगे , दुख मुक्त हो जावोगे ! 

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Friday, 13 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 84 : Dukh Mukti ka Marg Swadharm Mulbhartiya Hindhudharm !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ८४ : दुख मुक्ति का मार्ग स्वधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म ! 

#रमैनी : ८४

ये जियरा तैं अपने दुखहि सम्हार * जेहि दुख व्यापि रहा संसार 
माया मोह बंधा सब लोई * अल्प लाभ मूल गौ खोई 
मोर तोर में सबै बिगुर्चा * जननी गर्भ वोद्र मा सूता 
बहुतक खेल खेलें बहु रूपा * जन भंवरा अस गये बहूता 
उपजी बिनशि फिर जुइनी आवै * सुख को लेश सपनेहु नहिं पावै 
दुख सन्ताप कष्ट बहु पावै * सो न मिला जो जरत बुझावै 
मोर तोर में जरे जग सारा * धृग स्वारथ झूठा हंकारा 
झूठी आस रही जग लागी * इन्हते भागि बहुरि पुनि आगी 
जेहि हित के राखेउ सब लोई * सो सयान बाँचा नहिं कोई 

#साखी : 

आपु आपु चेते नहीं, कहोँ तो रुसवा होय /
कहहिं कबीर जो आपु न जागे, निरास्ति अस्ति न होय // ८४ //

#शब्द_अर्थ : 

लोई = धर्मात्मा कबीर की पत्नी लोई ! मूल = स्वरूप, चेतन राम ! बिगुर्च = उलझन , कठिनाई ! रुसवा = क्रोधित , असहकारी ! घृग = व्यर्थ ! हंकारा = अहंकार , झूठी शान ! आगी = दुख की अग्नि , पछतावा ! लोई = लोग , धर्मात्मा कबीर की अर्द्धांगिनी ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर उनकी धर्मपत्नी लोई को लोगोंकी दुख भरी हालत बताते हुवे कहते है हे भाई तू अपना जीव दुखो से बचा ले , ये संसार दुख और दर्द से भरा पड़ा है ! इसका कारण भी जान ले , इस दुख दर्द का कारण तुम्हारे अज्ञान मोह माया अहंकार और अधर्म में ही है ! 

संसार में मेरा तेरा का राज चल रहा है , एक को सब कुछ चाहिए उसकी लालच की कोई सीमा नहीं दूसरा इसीमे शोषण का शिकार हो रहा है और वो भी सुख के लिए छटपटा रहा है जो उसे नही मिल रहा इस लिए दुखी है ! पूरा संसार दुख से भर गया है और जीव अपने मूल स्वरूप चेतन राम को भूलकर कभी न पूरी होने वाली तृष्णा के पीछे भाग कर बार बार जन्म मृत्यु के फेरे में फस गए है ! जन्म फिर पाप भरा वैदिक ब्राह्मणधर्म फिर मृत्यु फिर मृत्यु फिर जन्म ऐसा कुचक्र चल रहा है ! 

बहुतेक लोग इस संसार का मूलधर्म सत्य मूलभारतीय हिन्दूधर्म की शिक्षा भूल गए है जो बताती है की भाईयो ये संसार में चेतन राम निर्वाण अवस्था यानी निर्गुण निराकार अविनाशी अवस्था में विद्यमान है पर साथ साथ वो हम सब में स्वरूप मूलधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म के सत्य स्वरूप में जग व्याप्त है जो उस चेतन राम के सत्य के मार्ग से चलेगा , मूलभारतीय हिन्दूधर्म के शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित आदिधर्म सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक दृष्टि का मूलभारतीय हिन्दूधर्म मार्ग पर चलेगा वो माया मोह तृष्णा अहंकार अज्ञान मुक्त होकर इन सब के कारण उत्पन्न हुवे जन्म मृत्यु के फेरे और पाप के कारण उत्पन्न दुख दर्द से बचेगा !

धर्म छोड़ कर अधर्म विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के पीछे भागने वाले और तुर्क से आया नए धर्म के पीछे भागने वाले सभी लोगोंको कबीर साहेब सावधान करते हुवे कहते है झूठी आशा ना करो , ब्रह्मिणोका स्वर्ग और तुर्क का जन्नत सब झूठा है सब बकवास है , सुख दुख यही है और जीव को है , आत्मा को नही ! इसी जीवन में जीव सत्यधर्म का पालन कर दुख मुक्त हो सकता है , बच सकता है , कम कर सकता है और वही मार्ग मैं लोगोंको बता रहा हूं ! 

कबीर साहेब कहते हैं भाई मैं आपको जगाने आया हूं , वैदिक अधर्म छोड़ दो तुर्की मार्ग भी ठीक नही ! अपना मार्ग स्वदेश का मूलभारतीय हिन्दूधर्म ही है वही सर्वश्रेष्ठ है , श्रेयस्कर और पालन योग्य है जो तुम्हे दुखो से मुक्ति देगा ! 

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Thursday, 12 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 83 : Nam Swadeshi , Kam Videshi !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ८३  :  नाम स्वदेशी काम विदेशी !

#रमैनी : ८३

क्षत्री करे क्षत्रिया धर्मा * सवाई वाके बाढ़े कर्मा 
जिन अवधु गुरु ज्ञान लखाया * ताकर मन ताहि ले धावा 
क्षत्री सो जो कुटुम सो जूझई * पाँची मेटि एक कै बुझई 
जीव मारी जीव प्रतिपारे *  देखत जन्म आपनो हारे 
हाले करे निशाने घाऊ * जूझी परे तहाँ मन्मथ राऊ 

#साखी : 

मन्मथ मरै न जीवै, जीवहि मरण न होय /
शून्य सनेही राम बिनु, चले अपन पौ खोय // ८३ // 

#शब्द_अर्थ : 

क्षत्रिया धर्मा = युद्ध , शिकार , संहार !  अवधू = संन्यासी , त्यागी !  कुटुम = कुटूम्ब , पांच इंद्रिय का शरीर ! एक = जीव ! हाले = अति जलद ! घाऊ = घाव , चोट !  मन्मथ = मन के विकार  ! अपन पौ  = स्वभाव , अपनापण , अहंकार !  राऊ = मालिक , राजा ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पंडितोंने अपने स्वार्थ के लिए और अपने सब से ऊंचे स्थान के लिए वर्ण जाति उचनीच विषमता अस्पृश्यता आदि अमानवीय विकृत व्यवस्था बनाई ! यहाँ के मूलनिवासी राजकुल वर्ग , गणराज प्रतिनिधि वर्ग को अलगकर मूलभारतीय की एकता तोड़ दी !  इस वर्ग को विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग क्षत्रिय यानी क्षेत्र के लोग , मूलभारतीय लोग तो कहते रहे , स्थानीय लोग बताते रहे , खातेदार खत्री ,  भूमिपुत्र , भूमिहार बताते रहे पर अपने से नीचे का वर्ग बनाया उसे जनेऊ , उपनयन होमहवन , हव्य में हिस्सा , प्राणी हत्या , लड़ने का अधिकार , राज चलाने का अधिकार माना पर वैदिक पूजा और धर्माचार्य बनाने पर रोक लगा दी , वो कभी ब्राह्मण , ब्राह्मण धर्माचार्य नही बन सकते यह स्पष्ट किया ! 

मूलभारतीय समाज का गणराज्य के प्रतिनिधि वर्ग आज की तरह ही अपना मूल समतावादी सनातन पुरातन सिंधू हिंदू संस्कृति के पूर्व से चला आ रहा मूलभारतीय लोकधर्म हिन्दूधर्म की शिक्षा भूलकर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोगोंके पंडित के भुलावे में फस कर अपने को स्थाई दूसरा वर्ण  स्वीकार किया ! और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के ब्रह्मिनोकी गुलामी अधिपत्य मान लिया मूलभारतीय हिन्दू धर्म की  एकता व्यवस्था तहसनहस कर वर्ण जाति की बंद चौकट मान्य की ! 

क्षत्रिय को यही बताया गया की यही उनका उत्तम धर्म है ब्रह्मिनोकी गुलामी और ब्राह्मण वैदिक धर्म की रक्षा यही उनका उत्तम धर्म है जो उनको आगे कीर्ति और स्वर्ग का उत्तराधिकारी बनाता है !  जैसे विदेशी पंडितों ने बताया सिखाया यहां के गणराज्य के प्रतिनिधि ने माना , गणराज्य समाप्त हुवे , राजशाही , एकाधिकार , हुकुमशाही आई ! 

दूसरा वर्ण मान्य कर क्षत्रिय ये भी भूल गया की वो अपने सगे रिश्तेदार व्यापारी , किसान , कामगार का भी शोषण करता रहा और मूलभारतीय हिन्दूधर्म को हानी पहुचकार विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म की सेवा चाकरी करता रहा ! वो कोल्हू का बैल बन बैठा , उसके अंदर का चेतन राम  भूल गया , अपना मानव जीवन उद्देश भूल कर स्वर्ग जाने के बजाय जल्दबाजी में वो नर्कवासी हो गया ! अपना ही पुण्यशील , अमृतवृक्ष मूलभारतीय हिन्दूधर्म के डाली पर विषवृक्ष की डाल का पोषण रक्षण करता रहा ! 

वर्ण जाति स्थापित करने के लिए मूलभारतीय  कुलाचार , कुल , कुलदेवता की अड़चन को दूर करने के लिए स्थाई गोत्र और उसके लिए गोत्र के ब्राह्मण पंडे पुजारी के कुछ पंडे के नाम आगे किए गए जैसे वशिष्ठ आदि   , जन्म कुंडली , मुहूर्त , नाम आदि का अवडंबर किया गया उसमे वर्ग , वर्ण गोत्र गुसाए गए पूरे मूलभारतीय हिन्दू समाज की इनके इस मकड़ी जाल फसाकर इनका खून विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पुजारी पीते रहे , इनके खून पसीने की कमाई पर विदेशों यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पंडे पुजारी पलते रहे !

क्षत्रिय अपना घर कुटुम्ब भूल गया , विदेशी को अपना समझा , उसकी सेवा चाकरी जी हुजूरी में लग गया आगे विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के पंडितोंने  राज प्रतिनिधि के बाद का व्यापारी वर्ग को इसी प्रकार तोड़ कर वैश्य वर्ण बना दिया ! जो गणराज्य , लोकशाही के समर्थक थे उनको समाज , शहर से भगाकर अछूत बनाया गया , बताया गया ! बहुसंख्य किसान कामगार सैनिक , खेत मजदूर , छोटे कारागीर पर वही काम करते रहने की जाती वर्ण व्यवस्था ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य त्रि वर्ण के लोगोंने अपने हित और एकाधिकार की रक्षा के लिए थोपा !  वर्ण जाति अस्पृश्यता विषमता भेदाभेद का अधर्म विकृति हिंदुस्तान पर छा गई ! देश टूट गया समाज टूट गया , मूलभारतीय हिन्दूधर्म टूट गया केवल नाम बाकी रहा , मसाला विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म का भरा गया , पुरानी बोटल में पुराने सनातन हिंदूधर्म के नाम से नया जाति वर्ण अस्पृश्यता विषमता का विष उसमे भर कर अमृत अमृत कहकर लोगो को पिलाया गया ! 

धर्म की हानि हुवी तब महावीर , बुद्ध , कबीर नानक और कितने ही अन्य सद्धर्मी लोग विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के खिलाफ उठ खड़े हुवे , उनमें बौद्ध धर्म के मौर्य कुल नाग वंश के राजा राम और कृष्ण भी थे , मूलभारतीय हिन्दूधर्म के भगवान शिव ने और उसके बाद उसके अन्य धर्मगुरु जननायक शिव , शंकर,  महादेव आदि असंख्य ज्ञानी लोगों बताया भाई मूलभारतीय हिन्दूधर्म और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म अलग अलग है ! कबिर साहेब यही बात यहां बता रहे है !

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Wednesday, 11 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 82 : Sukh Dukh Pap Punya Jati Varn se nahi !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ८२ : सुख दुख पाप पुण्य माया मोह से वर्ण जाति से नही !

#रमैनी : ८२

सुख के वृक्ष एक जगत्र उपाया * समुझी न परलि विषय कछु माया 
छौ क्षत्री पत्री युग चारी * फल दुइ पाप पुण्य अधिकारी 
स्वाद अनन्त कछु वर्णी न जाई * करि चरित्र सो ताहि समाई 
जो नटवट साज साजिया * जो खेलै सो देखै बाजिया 
मोहा बापुरा युक्ति न देखा * शिव शक्ति विरंचि नहिं पेखा 

#साखी : 

परदे परदे चलि गई, समुझी परी नहिं बानि /
जो जानै सो बांचिहैं, नहिं तो होत सकल की हानि // ८२ //

#शब्द_अर्थ : 

जगत्र = जगत, दुनिया ! छौ क्षत्री = छ चक्रवर्ती पुरातन राजे शिवि पृथु आदि ! पत्री = पुस्तक , किताब बचाने वाले ! युगचारी = चार युग के जानकार ! अधिकारी = योग्य व्यक्ति ! चरित्र = आचरण ! नटवट = अभिनेता , नौटंकी ! साज = बाजा , श्रृंगार आदि ! बाजिया = करतब ! बापुरा = बेचारा ! युक्ति = विचार ! पेखा = देखा ! परदे परदे = मोह माया के भीतर ! बानि = आदत , स्वभाव ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म द्वारा लोगोंको यह बताया जाता है की संसार में सुख और दुख है , पाप और पुण्य है और वर्ण जाति के अनुसार कार्य का फल मिलता है ! असमान फल , पुण्य पाप सुख दुख वर्ण जाति वेवस्था अनुसार ही होता है यह वैदिक ब्राह्मणधर्म मान्यता है जिसको धर्मात्मा कबीर खारिज करते हुए कहते है मानव बहुतसारी मनगढ़न बातो को मानता है और उसमे उलझ गया है इससे बड़े बड़े दिग्गज और चक्रवर्ती राजे भी बचे नही ! 

विदेशी वैदिक यूरेशियन ब्राह्मनोने गलत सलत पोथी पुराण , वेद मनुस्मृति लिख कर वही उनको पढ़ सकते है, वही उनके अर्थ के जानकार और अर्थ बताने के अधिकारी है कह कर यहाँके मूलभारतीय हिन्दूधर्मी समाज को वर्ण जाति अनुसार असमान अधिकार , असमान पाप पुण्य के मनमाने वेवहार में फसा दिया और किताब , कानून धर्म और मान्यता परम्परा आदि का हवाला देते हुए मूलभारतीय लिगोंका शोषण करते रहे ! ये बहुरूपिए नौटंकीबाज ब्राह्मण पंडा पुजारी से सावधान करते हुवे कबीर साहेब कहते है भाईयो सुख दुख का कारण संसार में कार्यरत माया मोह तृष्णा है वर्ण व्यवस्था के अनुसार नही ना वर्ण जाति की धर्म में कोई जरूरत ! 

कबीर साहेब कहते मोह माया की परते आंखो पर पड़ी है जिस कारण मानव अधर्म धर्म की परख नही कर पा रहा है ! जो इन माया मोह से बाहर निकलेगा वह विकृत वैदिक ब्राह्मण अधर्म भी छोड़ देगा तब दुख से बचेगा ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्तान

Tuesday, 10 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 81 : Charitrahin Vaidik Brahman Dev Rishi Guru Raja !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ८१ : चरित्र हीन वैदिक ब्राह्मण देव , ऋषि, गुरु , राजा !

#रमैनी : ८१

देव चरित्र सुनहु हो भाई * जो ब्रह्मा सो धियेउ नसाईं 
दूजे कहों मंदोदरि तारा * जेहि घर जेठ सदा लगवारा 
सुरपति जाय अहिल्या छरी * सुर गुरु घरणी चंद्रमें हरी
कहहिं कबीर हरि के गुण गाया * कुन्तीहि कर्ण कुंवारेहि जाया 

#शब्द_अर्थ : 

ब्रह्मा = विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का संस्थापक ! चरित्र = आचरण ! धियेउ = पुत्री ! लगवारा = जार ! सुरपति = देवो का राजा इंद्र ! गुरु = वैदिक ब्राह्मण गुरु बृहस्पति ! घरणी = गृहस्थी , पत्नी ! हरि = वैदिक ब्राह्मणधर्म का एक देवता विष्णु या सूर्य !  

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो सुनो उन विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के तथाकथित देव , ऋषि , गुरु और राजा के चरित्र , कारनामे जो कुख्यात है ! खुद ब्रह्मा जिसने विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और वेद का निर्माता माना जाता है उसने खुद उसकी बेटी सरस्वती का बलात्कार किया बीवी बनाई ! उनसे नाजायज औलादे हुवि जिन्हे ब्राह्मण या बास्टर्ड भी कहा जाता है ! 

विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म का एक राजा ब्राह्मण रावण जिसे ये लोग वैदिक धर्म का महापंडित कहते है अपने भाई विभीषण की पत्नी मंदोदरी का जार या अवैध पति बन उसका शोषण करता रहा !

वैदिक ब्राह्मणधर्म के ब्राह्मण राजा जिसे इंद्रदेव कहा जाता है उसने ब्राह्मण ऋषि अत्रि कि पत्नी अहिल्या को उसके पति का स्वांग रचकर धोखे से उसका पवित्र नष्ट किया उसे जीत जी शर्म से मार डाला ! विदेशी विष्णु ने मूलभारतीय राणी वृंदा का सतीत्व को तहस नहस कर दिया !

ब्राह्मणोंके एक और देव चंद्रमा ने अपने ही गुरु कि पत्नी का बलात्कार उसकी घर में घुस कर किया ! 

ये तो कुछ नमूने हुवे विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के ब्राह्मण देवो के यहां की विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के देव लोगों ने यानी ब्रह्मा , विष्णु यानी अग्नि और रुद्र इन तीन लोगों ने एकसाथ अनुसाया से बलात्कार कर दत्तात्रय नाम के ब्राह्मण देव को निर्माण किया जो शर्म के मारे पागलों की तरह भटकता रहा ! 

मूलभारतीय धर्म संस्कृति में मातृ शक्ति , मातृप्रधान व्यवस्था का बड़ा प्रभात रहा है जो आज भी दक्षिण भारत में पाया जाता है , महाभारत की शुरुवात भी मत्शगंधा यानी कोलिय वंश से होती है जो मुलता नागवंशी ही थे ! और मां के नाम से शान से लोग अपनी पहचान बताते थे जैसे पार्वतेय , कुंतेय , यशोदानंदन इत्यादि !

विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के देवो की इतनी चरित्र हीनता को छुपाने के लिए आगे उन्होंने महाभारत में झूठी कहानी घुसेड़ दी कुंती को कुंवारी रहते सूर्य के मंत्र से कर्ण नाम का पुत्र हुवा जब की मूलभारतीय स्त्री अपने पहले मूलभारतीय पति से विभक्त होकर दूसरे शादी की आम बात थी ! मूलभारतीय पांडु से हुवे पुत्रोंको विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के देवो के पुत्र बताकर इतिहास का चरित हरण किया !

कबीर साहेब विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के देव , ऋषि , गुरु , राजा सब को चरित्र हीन , गिरे हुवे लोग बताते है और उनके वैदिक ब्राह्मणधर्म को अधर्म और विकृति मानते है ! क्या कोई अधर्म विकृती का पालन कर कोई सुखी , दुख मुक्त हो सकता है ? 

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Monday, 9 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 80 : Ishwar ,Chetan Ram tumhare hi pas !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ८० : ईश्वर , चेतन राम अपने पास ही !

#रमैनी : ८०

बहुतक साहस करू जिये अपना * तेहि साहेब से भेंट न सपना 
खरा खोटा जिन नहिं परखाया * चाहत लाभ तिन्ह मूल गमाया 
समुझी न परलि पातरी मोटी * ओछी गांठी सबै भी खोटी 
कहहिं कबीर केहिं देहो खोरी * जब चलिहो जिंज़िं आसा तोरी 

#शब्द_अर्थ :

तेहि साहेब = चेतन राम , परमपिता ! खरा = सत्य ! खोटा = असत्य ! मूल = मानवता , स्वरूप ! पातरी = पतली, मन की कल्पना ! मोटी = जाड़ी , माया ! ओछी = तुच्छ ! गांठी = मानसिक पक्का विचार, आसक्ति ! खोटी = सदोष ! खोरी = खोटी , झूठी ! जिजिं = अदृश माया , मोह ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है बहुत सारे लोग ईश्वर प्राप्ति के लिऐ अजीब अजीब तरीके आजमाते है जैसे की यहां में आ बसे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग कहते है होम हवन करें , होमहवन के अग्नि कुंड में उसे जलाने के लिए घी अनाज डालते रहें , गाय घोड़े का बलि दे , सोमरस अर्पण करे तो स्वयं ब्रह्मा , इंद्र इत्यादि देवता खुद सशरीर अग्नि कुंड से निकलकर साक्षात प्रगट होते है और ईश्वर की भेट होती है इच्छित वरदान मिलता है आदि आदि पर कबीर साहेब कहते है भाई ये सब झूठ है ऐसा तो सपने में ही हो सकता है वास्तविकता में नही ! 

ये विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पंडे पुजारी ब्राह्मण न केवल खुद भ्रम में जीते है जगत में झूठ और अंधविश्वास फैलाते है , इन्होंने बड़े बड़े भ्रम मन में पाल रखे है और वो झूठ और मक्कारी के सहारे उस परमपिता चेतन राम के दर्शन करना चाहते है जो वास्तव में हर एक कण कण में घट घट में पहले ही है पर माया मोह अहंकार अज्ञान अधर्म कुसंस्कार विकृति के ब्राह्मणी जीवन मार्ग के कारण दिखाई नहीं देता है ! 

कबीर साहेब कहते हैं भाई मन के मैल को बहार करो मन के विकारोंको मन से बाहर निकालो , मन शुद्ध निर्मल करो और मूलभारतीय हिन्दूधर्म के शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक दृष्टि का अपना धर्म सदधर्म का पालन करो , न तुर्की धर्म की जरूरत है न वैदिक ब्राह्मणधर्म की , ईश्वर हमारे पास ही है ! चेतन राम हमारे संग ही है जब तक जिन्दा हो तुरंत पहचान लो नही तो बिना जाने ही मर जावोगे और अंतिम समय पछताओगे ! 

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Sunday, 8 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 79 : Adharma se Trishna badhati hai ,Dharm se Mitati hai !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ७९ : अधर्म से तृष्णा बढ़ती है धर्म से मिटती है !

#रमैनी : ७९

बढ़वत बढ़ी घटावत छोटी * परखत खरी परखावत खोटी 
केतिक कहों कहां लौं कहों * औरो कहाें पड़े जो सही 
कहे बिना मोहि रहा न जाई * बिरही ले ले कुकुर खाई

#साखी : 

खाते खाते युग गया, बहुरि न चेतहु आय /
कहहि कबीर पुकारि के, ये जीव अचेतहि जाय // ७९ //

#शब्द_अर्थ :

खरी = सत्य ! खोटी = असत्य ! बिरही = विरही, बिछुड़ा ! कूकुर = कुत्ता , मन ! खाते खाते = जीते जीते , अनेक जन्म ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है इस जिंदगी में हम इच्छा वासना लोभ की पूर्ति करते करते दिन रात खपते है , कस्ट करते रहते है पर इच्छा तृष्णा ये है की कभी मन भरता ही नही , हम उसके पीछे दौड़ते रहते है ऐसे कितने ही जन्म और युग बीत जाते है पर हम चेतते नही ! 

कबीर साहेब कहते हैं भाईयो मैं तुम्हे एक बहुत ही बड़ी बात बताता हूं और वो है इच्छा बढ़ाओ तो वो बढ़ते ही रहती है और कम करो तो कम होती है छोड़ दो तो छूट जाती है ! बस मन में चेतन राम के स्वरूप को जानने की देरी है ! 

कबीर साहेब कहते हैं राम स्वरूप को जानना आसान है बस शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सत्य सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करो तो इच्छा तृष्णा मोह कम कम होते होते छूट जाते है और आत्म स्वरूप चेतन राम के दर्शन होते है भवसागर छूट जाता है ! भवसागर के दुखो से मुक्ति मिलती है , मोक्ष निर्वाण प्राप्त होता है ! कबीर साहेब कहते है भाई मैं चेताने का काम करता हूं , वो सत्यधर्म का रास्ता बताता हूं ! 

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Thursday, 5 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 75 : Kabir Saheb kahate hai Chetan Ram Avtar nahi leta !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ७५ : कबीर कहते है चेतन राम अवतार नही लेता !

#रमैनी : ७५

तेहि साहेब के लागहु साथा * दुइ दुख मेटि के होई सनाथा 
दशरथ कुल अवतारि नहिं आया * नहिं लंका के राव सताया 
नहिं देवकी के गर्भहि आया * नहीं यशोदा गोद खेलाया 
पृथ्वी रवन धवन नहिं करिया * पैठि पताल नहीं बलि छलिया 
नहिं बलिराजा सो मांडल रारी * नहिं हरणाकुश बधल पछारी 
बराह रूप धरणी नहिं धरिया * क्षत्री मारि निक्षत्रि नही करिया 
नहिं गोबर्धन कर गहि धरिया * नहिं ग्वालन संग बन बन फिरिया 
गंडुकी शालिग्राम नहिं कुला * मच्छ कच्छ होय नहिं जल डोला 
द्वारावती शरीर नहिं छाड़ा * ले जगन्नाथ पिंड नहिं गाड़ा 

#साखी : 

कहही कबीर पुकारि के, वै पंथे मति भूल /
जेहि राखेउ अनुमान कै, सो थूल नहीं अस्थूल // ७५ //

#शब्द_अर्थ : 

साहेब = स्वामी , चेतन राम , परमात्मा , कबीर ! साथा = संगत ! दुइ दुख = खानी वाणी ! थूल = सुक्ष्म ! सनाथा = कृतार्थ ! राव = राजा रावण ! रवन = रमण ! धवन = दौड़धूप , युद्ध ! कुला = तट ! मच्छ = मच्छाअवतार ! कच्छ = कच्छ अवतार ! द्वारावती = द्वारका ! थुल = स्थूल ! अस्थूल = सुक्ष्म ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते भाईयो उस परमात्मा चेतन राम की संगत करो जो राग द्वेष रहित है , वो तुम्हारे भीतर ही सद्गुण शील सदाचार भाईचारा समता मानवता के रूप में है ! 

कबीर साहेब कहते है भाईयो जो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पंडे पुजारी ने जनावर , विदेशी ब्राह्मण के नीच नेता और मूलभारतीय के कुछ सतपुरुष को इकठ्ठा कर विष्णू के दस अवतार का जाल बुना है जिसमे यहां के मूलभारतीय हिन्दूधर्मी लोग उलझकर रह गए है ! उसको बेनकाब करते हुवे कबीर साहेब कहते है चेतन राम , परमात्मा कोइ अवतार नही लेता ! अवतारवाद को खारिज कर कबीर साहेब कहते है जो मच्छ और कच्छ है वे पानी के जलचर है उनमें न मानवीय गुण है न शील सदाचार का कोई लक्षण ना धर्म अधर्म की पहचान है ! उसी प्रकार जो वराह और सिंग अवतार है वे भी केवल जानवर है उनमें भी कोई धर्म अधर्म शील सदाचार की पहचान नहीं ! राजा बलि को ठगने वाला विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का एक वामन नाम का ठग, झूठा , लुटेरा था जिसने बलि राजा को अपने विदेशी वैदिक ब्राह्मण कुनबे के लिए कुछ जमीन मुफ्त में याचना कर मांगी और दयालु राजा बलि ने थोड़ी जगह उसे दी जो ये विदेशी वैदिक ब्राह्मण वामन विस्तार करता रहा और दान में मिली मुफ्त की जमीन को अपनी बताता रहा ! 

कबीर साहेब ने मूलभारतीय हिन्दूधर्म के प्रतापी लोग , सत पुरुष जैसे मौर्य सम्राट दशरथ के उत्तराधिकारी कुणाल पुत्र और दशरथ प्रिय राम उर्फ संप्रति को महान और मर्यादा पुरुषोत्तम , श्रेष्ठ पुरुष जरूर माना जिसने आज के अयोध्या के पास ब्राह्मण राज निर्माण करने की कोशिश कर रहे परशुराम ब्राह्मण रावण को लड़ाई में हराकर मार डाला वैसे ही नाग यदुवंशी कृष्ण को भी सतपुरुष माना जिसने मूलभारतीय हिन्दूधर्म पर विदेशी ब्राह्मणों का वर्चस्व स्थापित होने नही दिया और मुलभारतीय हिन्दूधर्म के ज्ञान भक्ति और कर्म मार्ग को परिभाषित किया ! इसी प्रकार बुद्ध और अन्य मुभारतीय सदपुरुष को धर्मात्मा कबीर में महान माना पर विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के लंपट विष्णु के अवतार नही ! 

कबीर साहेब कहते है चेतन राम ऐसे कोई अवतार नही लेता जो संसार में जन्म लेते है वे धार्मिक अधार्मिक अपने विचार और व्यवहार आचरण से होते है ! वैदिक ब्राह्मणधर्म ये विचार कृति से अधर्म है और मूलभारतीय हिन्दूधर्म शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित धर्म है ! मूलभारतीय हिन्दूधर्म और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म अलग अलग है !

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#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ७४ :  शुद्धि विकार छोड़ने से ही , पानी अग्नि से नही !

#रमैनी : ७४

तहिया होते गुप्त अस्थूल न काया * न ताके सोग ताकि पै माया
कंवल पत्र तरंग एक माहीं * संगहिं रहै लिप्त पै नहीं 
आस ओस अंड मा रहई *  अगणित अंड न कोई कहई 
निराधार आधार लै जानी * राम नाम ले उचरी बानी
धर्म कहै सब पानी अहई * जाती के मन पानी अहई 
ढोर पतंग सरे घरियारा * तेहि पानी सब करैं अचारा 
फंद छोडि जो बाहर होई * बहुरि पंथ नहिं जेहै सोई 

#साखी : 

भरम का बांधा यह जग, कोई न करै विचार / 
एक हरि की भक्ति जाने बिना, भौ बूडि मुवा संसार // ७४ //

#शब्द_अर्थ : 

तहिया = गर्भ के प्रारंभ काल में ! ताके = जीव के ! पै = परंतु ! माया = वासना! आस = वासना ! ओस = माता कर रज !  अंड = पिता का वीर्य ! निराधार = शुद्ध चेतन राम !  उचरी = उच्चारण करना !  धर्म = मूलभारतीय हिन्दूधर्म !  पानी = जल ! ढोर  = पशु ! पतंग = पक्षी, कीड़े !  घरियारा = मगरमच्छ , घड़ियाल ! फंद = बंधन ! जोहै = देखना ! हरि = चेतन राम ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है चेतन राम कण कण में सर्वत्र व्याप्त विद्यमान है वो पिता के वीर्य और माता के अंड में भी है और उसके निर्मित के पहले मां और पिता रूप में भी है ! स्थूल अस्थूल सभी अवस्था में चेतन राम है !  अगणित अंड पिंड के रूप में वह है ! जो वासना माता पिता में रहती है वही वासना इच्छा माया मोह अंड पिंड में भी रहती है उसकी उस समय स्वतंत्र अहमियत नहीं रहती पर गर्भ में माता का पिंड और पिता का अंड  वीर्य मिल जाता है तो दोनो का एक अलग अस्तित्व और जाणिव और वासना काम करने लगती है ! 

जिस प्रकार  कमल पत्र तालाब में रहते  हुवे भी जल के तरंग से अलिप्त रहता है वैसे ही चेतन राम निर्विकार निर्लेप भाव से संसार में रहता है जीव ने संसार में मोह माया इच्छा के बंधन में स्वयं को बंधन में रखा है वो चाहे तो अपने को बंधन मुक्त कर निर्लेप निर्गुण निराकार अविनाशी चेतन राम के स्व स्वरुप का पा सकता है पर माया वासना का बंधन ये है की कभी छूटता नही , कोई बिरला ही इसमें सफल होकर स्वरूप  चेतन राम रूप को प्राप्त होता है जैसे परमात्मा कबीर !  

कबीर साहेब कहते है मुक्ति केवल वासना , माया , इच्छा , मोह,  तृष्णा , चाहत को छोड़ कर ही मिल सकती है  शील सदाचार के मार्ग पर चलकर मोह माया वासना को पहचाना जा सकता है !

कबीर साहेब कहते है विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म में आग्नि , होम हवन , पानी तर्पण अर्पण शुद्धि पाप मुक्ति आदि में इनका उल्लेख किया है जो सब बेकार है न अग्नी पाप जला सकती  है न पानी पाप धो सकते है ! जिस पानी में किट पतंग जनावर मगर रह कर मर जाते है वो पानी कैसे पाप धो डालेगा ?  कबीर साहेब ब्राह्मणधर्म को अंधश्रद्धा और अज्ञान , विकृति अधर्म का पिटारा मानते है इसे वो धर्म नही अधर्म मानते है और मूलभारतीय हिन्दूधर्म से अलग ! 

मूलभारतीय हिन्दूधर्म और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म अलग अलग है यही बात धर्मात्मा कबीर यहा लोगोंको समझाते हैं ! 

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Wednesday, 4 September 2024

Mulbhartiya Hindhudharm ke Mahan das Avatari Pujyaniy Mahapurush !

#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_के_महान_दस_अवतारी_पुज्यनीय_महापुरुष : 

१ . #भगवान_शिव : 
नेटिव भगवान शिव ने विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के संस्थापक ब्रह्मा का सर काट लिया ! वर्ण जाति वेवस्था उचनीच , अस्पृश्यता , विषमता , लिंग भेद को , रंग भेद को विरोध कर समता स्थापित की !

२ . #महावीर :
नेटिव भगवान महावीर ने विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के वर्ण जाति , उचनीच , भेदाभेद , विष्णु ब्रह्मा आदि देवी देवता नकार कर मूलभारतीय हिन्दू धर्म का समता शील अहिंसा का मार्ग प्रशस्त किया !

३ . #बुद्ध :
भगवान बुद्ध ने विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के जाति वर्ण अस्पृश्यता विषमता शोषण के विकृत धर्म संस्कृति , प्राणी हत्या होम हवन आदि अधर्म को नकार कर मूलभारतीय हिन्दूधर्म के पंचशील का मार्ग प्रशस्त किया !

४ . #राम : 
नेटिव नाग मौर्य वंशी भगवान राम ने अहंकारी विदेशी वैदिक ब्राह्मण को और उसके भाई कुंभकर्ण , बेटा मेघनाथ आदि अनेक वैदिक ब्राह्मणधर्म के ब्रह्मिनोको उनके कुकर्म की सजा दी और मूलभारतीय हिन्दूधर्म की मर्यादा की रक्षा की , जाती भेद , अस्पृश्यता , स्त्री मुक्ति और प्रतिष्ठा दिलाई !

५ . #कृष्ण : 

 नेटिव नाग यदु वंशी भगवान कृष्ण ने मूलभारतीय हिन्दूधर्म की व्यापकता को पुर्नस्थापित कर ज्ञान , भक्ति , कर्म मार्ग का विश्लेषण कर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के ब्रह्मिनोको बताया की नेटिव लोग ही उनके मूलभारतीय हिन्दू धर्म के ज्ञानी है , विदेशी ब्राह्मण नही , उसने भीष्म , विदुर , युद्धिस्थर आदि को धर्मात्मा और धर्मज्ञानी बताया और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के अस्वस्थामा को उसके अधार्मिक अधमी कृति के लिए उसके खोपड़ी में छेद कर मार डाला !

६ . #कबीर : 
धर्मात्मा कबीर ने विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के वर्ण जाति विषमता अस्पृश्यता , अवतार आदि प्रत्यारोपित विषधर्म की डार जो मूलभारतीय हिन्दूधर्म के अमृत वृक्ष पर विदेशी ब्रह्मिनोने प्रत्यारोपित किया उसको हटा कर मूलभारतीय हिन्दूधर्म और विदेशी यूरेशियन ब्राह्मणधर्म अलग अलग है यह विचार पुर्नस्थापित कर मूलभारतीय हिन्दूधर्म को अपनी वाणी पवित्र बीजक में मूलभारतीय हिन्दूधर्म का एकमात्र शुद्ध धर्मग्रंथ वाणी रूप में अर्जित किया और मूलभारतीय हिन्दूधर्म पुर्नस्थापित किया !

७ . #नानक :
नेटिव गुरु नानक देव ने नेटिव धर्मात्मा कबीर के नक्शे कदम पर चलते हुवे और अन्य साधु संतो के मूलभारतीय हिन्दूधर्म के तत्व लेते हुवे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म को ठुकरा दिया जनेऊ , होमहवन , ब्राह्मण पंडा पुजारी , जाती वर्ण व्यवस्था उचनीच सब को खारिज कर कबीर सिख पर सिख मार्ग और मूलभारतीय हिन्दूधर्म विचार प्रशस्त किया !

८ . #शिवाजी :

नेटिव हिरो छत्रपति शिवाजी महाराज ने विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म से हुवा अपना पहला राज्यारोहन समारंभ को स्वयं खारीज कर जनेऊ उतरकर फेक दिया और धर्मात्मा कबीर के मूलभारतीय हिन्दूधर्म के अनुयाई निश्चलपुरी गोसाई के हाथो अपना दूसरा राज्याभिषेक धर्मात्मा कबीरवाणी पवित्र बीजक के दोहे गाकर किया और मूलभारतीय हिन्दूधर्म को राज मान्यता प्रदान की ! पवित्र बीजक को मूलभारतीय हिन्दूधर्म का एकमात्र धर्मग्रंथ माना और उसके प्रचार प्रसार के लिए कबीर पंथी लोगोका समूह निर्माण किया , महात्मा गांधी , डॉक्टर आंबेडकर के माता पिता इसी कबीर पंथ से थे जो शिवाजी महाराज की प्रेरणा से महाराष्ट्र , कर्नाटक , गुजरात में स्थापित हुवी जो जाति वर्ण , वेद भेद , मनुस्मृति , जनेऊ होमहवन आदि नकार कर मूलभारतीय हिन्दूधर्म का प्रचार प्रसार कर रहे थे , शिवाजी महाराज ने विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के ब्राह्मणों का वध किया जीसमें भास्कर कुलकर्णी आदी थे ! मूलभारतीय हिन्दूधर्म के कबीरवाणी बीजक का बढ़ता प्रभाव देख कर विदेशी यूरेशियन ब्राह्मणधर्म के ब्राह्मणों पहले शिवाजी महाराज , तुकाराम महाराज,फिर संभाजी महाराज और और उनके वंशज का छल कपट कर खून किया और बंदी बनाया , महत्मा गांधी की हत्या की और डॉक्टर आंबेडकर पर विष प्रयोग किया !

९ . #फूले : 

नेटिव महात्मा फुले ने विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और ब्रह्मिनोकी चलाखी को जल्दी भाप लिया और गैर ब्राह्मण विचार को मजबूती से खड़ा किया , उनके शिक्षा के लिए स्कूल खोले , सत्यधर्म की व्याख्या की !

१० . #आंबेडकर :

नेटिव हिरो डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने बुद्ध कबीर फूले को अपना गुरु मानकर उनका विचार और खासकर मूलभारतीय हिन्दू को परिभाषित कर हिंदू कोड बिल में समतावादी जैनधर्म बुद्धधर्म , सिखधर्म और मूलभारतीय हिन्दूधर्म को एक सांस्कृतिक और जमीनी पहचान एक सूत्र में बांध कर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म अलग है यह बात लोगो के संज्ञान में ले आये ! 

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Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 74 : Shiddhi Vikar Chhidne se Paani Agni se nahi !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ७४ : शुद्धि विकार छोड़ने से ही , पानी अग्नि से नही !

#रमैनी : ७४

तहिया होते गुप्त अस्थूल न काया * न ताके सोग ताकि पै माया
कंवल पत्र तरंग एक माहीं * संगहिं रहै लिप्त पै नहीं 
आस ओस अंड मा रहई * अगणित अंड न कोई कहई 
निराधार आधार लै जानी * राम नाम ले उचरी बानी
धर्म कहै सब पानी अहई * जाती के मन पानी अहई 
ढोर पतंग सरे घरियारा * तेहि पानी सब करैं अचारा 
फंद छोडि जो बाहर होई * बहुरि पंथ नहिं जेहै सोई 

#साखी : 

भरम का बांधा यह जग, कोई न करै विचार / 
एक हरि की भक्ति जाने बिना, भौ बूडि मुवा संसार // ७४ //

#शब्द_अर्थ : 

तहिया = गर्भ के प्रारंभ काल में ! ताके = जीव के ! पै = परंतु ! माया = वासना! आस = वासना ! ओस = माता कर रज ! अंड = पिता का वीर्य ! निराधार = शुद्ध चेतन राम ! उचरी = उच्चारण करना ! धर्म = मूलभारतीय हिन्दूधर्म ! पानी = जल ! ढोर = पशु ! पतंग = पक्षी, कीड़े ! घरियारा = मगरमच्छ , घड़ियाल ! फंद = बंधन ! जोहै = देखना ! हरि = चेतन राम ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है चेतन राम कण कण में सर्वत्र व्याप्त विद्यमान है वो पिता के वीर्य और माता के अंड में भी है और उसके निर्मित के पहले मां और पिता रूप में भी है ! स्थूल अस्थूल सभी अवस्था में चेतन राम है ! अगणित अंड पिंड के रूप में वह है ! जो वासना माता पिता में रहती है वही वासना इच्छा माया मोह अंड पिंड में भी रहती है उसकी उस समय स्वतंत्र अहमियत नहीं रहती पर गर्भ में माता का पिंड और पिता का अंड वीर्य मिल जाता है तो दोनो का एक अलग अस्तित्व और जाणिव और वासना काम करने लगती है ! 

जिस प्रकार कमल पत्र तालाब में रहते हुवे भी जल के तरंग से अलिप्त रहता है वैसे ही चेतन राम निर्विकार निर्लेप भाव से संसार में रहता है जीव ने संसार में मोह माया इच्छा के बंधन में स्वयं को बंधन में रखा है वो चाहे तो अपने को बंधन मुक्त कर निर्लेप निर्गुण निराकार अविनाशी चेतन राम के स्व स्वरुप का पा सकता है पर माया वासना का बंधन ये है की कभी छूटता नही , कोई बिरला ही इसमें सफल होकर स्वरूप चेतन राम रूप को प्राप्त होता है जैसे परमात्मा कबीर !  

कबीर साहेब कहते है मुक्ति केवल वासना , माया , इच्छा , मोह, तृष्णा , चाहत को छोड़ कर ही मिल सकती है शील सदाचार के मार्ग पर चलकर मोह माया वासना को पहचाना जा सकता है !

कबीर साहेब कहते है विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म में आग्नि , होम हवन , पानी तर्पण अर्पण शुद्धि पाप मुक्ति आदि में इनका उल्लेख किया है जो सब बेकार है न अग्नी पाप जला सकती है न पानी पाप धो सकते है ! जिस पानी में किट पतंग जनावर मगर रह कर मर जाते है वो पानी कैसे पाप धो डालेगा ? कबीर साहेब ब्राह्मणधर्म को अंधश्रद्धा और अज्ञान , विकृति अधर्म का पिटारा मानते है इसे वो धर्म नही अधर्म मानते है और मूलभारतीय हिन्दूधर्म से अलग ! 

मूलभारतीय हिन्दूधर्म और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म अलग अलग है यही बात धर्मात्मा कबीर यहा लोगोंको समझाते हैं ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
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Monday, 2 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 73

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ७३ : मोह माया इच्छा अधार्मिक गृहणी !

#रमैनी : ७३

चली जात देखी एक नारी * तर गागरि ऊपर पनिहारी 
चली जात वह बाटहि बाटा * सोवनहार के ऊपर खाटा 
जाडन मरे सफेदी सौरी * खसम न चीन्हे धरणी भई बौरी 
सांझ सकार दिया लै बारे * खसमहि छाडि संबरे लगवारे 
वाही के रस निस दिन राँची * पिया सो बात कहै नहि सांची 
सोवत छांडि चली पिय अपना * ई दुख अबधौ कहै केहि सना 

#साखी : 

अपनी जांघ उघरि के, अपनी कही न जाय /
की चित जाने आपना, की मेरो जन गाय // ७३ //

#शब्द_अर्थ : 

नारी = मनोवृत्ती ! पनिहारी = पानी भरने वाली ! बाटा = रस्ता ! खाटा = खाट ! सफेदी सौरी = सफेद चादर ! खसम = पति , चेतन राम , परमात्मा! घरणी = गृहिणी , पत्नी , मनोवृति ! बौरी = पगली ! संबेरे = स्मरण ! लगवारे = जार , अन्य प्रियकर ! रस = मोह , माया ! रांची = आसक्त ! पिया = निज स्वरूप , आत्मरूप , चेतन राम! अपनी जांघ = अपनी इज्जत ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो माया मोह वो इच्छा है जो कुछ भी करा सकते है , वह क्या सही क्या गलत नहीं देखती ना धर्म देखती है ना उसके परिणाम की उसे चिंता होती है वह एक कुलच्छिनी की तरह होता है अपने पति चेतन राम , परमात्मा , अपने अंतरमन की भी नही सुनती और पति की परवाह किए बिना अपने प्रियकार मोह तृष्णा के साथ दिन रात बिताती है और कभी भी उसके साथ रमने में तयार रहती है !

ऐसी स्त्री , गृहणी किसी को मिल जाए तो उसकी क्या हालत होगी पूछते है कबीर साहेब और कहते है इस मायाके के कारनामे बताकर कौन अपनी इज़्ज़त की धज्जिया उड़ायेगा ! 

 कबीर साहेब कहते है अगर इस नारी से बचना है तो आत्मबोध की जागृति से ही बचा जा सकता है और वो मार्ग मूलभारतीय हिन्दूधर्म का शील सदाचार का मार्ग है !

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्तान