#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ३
#शब्द : ३ : संतो घर में झगरा भारी : १
साति दिवस मिलि उठि उठि लागें, पाँच ढोटा एक नारी : २
न्यारो न्यारो भोजन चाहैं, पाँचों अधिक सवादी : ३
कोइ काहू का हटा न माने, आपुहि आपु मुरादी : ४
दुर्मति केर दोहागिन मेटई, ढोटहि चाँप चपेरे : ५
कहहि कबीर सोई जन मेरा, जो घर की रारि निबेरे : ६
#शब्द_अर्थ :
घर = शरीर , वृदय ! पांच ढोटा = पांच इंद्रिय नारी = वासना , इच्छा ! हटा = रोकना ! मुरादी = इच्छुक ! दोहागिन = दुर्भाग्य ! चाप = दमन ! रारी = लोभ , माया,ज़गरा ! निबरे = सुलझाए !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो ये मानव शरीर निरंतर इच्छा माया मोह की पूर्ति के लिऐ काम करता रहता है , पांच इंद्रिय और इच्छा उसे कभी शांति से बैठने नही देते ! आंख नाक कान जीभ और चमड़ी नित्य भोग के लिऐ माया पीछे लगे रहते है और हर कोई चाहता है माया उससे खुश हो ! पर ऐसा होता नहीं वो अधिकाधिक स्वाद अधिकाअधिक इच्छा ही निर्माण करती है और पांच इंद्रिय मैं पहले मैं पहले की होड़ में लगे रहते है !
कबीर साहेब कहते है इस शरीर वृदय में जो चाहत भरी अशांति है उससे लड़ना चाहते हो तो विवेक करना सीखना होगा , परख और ज्ञान का उपयोग कर क्या सार्थक क्या निरर्थक यह बात वृदय में बिठानी होगी ! जीवन सार्थक , सुखी करने के लिए माया मोह इच्छा पर लाजिब नियंत्रण रखना होगा और वो काम सदधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म की शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि की सिख ही कर सकती है ! बुतपरस्ती , अंधविश्वास को छोड़कर अपने अंतरमन के चेतन राम को जानना होगा ! जो ये करे वो वही मेरे प्रियजन है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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