#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : १
#शब्द : १ : सन्तो भक्ति सतोगुर आनी
नारी एक पुरुष दुइ जाया, बूझो पण्डित ज्ञानी : २
पाहन फोरि गंग एक निकरी, चहुँदिश पानी पानी : ३
तेहि पानी दुइ पर्वत बुड़े, दरिया लहर समानी : ४
उड़ी माखी तरवर को लागी, बोलै एकै बानी : ५
वह माखी को माखा नाही, गर्भ रहा बिनु पानी : ६
नारी सकल पुरुषवै खाये, ताते रहै अकेला : ७
कहहिं कबीर जो अबकी बुझै, सोई गुरु हम चेला : ८
#शब्द_अर्थ :
नारी = इच्छा , भक्ति ! पुरुष दुइ = ज्ञान और वैराग्य ! पाहन = पत्थर , विषय मोह ! गंग = गंगा , भक्ति ! दुइ पर्वत = अहंता ममता ! दरिया : समुद्र ! संसार = समुद्र ! लहर = भक्ति , ज्ञान वैराग्य की तरंगे ! माखी = विषय ! तरवर = तरुवर , वृक्ष , आत्मज्ञान ! एकै बानी = स्वरूप , चेतन राम की बात ! नारी = इच्छा , माया ! पुरुषवै = चेतन जीव! अकेला = असंग निराधार !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो सदगुरु की संगत करो , सद्धर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करो ! असत्य , झूठा विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म की संगत छोड़ो , पोंगा पंडित की चूगल में ना फासो !
भक्ति श्रद्धा रखो पर ये परख लो की वो भक्ति मार्ग आप के हित का हो , अनावश्यक उलझाने के लिये , पत्थर पूजा के लिये नही ! वैदिक सोंग धतूरे के लिए नही !
ये संसार इच्छा माया मोह से ग्रस्त है , माया मोह नाम की नारी सदैव पुरुष अर्थात सभी स्त्री पुरुष मानव के पीछे पड़ी है उसे छोड़ो तो ज्ञान की गंगा बहे !
सत्य मूलभारतीय हिन्दूधर्म के ज्ञान की गंगा बहेगी तो उसमे झूठा विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का अधर्म विकृति सब डूब जायेगी! तुम शुद्ध होकर बाहर निकलोगे और आत्म ज्ञान की ऊंचाई तक पहुच जावोगे ! अज्ञान की मक्खी उड़ जायेगी और अंतरात्मा, चेतन राम के दर्शन होगे ! जो मोह माया नाम की इच्छा सभी मानव को अपने गुलामी में रखी है उसका कुछ नहीं चलेगा और आप मुक्त हो जावोगे , दुख मुक्त हो जावोगे !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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