शब्द : संतो मते मातु जन रंगी : १
पियत पियाला प्रेम सुधा रस, मतवाले सत्संगी : २
अर्धे उर्धे भाटी रोपिनि, लेते कसारस गारी : ३
मूंदे मदन काटी कर्म कस्मल, संतति चुवत अगारी : ४
गोरख दत्त वशिष्ठ व्यास कपि, नारद शुक मुनि जोरी : ५
बैठे सभा शम्भु सनकादिक, तहाँ फिरे अधर कटोरी : ६
अम्बरीष औ याज्ञ जनक जड़, शेष सहस मुख फोना : ७
कहाँ लौं गानों अनन्त कोटि लौं, अमहल महल दिवाना : ८
ध्रुव प्रहलाद विभीषण माते, माती शेवरी नारी : ९
निर्गुण ब्रह्म माते वृंदावन, अजहूँ लागु खुमारी : १०
सुर नर मुनि यति पीर औलिया, जिन रे पिया तिन जाना : ११
कहैं कबीर गूंगे की शक्कर, क्यों कर करे बखाना :१२
#शब्द_अर्थ :
मते = विभिन्न मत, विचार ! मातु = मत, विचार वाला ! जन रंगी = भक्त , साधु संत गण , जन ! अर्धे : शरीर का अर्धा भाग ! उर्धे = ऊपरी भाग , शिरोभाग ! भाटी = दारू की भट्टी ! कसारस = दारू , माड़, मदिरा ! गारी = बनाना , निकालना ! अधर कटोरी = दारू का प्याला ! मुँदे = दमन ! मदन = काम तृष्णा ! कर्मकस्मल = दूषित कर्म , मोह ! संतति = सतत , निरंतर ! अगारी = अग्नि पूजक , होम हवन वाले ! दत्त = दत्तात्रेय ! कपि = कपिल मुनि , हनुमान ! शुक = शुक़देव ! याज्ञ = यज्ञवल्क ! जड़ = जड़भरत ! शेष = शेषनाग ! अमहल = गरीब , झोपड़ी में रहने वाले , सामान्य जन ! महल = श्रीमंत , महलोमें रहने वाले ! खुमारी = नशा ! यति = त्यागी , पीर = मुस्लिम पीर , गुरु ! औलिया = मुस्लिम संत , सिद्ध !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो जो सच्चे ज्ञानी , धार्मिक है ऐसे लोग बहुत कम है वे भाईचारा समता मानवता सदाचार शील आदि का प्रचार करते है ऐसे विचार मत के सत्संग साधु संगत में रहते रमते है उन्हें वहा सुख शांति आनंद मिलता है !
बाकी अन्य विचार ,मतवाले विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और तुर्की मुस्लिमधर्म के लोग अपने ही मत विचार को ठीक मानते है ये अर्ध पके लोग है , अर्ध परिपक्व है , पूरे धर्मज्ञानी नहीं ! और एसे अधपके लोगोंकी कोई कमी नहीं , विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोगोने तो उनका बड़ा जमावड़ा बनाया है जैसे दत्त , वशिष्ठ , व्यास , कपिल , नारद , शुक , गोरख , अम्बरीष , यज्ञवल्क, नारद , जनक , जड़भरत , शंकराचार्यवादी अघोरी आदि आदि इन सब का जाती वर्ण वादी , असमानता विषमता , भेदभाववादी वेद और मनुस्मृति को मानने वाले का आध्यात्मिक जमावड़ा खड़ा किया ! ये वेद होम हवन के समर्थक गोमेध अश्वमेध , सोमरस मांस मदिरा के समर्थक जब मिल बैठते है तो उनकी बैठक में सोमरस के प्याले अधर अधर से घूमते है , एक ही प्याले से वो सोमरस पीते है , यही उनका भाईचारा समता है !
दुर्भाग्य से कुछ स्थानीय नागवंशी राजे , धनिक भी इनकी मोह माया , अधर्म में फस कर मदिरा मोहिनी की चक्कर में अपना मूलभारतीय हिन्दूधर्म त्याग कर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के दूसरे तीसरे दर्जे में शामिल हो गए है ! ये देशद्रोही , समाजद्रोही है , धर्मद्रोही , बाटगे है , बटे हुवे लोग है जिन्होंने विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म की गुलामी , लाचारी स्वीकार कर ली है उनके देखादेखी कुछ सामान्य लोग भी अपने को चतुर्थ श्रेणी के वैदिक ब्राह्मण धर्मी हो गए है ! माया मोह अज्ञान के कारण विशाल मूलभारतीय नागवंशी परिवार अनेक मुंह में बट गया है , एकता खंडित हो गई है , जितने मुंह उतनी बाते ऐसी नागोंकी हालत हो गई है ! मूलभारतीय ध्रुव , प्रल्हाद अन्य की भी यही अवस्था हुवी !
कबीर साहेब कहते है पूरा देश वर्ण जाति उचनीच विषमता अस्पृश्यता भेदभाव में बट गया , विदेशी तुर्की मुस्लिमधर्म के आक्रमण से नहीं बच सका और उनका भी धार्मिक आक्रमण विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म की तरह यहां के मूलभारतीय हिन्दूधर्म और सिंधु हिन्दू संस्कृति पर हुवा !
कबीर साहेब कहते हैं देश का विचार निर्गुण निराकार अविनाशी चेतन राम में एकता भाईचारा समता मानवता शील सदाचार को कुछ लोगौने बचा कर रखा वे वृन्दावन में वृंदा की याद में वहां सत्संग करते है आज भी विदेशी वैदिक यूरेशियन ब्राह्मणधर्म के विष्णु ने मूलभारतीय वृंदा पर किए अत्याचार , बलात्कार को याद कर देश विदेशी यूरेशियन ब्राह्मण मुक्त करने के लिए सत्संग करते है !
जो मूलभारतीय हिन्दूधर्म वीर शुर साधु योगी मुस्लिम धर्म में गए साधु संत पीर औलिया कबीर के मूलभारतीय हिन्दूधर्म विचार या मतअवलंबी है वही जानते हैं प्रेम भाईचारा समता मानवता शील सदाचार क्या है बाकी जो नहीं मानते उनको कबीर वो गूंगे कहते है जो मीठे का स्वाद शब्दों में बयान नहीं कर सकते !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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