#शब्द :
रामुरा चली बिनावन मा हो, घर छोड़े जात जोलहा हो : १
गज नौ गज दस गज उनइस की, पुरिया एक तनाई : २
सात सुत नौ गण्ड बहत्तर, पाट लागु अधिकाई : ३
ता पट तुला तुलै नहिं गज न अमाई, पैसन सेर अढ़ाई : ४
तामें घटई बढ़े रतियो नहिं, करकच करें गहराई : ५
नित उठी बैठी खसम सो बरबस, तापर लागु तिहाई : ६
भींगी पुरिया काम न आवै, जोलहा चला रिसाई : ७
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, जिन यह सृष्टि बनाई : ८
छाड़ पसार राम भजु बौरे , भवसागर कठिनाई : ९
#शब्द_अर्थ :
रामुरा = राम रमैया जीव , चेतन राम! बिनावन = शरीर रूपी वस्त्र ! मा = माया , वासना ! घर = शरीर ! जोलहा = जीव , वस्त्र बुनने वाला! गज = लंबाई का नाप ! नौ गज = कर्म वासनामय शरीर ! दस गज = दस इंद्रिय ! उनइस = दस और नौ मिलकर उन्नीस कर्म इंद्रिय ! पुरिया = ताना , शरीर ! सात सुत = रस , मांस वीर्य इत्यादि , नौ नाड़ी = शरीर में स्थित नौ नाडिया ! गंड बहत्तर = शरीर में बहत्तर जोड़ ! पाट = फैलाव , विस्तार ! अधिकाई = उत्तम, मालिक जीव ! अमाई = अशांति ! करकच = कीटकीट , झगड़ा ! गहराई = बहुत ! खसम = पति , जीव ! बरबस = बलात ! तिहाई = बुढ़ापा ! भींगी = जर्जर ! रिसाई = सफाई ! पसार = माया का विस्तार ! भवसागर = जन्म मरण , वासनामय जग !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर जोलहा थे वस्त्र बुनने थे और बाजार हाट में बेचते थे वे सहजता से शरीर और मन के अन्दर बाहर सब जगह बड़ी गहनता से निरीक्षण करते थे इसलिए उनको मानव जीवन , स्वभाव , जरूरतें , चाहत , आवश्यकता ,चेतन राम , जीव , मोह माया भवसागर , सुख दुख शांति अशांति आदि की अवस्था व्यवस्था उनके अपने काम में भी दिखाई दी !
कबीर साहेब ने मानव का निर्माण , सृष्टि का निर्माण ,चेतन राम , जीव , प्रज्ञा , बोध शरीर की बनावट विस्तार और उनके कार्य कारण भाव का गहन अध्ययन किया और देखा की मानव माया मोह इच्छा तृष्णा अहंकार लोभ आदि में फस जाता है और शुद्ध चेतन जीव अर्थात चेतन राम को अनेक उपदव्याप में उलझाकर उसे दूषित , कलुषित कर देता है जिस वजह से जीव आत्मा चेतन राम को बार बार विभिन्न जन्म लेना पड़ता है ,ये जन्म मृत्यु बुढ़ापा दुख दर्द भरा मायावी जीवन से वो मुक्त नहीं हो पाता है ! जैसे भींगी पुरिया को निचोड़ना पड़ता है तभी वह उत्तम कपड़ा बुन सकती है वैसे ही उत्तम निर्विकार जीवन के लिये जो अधर्म का कचरा जीवन में निर्माण करते है उसकी सफाई के बैगर उत्तम जीवन , मोक्ष संभव नहीं यही बात कबीर साहेब यहां बताते हैं !
अधर्म से जिएंगे तो बार बार जन्म मृत्यु के फेरे से गुजरना पड़ेगा , दुख दर्द सहना पड़ेगा ! अधर्म विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म है , जाति वर्ण अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय विचार है ! लोभ मोह माया इच्छा तृष्णा अहंकार है इसकी रसाई करो , निर्मल बनो और स्वच्छ सुत से बेदाग कपड़ा बुनो तो भवसागर में उसकी अनमोल कीमत है वरना उसकी कीमत क्या जो मैला है फटा टूटा , विद्रूप है दुख कारक है ?
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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